महर्षि कश्यप के कहने पर व्रत किया तो हुई थी पुत्ररत्न की प्राप्ति
अरवल। हिन्दुओं का महान चैती छठ पर्व मंगलवार से नहाय-खाय के साथ प्रारंभ हो गया। चार दिन तक चलने वाले सूर्य उपासना के महापर्व में श्रद्धालुओं के अलावा आम आवाम द्वारा शुद्धता का ख्याल रखा जाता है।
अरवल। हिन्दुओं का महान चैती छठ पर्व मंगलवार से नहाय-खाय के साथ प्रारंभ हो गया। चार दिन तक चलने वाले सूर्य उपासना के महापर्व में श्रद्धालुओं के अलावा आम आवाम द्वारा शुद्धता का ख्याल रखा जाता है। अरवल- औरंगाबाद सीमा पर अवस्थित देवकुंड के सहस्त्र धाराओं से युक्त तालाब में श्रद्धालुओं ने स्नान कर भगवान भास्कर का दर्शन किया। नहाय-खाय का प्रसाद ग्रहण किया। बुधवार को खरना होगा। जिसे पूजा का दूसरा व कठिन चरण माना जाता है। इस दिन व्रती निर्जला उपवास रखेंगे और शाम को पूजा के बाद खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करेंगे। अथर्ववेद के अनुसार षष्ठी देवी भगवान भास्कर की मानस बहन हैं। प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई थी। उन्हें बच्चों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है।
एक अन्य किंगवदंती के अनुसार महर्षि च्यवन को नवयौवन शरीर प्राप्ति के लिए सुकन्या ने सर्वप्रथम देवकुंड में अवस्थित सहस्त्रधाराओं से युक्त तालाब में सूर्य की उपासना की थी। इसके बाद लोक आस्था का पर्व छठ प्रचलित हुआ। देवकुंड मंदिर में पौरोहित्य कर्म कर रहे आचार्य शिवकुमार पांडेय के अनुसार 11 अप्रैल को सांयकालीन अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन रवि योग रहेगा। इस संयोग से श्रद्धालुओं पर सूर्यदेव की विशेष कृपा होगी। यह त्योहार चार दिनों तक चलता है। इसकी शुरुआत चैत्र शुक्ल चतुर्थी से होती है और सप्तमी को अरुण वेला में इस व्रत का समापन होता है।
छठ पूजा के बारे में कई मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि राजा प्रियंवद और रानी मालिनी को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप के कहने पर इस दंपत्ती ने यज्ञ किया। जिससे पुत्र की प्राप्ति हुई। दुर्भाग्य से नवजात मरा हुआ पैदा हुआ। राजा-रानी प्राण त्याग के लिए आतुर हुए तो ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से पैदा हुई हूं। इसलिए षष्ठी कहलाती हूं। उनकी पूजा करने से संतान की प्राप्ति होगी। राजा-रानी ने षष्ठी व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।