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रामकथा के सागर में गोता लगाने से मिलती है परम शांति

अरवल। कलयुग में रामकथा ही मानव मोक्ष का एक मात्र साधन है। रामकथा अथाह सागर है। इसमें जितना गोता लगाएंगे उतना ही आनंद आएगा।

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Oct 2019 11:41 PM (IST)Updated: Thu, 17 Oct 2019 06:11 AM (IST)
रामकथा के सागर में गोता लगाने से मिलती है परम शांति
रामकथा के सागर में गोता लगाने से मिलती है परम शांति

अरवल। कलयुग में रामकथा ही मानव मोक्ष का एक मात्र साधन है। रामकथा अथाह सागर है। इसमें जितना गोता लगाएंगे उतना ही आनंद आएगा। यह बात स्वामी श्री रंग रामानुजाचार्य जी ने महेंदिया स्थित बालाजी बेंकेटेश्वर धाम में आयोजित राम कथा के दूसरे दिन श्रद्धालुओं को कथा का रसपान कराते हुए कही। उन्होंने कहा कि राम कथा समुद्र है। इसके बारे में जितना बताया जाय उतना कम है। उन्होंने कहा कि मानव का कल्याण उसकी उसकी मानवता पर ही निर्भर होता है। पर मानवता क्या है, समाज आज इससे भटक रहा है। उसे याद कराने का सफल माध्यम राम कथा ही है। इसके श्रवण मात्र से लोगों को मानवता का भान हो जाता है। सत्संग भी इसका एक सफल माध्यम है। रत्नाकर जैसे दुराचारी व्यक्ति को सत्संग से ही अच्छा इंसान बनने का अवसर प्राप्त हो सका। जब भी मानव सत्संग का सहारा लिया, उसमें अच्छे विचार, अच्छी सोच का समावेश होने लगा। श्रीरामचरित्र मानस पर कहा कि यह धार्मिक ग्रंथ के साथ -साथ एक सामाजिक ग्रंथ भी है । इसका उद्देश्य समरसता को कायम करना ही है। भगवान श्रीराम एक ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते थे जिससे आपस में ऊंच-नीच और भेदभाव को खत्म किया जा सके। कथा को विस्तार देते हुए उन्होंने कहा कि राजा दशरथ के पुत्रेष्ठि यज्ञ में भगवान विष्णु साक्षात अपने आयुधों के साथ प्रकट हुए थे। साठ हजार वर्ष तक भूमंडल पर राज्य करने के बाद अयोध्याधिपति राजा दशरथ को पुत्र की चिता हुई। वे विचार करने लगे कि मेरे वंश की वृद्धि नहीं होने पर समुचित रूप से प्रजा का पालन कैसे होगा? एतदर्थ राजा दशरथ ने मंत्रियों एवं पुरोहितों के परामर्श से पुत्रेष्ठि यज्ञ करने का निश्चय किया। पुत्रेष्ठि यज्ञ में साक्षात नारायण की आराधना होती है। इसलिए यज्ञ, पुत्र प्राप्ति में प्रत्यक्ष कारण है। राजा दशरथ ने सरयू के उत्तर तट पर भव्य यज्ञशाला का निर्माण कराया। इस अवसर पर आचार्य जगन्नाथ जी, रंगनाथ जी, अच्युत प्रणय जी सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।

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