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रंग लाई रिफ्यूजी परिवारों की मेहनत, परती धरती उगल रही सोना

पहले जो जमीन बेकार पड़े हुए थे, अब वे सोना उगल रहे हैं। रिफ्यूजी परिवारों की मेहनत रंग लायी और बंजर जमीन पर अब हरियाली ही हरियाली दिख रही है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Sat, 19 May 2018 03:30 PM (IST)Updated: Sat, 19 May 2018 10:40 PM (IST)
रंग लाई रिफ्यूजी परिवारों की मेहनत, परती धरती उगल रही सोना
रंग लाई रिफ्यूजी परिवारों की मेहनत, परती धरती उगल रही सोना

अररिया [जेएनएन]। बिहार के अररिया जिले के बालू वाले जिन क्षेत्रों को कभी बंजर भूमि कहकर यूं ही छोड़ दिया जाता था, आज वह सोना उगल रही है। यहां बड़े पैमाने पर मूंगफली की खेती की जा रही है। जिस भूमि को महान साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणू ने परती पलार कहा था, आज मूंगफली उगलने से उसका रूपरंग बदल गया है।

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मुडबल्ला से लेकर सिरसिया तक फोरलेन के दोनों तरफ जहां बालू ही बालू थे, आज वहां चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखती है। बर्मा से आए रिफ्ययूजी परिवारों ने अपने अथक परिश्रम से यह चमत्कार कर दिखाया है। मूंगफली को चिकित्सक पौष्टिता से भरपूर मेवा बताते हैं। उनके अनुसार इसमें मांस की तुलना में 1.3 गुना, अंडे की तुलना में 2.5 गुना और फलों की तुलना में आठ गुना अधिक प्रोटीन की मात्रा होती है। प्रयोग से ब्लड प्रेशर नियंत्रण में रहता है।

मानिकपुर बारा के पवन कुमार, श्याम कुमार, दुलारचंद ऋषिदेव, रामानंद, अमर नाथ झा, बंटी भार्गव एवं मनीष कुमार के अलावा शुभंकरपुर के दर्जनों शरणार्थी व स्थानीय किसानों ने बताया कि आज से तीन-चार दशक पहले की रेगिस्तानी भूमि आज नयनाभिराम हरियाली में तब्दील हो चुकी है। मूंगफली की खेती से किसानों की स्थिति में बेहतर सुधार हुआ है। एक एकड़ भूमि में 60 किलो बीज लगता है और 15 क्विंटल मूंगफली का उत्पादन होता है। साढ़े तीन महीने में मूंगफली की फसल तैयार हो जाती है।  छिलका वाली लाल मूंगफली पांच हजार और उजली मूंगफली चार हजार रुपये क्विंटल बिकती है।

केवीके के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जावेद इदरीस ने बताया कि जिला मुख्यालय से सटे हडिय़ाबाड़ा से मुड़बल्ला, डोरिया, हल्दिया, पुरंदाहा, मानिकपुर रहिकपुर, सिमराहा, पोठिया, सिरसिया बारा हलहलिया, तिरसकुण्ड आदि गांव मूंगफली की पैदावार के हब बन चुके हैं। यहां साल में दो बार इसकी पैदावार ली जा रही है। प्रत्येक साल यहां जुलाई और नवंबर में इसकी बुआई होती है। 

सरकार ने प्रदान की बालू वाली जमीन

1985 में बर्मा से आकर कुछ लोग यहां बसे। सरकार ने उन्हें संरक्षण प्रदान किया और परती पलार की भूमि जोतने-बोने के लिए उन्हें आवंटित कर दिए। बर्मी रिफ्यूजी इस बालू वाले इलाके में खेतीबारी शुरू कर क्रांति के दूत बन गए। उन्होंने ही यहां मूंगफली की खेती करनी शुरू की। अच्छी पैदावार हुई तो उनका उत्साह बढ़ा और फिर देखते ही देखते पूरा इलाका मूंगफली की पैदावार का हब बन गया।


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