प्यार व अटूट रिश्तों को प्रतीक है भैया दूज
अररिया। बहनों का प्यार किसी दुआ से कम नहीं होता, वो चाहे दूर भी हो तो गम नहीं होता, अ
अररिया। बहनों का प्यार किसी दुआ से कम नहीं होता, वो चाहे दूर भी हो तो गम नहीं होता, अक्सर रिश्ते दूरियों से फीके पड़ जाते, पर भाई-बहनों का प्यार कभी कम नहीं होता। भैया दूज पर्व उक्त पंक्तियों को चरितार्थ करता है। दीपावली के साथ ही भाई-बहन के पावन प्रेम की प्रतीक भैया दूज(भ्रातृ द्वितीया) का भी अपना विशेष महत्व है। बहनें इस पर्व पर भाई की मंगल कामना कर अपने को धन्य मानती हैं। भैया दूज हिन्दू समाज में भाई-बहन के पवित्र रिश्तों का प्रतीक है7। पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। भाई-बहन के पवित्र रिश्तों के प्रतीक के पर्व को हिन्दू समुदाय के सभी वर्ग के लोग हर्ष उल्लास पूर्वक मनाया गया। इस पर्व पर जहां बहनें अपने भाई की दीर्घायु व सुख समृद्धि की कामना की। वहीं भाई भी सगुन के रूप में अपनी बहन को उपहार स्वरूप नये वस्त्र, मिठाई, आभूषण आदि भेंट दिए। इस पर्व पर बहनें प्राय: गोबर से मांडना बनाकर उसमें चावल और हल्दी के चित्र बनाते हुए सुपारी फल, पान, रोली, धूप, मिष्ठान आदि के साथ दीप जलाकर भाई की आरती उतारी।
टीका लगाने का है विशेष महत्व
शास्त्रों के अनुसार भैया दूज के मौके पर भाई बहन के घर निमंत्रण लेने पहुंचती है। निमंत्रण लेने के उपरांत बहनें अपने भाई के मांथे पर विजय के टीके लगाते हुए ईश्वर से भाई के लिए यश, प्रतिष्ठा, विजय व दीर्घायु आदि की कामना की।
भैयादूज में दान का महत्व
- भारतीय संस्कृति में प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान के साथ दान का विशेष महत्व है। दान में केवल मानव ही नही पशु पक्षी भी सम्मलित होते हैं, भाई दूज के दिन किसी निर्धन या विद्वान ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए। साथ ही गाय, कुत्ता व पक्षियों को भी यथायोग्य भोजन करवाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। परिवार के सभी लोग सूर्य को जल चढ़ाए, जो बहनें व्रत रखती हैं, वह दोपहर बाद भोजन कर सकती हैं लेकिन तब तक भाई की आरती कर लें। भाई को चाहिए कि वो सामर्थ्य के अनुसार अपनी बहन को उपहार अवश्य दें और यदि बहन किसी संकट में है तो उसे दूर करने का प्रयास करें।