आज भी याद है एक रुपये में 16 सेर चावल दिए जाने के वादे
अरवल। वर्ष 1962 के आम चुनाव में पहली बार मतदान किया था। उस समय के नेताओं द्वारा किए गए वायदे आज भी याद हैं। चुनावी सभा में एक रूपए में 16 सेर चावल दिए जाने के वायदे किए जा रहे थे।
अरवल। वर्ष 1962 के आम चुनाव में पहली बार मतदान किया था। उस समय के नेताओं द्वारा किए गए वायदे आज भी याद हैं। चुनावी सभा में एक रूपए में 16 सेर चावल दिए जाने के वायदे किए जा रहे थे। वहीं दूसरी ओर बिना ब्याज के महाजन से धन दिलाने के वायदे भी किए जाते थे। खूब प्रचार प्रसार हो रहा था। पहली बार वोट देने का उत्साह चरम पर था। उन वायदों पर गौर करने के साथ-साथ स्थानीय प्रत्याशी का आंकलन किया। उसके बाद अपना वोट दिया। अब तो चुनाव के तरीके बदल गए हैं। विकास के साथ-साथ वायदे भी बदलने लगे हैं। आवश्यकताएं जिस कदर बढ़ती जा रही है लोगों की उम्मीद भी सरकार से उसी अनुरूप बढ़ती जा रही है। उम्र के इस पड़ाव में आकर सोचता हूं तो लगता है कि अभी और विकास की जरूरत है। कई बच्चे आज भी स्कूल जाने से वंचित रह रहे हैं। समाज में गरीबी तथा बेरोजगारी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस बार मतदान इन सभी मुद्दों को देखते हुए करूंगा। हालांकि पुराने जमाने की बातें कुछ और थी। लोग सिर्फ अपना हित नहीं सोचते थे। नेताओं में भी तामझाम नहीं हुआ करता था। सीधे जनसंवाद होता था। ऐसे में लोग अपनी समस्याओं को लेकर सवाल करते थे। अब तो चुनावी मौसम में ही जन समस्याओं पर चर्चा होती है। कुछ खास लोग ही प्रत्याशी से मिलने में सक्षम होते हैं। फिर भी यह जरूरी है कि राष्ट्र को सशक्त बनाने तथा योग्य उम्मीदवार के चयन में अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी हो। आडंबरों के बीच हमे सच्चे हितैषी को तलाशना होगा। ऐसी बात नहीं है कि आज के नेताओं में विकास की सोंच नहीं रह गई है। आज भी कई अच्छे राजनेता हैं तो कुछ स्वार्थी लोग भी हैं। बुद्धि विवेक से परखकर ही मतदान करने की जरूरत है। 19 मई को पूरे जोश खरोश से मतदान केंद्र पर जाउंगा और अपना वोट डालूंगा। जब मै 85 वर्ष का बुजुर्ग मताधिकार के लिए इस तरह उत्सुक हूं तो अन्य लोगों को भी लोकतंत्र के इस बड़े हथियार का उपयोग करने में संकोच नहीं करना चाहिए।