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पहले साइकिल से प्रत्याशी करते थे प्रचार

अरवल। कलेर प्रखंड में 20 अक्टूबर को होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2021 के लिए बिसात बिछने लगी है। चुनाव का समय नजदीक आते हीं संभावित और वर्तमान उम्मीदवारों द्वारा भोज व पार्टियों का दौर शुरू हो गया है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 19 Sep 2021 11:37 PM (IST)Updated: Sun, 19 Sep 2021 11:37 PM (IST)
पहले साइकिल से प्रत्याशी करते थे प्रचार
पहले साइकिल से प्रत्याशी करते थे प्रचार

अरवल। कलेर प्रखंड में 20 अक्टूबर को होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2021 के लिए बिसात बिछने लगी है। चुनाव का समय नजदीक आते हीं संभावित और वर्तमान उम्मीदवारों द्वारा भोज व पार्टियों का दौर शुरू हो गया है। वोटरों को अपने खेमे में रखने के लिए कोई जाति कार्ड खेल रहा है तो कोई समाज का सबसे बड़ा हितैषी के रूप में अपने को प्रस्तुत करने में लगा हुआ है। इसी बीच क्षेत्र के कुछ बुजुर्ग लोगों से जब पहले और आज के दौर में चल रही पंचायत चुनाव की तैयारियों और वोटरों से वोट मांगने के तौर-तरीके पर चर्चा की गई तो कई बुजुर्गों ने बताया कि न तो पहले जैसा समाज रहा और ना ही लोग पहले के जो भी प्रतिनिधि चुने जाते थे वे अपने पंचायत और गांव समाज की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाते थे। चुनाव के दिन एक जगह बूथ रहता था और गांव के लोग झुंड बनाकर वहां जाते थे और वोट देकर चले आते थे। न इतना पुलिस रहती और न ही प्रशासन मात्र एक चौकीदार अथवा दफादार ही चुनाव करा लेता था। प्रत्याशी भी पूरी ईमानदारी से वोट मांगते थे। कोई प्रलोभन नहीं। चुनाव में हारे प्रत्याशी का जीते हुए से कभी भी दुराव नहीं रहता था। अब तो प्रत्याशी चुनावी वैतरणी पार करने के लिए किसी भी हद तक पहुंच जा रहे हैं। पहले उम्मीदवार और उनके समर्थक सत्तू और भूंजा खाकर पैदल अथवा साइकिल से प्रचार करते थे। कहीं चौपाल भी लगता था तो वहां गांव व समाज के बेहतरी की चर्चा होती थी। चौपाल की बातें घर में रह रही महिलाओं को भी बतायी जाती थी। फंड ज्यादा होने के चलते अब तो प्रतिनिधि ठेकेदार बन जा रहे हैं। पहले प्रत्याशी के कसौटी पर मापा जाता था। उनके सामाजिक सरोकार के प्रति जुड़ाव को परखा जाता था। आज तो वोटर और प्रत्याशी दोनों महत्वाकांक्षी हो चुके हैं। चुनाव प्रचार भी काफी महंगा हो गया है। नामांकन से लेकर चुनाव के दिन तक खासकर मुखिया पदों के उम्मीदवार कई लाख खर्च कर दे रहे हैं। कहते हैं बुजुर्ग-

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कोयल भुपत ग्राम निवासी उमेश पाठक बताते हैं कि चुनावी माहौल में जमीन आसमान का अंतर आ गया है। पहले के चुनाव में प्रत्याशी को कसौटी पर मापा जाता था। समाज में महिलाओं के लिए कई तरह की बंदिशे थी, लेकिन चुनाव के दौरान गांवों में लगने वाले चौपाल में लिए गये निर्णय से महिलाओं को अवगत कराकर उनसे राय-मशवरा लिया जाता था। अब जीत-हार के बाद प्रत्याशी वोटरों से मिलने तक नहीं पहुंचते। पहले किसी प्रकार भेदभाव नहीं था। आज का चुनावी माहौल पहले से पूरी तरह से उलट है। मजदूर अपनी मजदूरी छोड़कर रिक्शा, टमटम और बैलगाड़ी से लोग मतदान करने बूथों पर पहुंचते थे। उस समय के प्रत्याशियों में अपनापन का भाव झलकता था।

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कोयल भूपत गांव निवासी कृष्ण नारायण सिंह ने पहले और अब के मतदान के तौर तरीकों के बारे में पूछने पर कहा कि पहले के जमाने में उम्मीदवार एवं उनके समर्थक भूंजा एवं सतू खाकर टमटम, बैलगाड़ी या पैदल ही चुनाव प्रचार करते थे। वोट के लिए उम्मीदवार को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता था। चौकीदार की निगरानी में किसी एक गांव में बूथ होता था । और हमलोग झुंड बनाकर वोट देने जाते थे। महिलाएं कम संख्या में वोट देने जाती थी सामाजिक कटूता के चलते अब उम्मीदवारों के साथ पुलिस होती है। चुनाव प्रक्रिया भी पूरी तरह बदल गयी है। चुनाव में पैसे एवं ताकत तथा जाति का बोलबाला हो गया है।


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