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मैथिल समाज के लोगों ने की सामा चकेवा पर्व की शुरुआत

अररिया। नरपतगंज प्रखंड क्षेत्र में आस्था का लोकपर्व सामा चकेवा धूमधाम से मनाया जा रहा है । छठ

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 01:23 AM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 01:23 AM (IST)
मैथिल समाज के लोगों ने की सामा चकेवा पर्व की शुरुआत
मैथिल समाज के लोगों ने की सामा चकेवा पर्व की शुरुआत

अररिया। नरपतगंज प्रखंड क्षेत्र में आस्था का लोकपर्व सामा चकेवा धूमधाम से मनाया जा रहा है । छठ पर्व के समापन के साथ हीं शारदा सिन्हा के गाये गए सामा चकेवा एवं चुगला चुगली के गीत जहां बजने लगे हैं वहीं इस पर्व को मनाने वाली महिलाएं मिट्टी की प्रतिमा को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है । इन प्रतिमाओं में सामा चकेवा, चुगला , सतभैया, वृंदावन एवं कुछ खास पक्षियों की प्रतिमा शामिल है। यह पर्व भाई बहन की पवित्र रिश्ते को दशार्ता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की पुत्री सामा के संबंध में किसी चुगले ने उसके पिता से सामा की शिकायत कर दी। कृष्ण गुस्से में आकर सामा को पक्षी बन जाने का श्राप दे दिया । बहुत दिनों तक सामा इस श्राप के कारण पक्षी बनी रही । ¨कतु अपने भाई चकेवा ने प्रेम व त्याग के बल पर सामा को मनुष्य का रूप दिलवाया । उसके साथ हीं चुगले को प्रताड़ित भी करवाया । उसी कथा की याद में भाई बहन के पवित्र रिश्ते को साल में छठ पर्व के आठवें दिन सामा चकेवा पर्व के रूप में निभाया जाता है । इस पर्व में चुगले की प्रतिमा बनाकर उसकी चोटी में आग लगाकर उसे जूते से पीटने की भी परंपरा है । परंपरा के अनुसार धान की नई फसल के चूड़े बनाकर अपने भाईयों को पर्व मनाने वाली बहनें चूड़ा दही खिलाती है । मिट्टी के हंडीनुमा के सेखारी में चूड़ा मूढ़ी एवं मिठाई भरकर सामा चकेवा पर्व के अंतिम दिन भाईयों को पांच पांच मुठ्ठी चूड़ा मूढ़ी एवं मिठाई देने का भी रिवाज है । जानकारों का कहना है कि सामा चकेवा मैथिल समाज के लोगों ने शुरू की थी जो आज तक चल रही है । दूसरे समाज के लोगों ने भी आस्था के साथ इसे अपना लिया । बुधवार की देर रात इस पर्व की समाप्ति की जाएगी । इस पर्व को लेकर क्षेत्र में महिलाओं एवं बच्चों में खासा उत्साह देखा जा रहा है । हाट एवं बाजारों में कुम्हार समाज के द्वारा बनाई गई मिट्टी के सामा चकेवा सेखारी की खूब बिक्री हो रही है ।

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