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जब पूरा नहीं होता था होमवर्क तो स्कूल जाने में भी लगता था डर

अरवल। समय बदलते रहता है। हरेक परिस्थितियों मे अपने आप को उसके अनुकूल परिवर्तित करना मानव की प्रवृति रही है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 08 Nov 2018 11:57 PM (IST)Updated: Thu, 08 Nov 2018 11:57 PM (IST)
जब पूरा नहीं होता था होमवर्क तो स्कूल जाने में भी लगता था डर
जब पूरा नहीं होता था होमवर्क तो स्कूल जाने में भी लगता था डर

अरवल। समय बदलते रहता है। हरेक परिस्थितियों मे अपने आप को उसके अनुकूल परिवर्तित करना मानव की प्रवृति रही है। आज विज्ञान का समय है। इससे हमारा कार्य पहले की तुलना में काफी सहज हो गया है। हम प्रगति तो कर रहे है लेकिन अपने मूल्यों को पीछे छोड़ रहे हैं। जरुरत है विकास के बढ़ते रफ्तार के साथ अपने मूल्यों को भी अपने साथ सहेजे रखने की। हमारे जमाने में गुरुजनों का डर दिलो दिमाग में इस तरह बैठा रहता था कि जब कभी होमवर्क पूरा नहीं होता था तो स्कूल जाने में काफी डर लगता था। अपने अंदर इसी डर की भावना से हमेशा यह प्रयास रहता था कि स्कूल में मिले सभी होमवर्क को बेहतर तरीके से पूरा करें। शुरुआती दौर में तो यह डर के कारण करते रहे। फिर धीरे-धीरे पढ़ने की आदत सी पड़ गई। स्कूल से जब कॉलेज में पहुंचा तो वहां न तो शिक्षकों का डर था और नहीं अभिभावकों का विशेष नियंत्रण ही था। लेकिन विद्यालय के समय में जो गुरुजनों ने जो डर पैदा कर पढ़ने की आदत डाल दी थी वह तो अब स्वभाव बन चुका था। उस समय इस बात को लेकर काफी खुशी होती थी कि गुरुजी के डंडे में इतना प्रेम छिपा हुआ था। हमलोग विद्यालय की डांट फटकार तथा पिटाई को घर में भी आकर नहीं कह पाते थे। ऐसा कहने पर अभिभावकों से भी डांट लगनी तय थी कि तुमने विद्यालय में जरुर कोई बड़ी गलती करते हो तो तभी तो तुम्हें पिटाई लगी है। उक्त बातें जिलाधिकारी सतीश कुमार ¨सह ने दैनिक जागरण के बाल संवाद कार्यक्रम में असेंबली आफ गॉड के बच्चों के बीच बातचीत करते हुए कही। कार्यक्रम तो प्रश्नोतरी की थी। लेकिन जिलाधिकारी ने बच्चों

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को प्रेरक प्रसंग सुनाए उससे उनलोगों के भविष्य को निखारने में काफी मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि देखिए आज समय तेजी से इस कदर आगे बढ़ा है ।मेरे जमाने में एक सिपाही को देखकर हमलोग डर से सिहर जाते थे। जब आपके तरह स्कूली शिक्षा प्राप्त कर रहा था तो जिलाधिकारी तो दूर की बात। एक बीडीओ तक के कार्यालय में जाने का मौका नहीं मिला। दैनिक जागरण ने यह अच्छी पहल की है कि आपलोगों को मेरे कार्यालय तक आने का अवसर मिला। इससे हमें भी काफी खुशी हो रही है। आपलोगों से बातचीत कर मुझे भी बचपना याद आ रहा है। बच्चों के साथ बातचीत में जिलाधिकारी इस कदर खो गए कि कार्यक्रम के लिए पहले उन्होंने मात्र एक घंटे समय ही देने की बात कही थी लेकिन तीन घंटे तक यह संवाद चलता रहा। इस बीच बच्चों ने कई रोचक प्रश्न भी उनसे पूछा। उन्होंने सभी प्रश्नों को दो टूक अंदाज में जवाब भी दिया। प्रस्तुत है उनलोगों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के कुछ प्रमुख अंश-

प्रश्न:सर आप डीएम बनने से पहले क्या करते थे।

देवव्रतदेव

उतर-काफी मेहनत से पढ़ा। और बीपीएससी की तैयारी की। उस परीक्षा में सफलता मिली और नौकरी में आ गए।अपने कार्यां को ईमानदारी से करता रहा। और अब आपके जिले के जिलाधिकारी के रुप में कार्य कर रहा हूं। मेरा प्रयास सिर्फ ईमानदारी से अपना काम करना है। आपलोगों को भी यह कहना चाहूंगा कि आप ईमानदारी पूर्वक अपने कार्यों पर ध्यान दें। स्वत: आप उस मुकाम पर पहुंच जाएंगे। जिसकी तमन्ना रख रहे हैं।

प्रश्न:सर आप बचपन से ही अधिकारी बनना चाहते थे?

अमन कुमार गुप्ता

उतर-जिस समय मैं आपके तरह स्कूल में पढ़ा करता था। हमारे अंदर इतनी बड़ी सोंच नहीं थी। अपने गांव में ही रहकर सरकारी विद्यालय में पढ़ाई किया। उस समय शिक्षकों तथा अभिभावकों के आज्ञा का पालन करना ही प्राथमिकता होती थी। हमलोगों के समय सिर्फ यही सिखाया जाता था कि बड़े लोगों का आदर करो, अच्छा इंसान बनो। घर में अखबार भी नहीं आता था।हालांकि बगल के दुकान में जब कभी समान लेने जाता था वहां रखे अखबार में खिलाड़ियों का फोटो देखा करता था। उससे धीरे-धीरे अखबार पढ़ने की जिज्ञासा बढ़ती चली गई। समाचार पत्रों को नियमित रुप से पढ़ने लगा। उससे हमें देश दुनिया के बारे में काफी जानकारी मिली। कॉलेज में जाने पर दोस्तों के बीच बातचीत के दौरान भी बहुत कुछ सीखने को मिला। तब जाकर बीपीएससी की तैयारी करने की योजना बनी।

प्रश्न:आप जिस स्कूल में पढ़ते थे सरकारी था या प्राइवेट।

रवि प्रकाश गुप्ता

उतर- देखिए यह तो मैं पहले ही बता दिया है कि मेरी पढ़ाई गांव के सरकार विद्यालय मे हुई थी लेकिन वहां जिस तरह की पढ़ाई हमें मिली उसका लाभ हमें आज ही मिल रहा है। गांव में स्कूल नहीं था। प्रतिदिन लगभग सात किलोमीटर पैदल जाकर स्कूल पहुंचना होता था। समय पर स्कूल पहुंचना भी अनिवार्य था। मन लगाकर पढ़ाई जारी रखा। और रही बात यह सोंच की सरकारी या निजी विद्यालय की तो दिलो दिमाग से यह भावना निकाल दीजिए। कोई भी संस्थान आपको सिर्फ दिशा ही दे सकता है। चलना तो खुद आपको पड़ेगा। यह जरुरी नहीं है कि बड़े विद्यालय में पढ्ने वाले बच्चे ही बेहतर करते हैं। किसी भी विद्यालय में पढ़े लेकिन मन लगाकर अपनी पढ़ाई करें।

प्रश्न:सर आपके माता-पिता जी भी आपकी पिटाई करते थे।

अमन कुमार

उतर-हां बचपन में कभी-कभी अच्छी खासी पिटाई हो जाती थी। पढ़ाई के लिए तो कभी पिटाई नहीं लगी। लेकिन स्कूल से घर आने के बाद किताब रखते ही खेलने के लिए निकल जाता था। मुझे खेलना काफी अच्छा लगता था। जबकि माता पिता जी खाना खाकर खेलने जाने की नसीहत देते थे। लेकिन खेलने की चाह इतनी थी कि खाना पीना का ध्यान नहीं रहता था। ऐसे में पिटाई होती थी।

प्रश्न:किसी के संगत का जीवन पर कितना असर पड़ता है।

तरुण कुमार

उतर-यदि आप ईमानदारी से अपने क‌र्त्तव्यों के प्रति निष्ठावान रहेंगे तो संगत आपको कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। मैं खुद अपने बारे में बता दूं कि जब मैं कॉलेज में गया तो वहां कुछ ऐसे भी मित्र थे जो तंबाकू का सेवन करते थे लेकिन मुझपर उनकी संगत का कभी कोई असर नहीं पड़ा। उनसे आज तक मेरी मित्रता है। हमेशा इस बात को ध्यान रखें कि अपने दोस्तों को बुराईयों को नहीं बल्कि उनके अंदर के अच्छाईयों को ग्रहण करें। यदि यह गुण आप अपने अंदर विकसित कर लेंगे तो निश्चित ही किसी भी संगत का कोई प्रभाव आप पर नाकारात्क नहीं पड़ेगा।

प्रश्न:डीएम बनने के लिए कितनी घंटे पढ़ाई करनी पड़ती है।

निशांत कुमार

उतर-देखिए डीएम बनने के लिए पढ़ाई का कोई समय मानक नहीं है। जरुरी नहीं है कि आप पूरे दिन रात पढ़ाई करें बल्कि अपने कमजोर विषयों को मजबूत बनाएं। इसके लिए जो भी समय आप दे सकते हैं दें। जरुरी नहीं है कि सभी विद्यार्थी समान समय ही देंगे। आपको समय से ज्यादा यह ध्यान रखना है कि हमें इस-इस पाठ को इतने दिनों के अंदर पूरा कर लेना है।

प्रश्न:सर आपके माता-पिता आपको डीएम बनाना चाहते थे।

उत्तम कुमार

उतर-देखिए हरेक माता-पिता की चाह होती है कि उनके बच्चे बेहतर करें। मेरे माता-पिता की भी यह इच्छा थी लेकिन उनलोगों द्वारा हमें विज्ञान विषय पढ़ने पर विशेष ध्यान देने को कहा गया था। जिसके कारण इंटर में विज्ञान संकाय की पढ़ाई भी की लेकिन बचपन से ही कला विषय के प्रति मेरा काफी झुकाव रहा था। मुझे लगा कि यदि मैं इस विषय की पढ़ाई करुं तो बेहतर कर सकता है। अचानक स्नातक में मैंने आर्स से अपनी पढ़ाई शुरु कर दी जिसके कारण अभिभावकों से डांट भी मिली लेकिन मैंने अपने पिताजी से अपनी मन की बात बताकर उन्हें मना लिया।

प्रश्न:सर जो कर्मी काम नहीं करते हैं आप उनपर क्या कार्रवाई करते हैं।

परमवीर प्रकाश

उतर-एक जिलाधिकारी के रुप में सरकार की योजनाओं को इस जिले में बेहतर तरीके से क्रियान्वित कराना मेरी जिम्मेदारी है। इसके लिए संबंधित अधिकारियों व कर्मियों से काम लेना भी मेरा क‌र्त्तव्य बनता है। पहले तो हम काम नहीं करने वाले कर्मियों को काफी समझाते हैं। उन्हें इसके लिए प्रेरित भी करते हैं फिर भी यदि वे लोग अपने काम के प्रति ईमानदारी नहीं बरतते हैं तो प्रक्रिया के तहत कार्य करना पड़ता है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि सरकारी प्रक्रिया में लापरवाही बरतने वाले कर्मियों के विरूद्ध स्पष्टीकरण से बर्खास्तगी तक की कार्रवाई की जाती है।

प्रश्न: सर मैं यूपीएससी परीक्षा में शामिल होना चाहता हूं इसकी सफलता के लिए क्या करना होगा।

विवेक कुमार

उतर-अच्छी सोंच है। आप बेहतर करें। लेकिन अभी से इसकी ¨चता करने की जरुरत नहीं है। अभी तो स्कूल की पढ़ाई पर अपना ध्यान केंद्रित रखें। जिस कक्षा में आप पढ़ रहे हैं उसकी विषय वस्तुओं को इस कदर गहन अध्यन करे कि उसमें कहीं कोई त्रुटि न रहे। इसी तरह आप हमेशा करते रहें। बस आप एक यूपीएससी उत्तीर्ण होने के सभी गुण विकसित कर लेंगे। एक बात और ध्यान रखनी होगी कि बाहर की गतिविधियों पर भी नजर रखें। अपने दिमाग को विकसित बनाएं।

प्रश्न: सर शिक्षा का स्तर उंचा होने के बाद भी अपराध कम क्यों नहीं हो रहा है।

दुर्गेश प्रकाश

उतर-समाज में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रवृति के लोग रहते हैं। हालांकि सकारात्मक सोंच वाले लोगों की तादाद काफी बढ़ गई है। मुट्ठी भर लोग ही समाज में अशांति फैलाते हैं। उनलोगों पर नियंत्रण के लिए पुलिस प्रशासन के द्वारा सख्ती से निपटा जा रहा है।


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