बेरोजगारी ने बनाया संतोष कुमार को हुनरमंद
अररिया। नन्हीं चीटीं जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है, मन का विश्
अररिया। नन्हीं चीटीं जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है, मन का विश्वास रंगों में साहस भरता है, चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना नहीं अखरता है। राष्ट्रीय कवि सोहनलाल द्विवेदी की कविता की इन लाइनों को चरितार्थ कर रहे हैं अररिया प्रखंड के जमुआ पंचायत के ज्योतिष टोला के संतोष कुमार झा। किसान का यह बेटा एक दशक पहले बेरोजगार था। आज 20-25 महिलाओं को प्रतिदिन आजीविका मुहैया कर रहा है। अररिया शहर के हनुमंत नगर स्थित वार्ड 16 में अगरबत्ती बनाने का उद्यम शुरू करने से पहले संतोष कुमार झा खादी ग्रामोद्योग, दिल्ली के राजघाट स्थित प्रशिक्षण संस्थान से 15 दिनों का प्रशिक्षण लिए थे। इसी प्रशिक्षण संस्थान के माध्यम से दिल्ली में ही अगरबत्ती बनाने के कुटीर उद्योग से व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। इसके बाद गांव जमुआ लौट आए। घर पर ही त्रिलोक नाम से अगरबत्ती (अपने पिता के नाम से) बनाना और साइकिल से बाजार में जाकर बेचना शुरू किया। समय बीतने के साथ अगरबत्ती की मांग बढ़ती गई। अररिया से निकलकर पूर्णिया, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा और किशनगंज के व्यापारी संतोष से जुड़ते गए और व्यापार बढ़ता गया। घर -गांव छोड़ना पड़ा। संतोष अररिया जिला मुख्यालय पहुंच गया। हनुमंत नगर में जमीन खरीदारी की। मकान बना लिया। इसी में पूरे परिवार के साथ अगरबत्ती बनाने लगे। लोग जुड़ते गए। आज स्कूल जाने वाली छात्राएं एक-दो घंटे त्रिलोक अगरबत्ती के कारखाने में पहुंचकर अगरबत्ती बनाने का हुनर सीख रही हैं। इसके बदले में उन्हें पारिश्रमिक भी मिल रहा है। संतोष कुमार, वास्तव में बेरोजगारों के लिए आज आइकॉन हैं। घर, कार, यश और रेगुलर आय ही तो एक बेरोजगार को चाहिए । मैंने एक लाख रुपये का ऋण एसबीआइ, मार्के¨टग यार्ड, अररिया से लिया था। ऋण चुका दिया हूं। इस दौरान एलएलबी की डिग्री भी प्राप्त की। मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। रुचि के क्षेत्र में काम करके दूसरे को रोजगार देने में प्रत्येक बेरोजगार सक्षम हैं।
-संजय कुमार झा, हनुमंत नगर, अररिया।