छठव्रतियों ने एतवार को दिया अर्घ्य दान
ऐतिहासिक मधुश्रवा तालाब में स्नान कर बड़ी संख्या में छठव्रतियों ने अगहन महीने के एतवार को अर्घ्य दान दिया। . इस अवसर पर छठ गीतों के साथ सैंकड़ो छठ व्रतियों ने तालाब में भगवान सूर्य को अर्घदान किया।.
अरवल । ऐतिहासिक मधुश्रवा तालाब में स्नान कर बड़ी संख्या में छठव्रतियों ने अगहन महीने के एतवार को अर्घ्य दान दिया। . इस अवसर पर छठ गीतों के साथ सैंकड़ो छठ व्रतियों ने तालाब में भगवान सूर्य को अर्घदान किया।. उनलोगों ने पवित्र सूर्य तालाब में पहले स्नान किया, फिर कार्तिक और चैत महीने की तरह भगवान सूर्य को अर्घ्य दान किया।. माहौल पूरी तरह छठ जैसा ही था।. पूरा मधुश्रवा भक्ति गीतों से गूंजता रहा।. मधुश्रवा में आयोजित इस छठ मेले में दूर-दूर से छठ व्रती छठ करने व अर्घ्यदान के लिए पहुंचते हैं।. चैती और कार्तिक छठ की तरह अगहनी छठ में भी छठ व्रती पहले नहाय-खाय और लोहंडा का व्रत किए।. चैत एवं कार्तिक महीने में हजारो की संख्या में श्रद्धालु छठव्रत करने यहां आते हैं। अगहन एवं माघ महीने के शुक्ल पक्ष रविवार को छठव्रत का विशेष महत्व है।. इस सूर्य धाम की महत्ता किसी से छुपी नहीं है।. इसके महत्व को लेकर ही जिले सहित अन्य जिले से श्रद्धालु बड़ी संख्या में छठव्रत करने यहां आते हैं।. श्रद्धालुओं ने बताया कि यहां छठ करने से हर मुरादें पूरी होती है। अगहन महीने में धान की नयी फसल के आ जाने से किसानों के साथ गरीब भी इस पर्व को करने में सक्षम होते हैं। व्रत करने से दुखों से होता है निवारण: मंदिर के महंत अखिलेश्वर भारती बताते हैं कि धार्मिक ग्रंथों एवं जनश्रुतियों के अनुसार कालांतार में ब्रहमपुत्र भृगुमुनी गंगा नदी के तट पर तपस्या में लीन थे। उनके साथ उनकी पत्?नी फूलोत्मा रहती थी। मुनी के स्नान करने जाने के दौरान उनकी पत्?नी को एक राक्षस उठाकर आकाश मार्ग से भागने लगा। भृगुमुनी ने कुश का एक दिव्य बाण बनाकर राक्षस पर छोड़ा और राक्षस घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा। मुनी की पत्?नी गर्भवती थी और उसने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया जिसका नाम च्यवन रखा गया। उसी वक्त इस पौराणिक स्थल का नामकरण मधुश्रवां किया गया। यह भी बताया जाता है कि प्रसव काल के दौरान मुनी की पत्?नी के शरीर से जो रक्तश्राव हुआ उससे वहां पर एक तालाब का निर्माण हुआ। मधुश्रवां स्थित इस तालाब के बारे में भी एक धार्मिक मान्यता है। जनश्रुतियों के अनुसार जिस स्त्री को संतान नहीं होता है वह अगर सच्चे मन से तालाब में स्नान कर भगवान शंकर की पूजा करती है तो उसकी सारी मन्नतें पूर्ण होती है। इतना ही नहीं उक्त तालाब में स्नान करने से कुष्ठ व चर्म रोग सहित अन्य बीमारियां भी दूर होती है। जनश्रूति के अनुसार मर्यादा पुरुषोतम श्री रामचंद्र ने भी गया ¨पडदान करने जाते समय पत्?नी सीता के साथ यहां रुककर बाबा मधेश्वरनाथ की पूजा अर्चना की थी। ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार राजा की बेटी सुकन्या ने च्यवन ऋषि के दीपक लगे शरीर को कंचन काया में बदलने के लिए सबसे पहले यहां छठव्रत करने की परंपरा शुरु की थी।