देवकुंड में लगा रहा जलाभिषेक करने वालों का तांता
अरवल - औरंगाबाद जिले की सीमा पर अवस्थित बाबा नगरी देवकुंड धाम मे सावन के अंतिम दिन हजारों शिवभक्तों ने जलाभिषेक करते हुए पूजा अर्चना की।
अरवल । अरवल - औरंगाबाद जिले की सीमा पर अवस्थित बाबा नगरी देवकुंड धाम मे सावन के अंतिम दिन हजारों शिवभक्तों ने जलाभिषेक करते हुए पूजा अर्चना की। सुबह से ही शिवभक्तों का तांता कांवरिया पथ मे लगा रहा। भगवान भोलेनाथ की आराधना के इस केंद्र मे दूर दूर से आये भक्तों ने पूजा अर्चना की । देवताओं की नगरी के रूप मे शुमार इस स्थान का काफी महत्व है। महर्षि च्यवन मुनी की कर्म भूमि के रूप मे इस स्थान को जाना जाता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा स्थापित शिव¨लग पर जलाभिषेक कर श्रद्धालु मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। सावन का महीना खासकर देवाधिदेव भगवान शंकर को समर्पित है।
बाबा धाम बैजनाथ धाम के तर्ज पर देवकुंड में भी कांवरिया पटना के गाय घाट से गंगा जल उठाकर मसौढ़ी,नदौल, जहानाबाद, ¨कजर, करपी, शहरतेलपा होते हुए 115 किलोमीटर पैदल यात्रा कर भगवान भोलेनाथ की अराधना करते हुए देवकुंड पहुंचकर बाबा दुधेर्श्वर नाथ पर जलाभिषेक करते हैं। यूं कहें तो पूरे सावन मास में भोलेनाथ की आराधना की जाती है परंतु रविवार को अंतिम दिन होने के कारण श्रद्धालुओं की काफी भीड़ लगी रही। प्रसिद्ध च्यवन ऋषि की कर्म भूमि पर सहस्त्र धाराओं से युक्त तालाब से घिरे मंदिर परिसर को शोभायमान बनाता है। देवकुंड की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए महंत बताते हैं कि नीलम पत्थर से बने शिव¨लग श्रद्धालुओं के लिए अधिक फलदायी माना जाता है। भगवान श्री राम द्वारा स्थापित त्रेतायुगीय शिव¨लग की गहराई नहीं मापी जा सकती है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि वर्षो पूर्व मुंबई के जौहरी ने आकर शिव¨लग की खुदाई की थी परंतु ज्यों ज्यों खुदाई होती गयी शिव¨लग चौड़ा होता गया।
एक अन्य किवदंती के अनुसार भगवान श्री राम द्वारा स्थापित शिव¨लग के बाद देवशिल्प विर्श्वकर्मा भगवान द्वारा बनाया गया भव्य मंदिर आज भी चमक बिखेरता दिखाई पड़ता है। बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद शिवभक्त पटना गाय घाट से गंगा जल उठाकर पैदल यात्रा कर शिव¨लग की पूजा अर्चना करते हैं। देवकुंड की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए पंडित जी कहते हैं कि सहस्त्र धाराओं से युक्त तालाब भी मार्मिक कथा का स्मरण कराता है। उन्होंने बताया कि वर्षो पूर्व च्यवन ऋषि तपस्या में लीन थे। तपस्या में लीन रहने के कारण उनके शरीर पर दीमक का साम्राज्य हो गया था। उसी समय राजा श्याति अपने पूरे परिवार के साथ वन बिहार के लिए निकले थे। राजा की पुत्री शुकन्या ने मिट्टी की मुरत समझ च्यवन ऋषि के दीमक लगे शरीर के आंख में काटा चुभोदी थी। जिसके पश्चात सुकन्या को च्यवन ऋषि की सेवा में लगा रहना पड़ा था। और सहस्त्र धारा वाली तालाब के पानी से च्यवन ऋषि को सुकन्या ने धोई थी। महर्षि त्रीडंडी स्वामी ने भी देवकुंड में यज्ञ किया था।