झूठी आस में उजड़ गई मंझुवा बस्ती
अररिया। जहां उम्मीद की किरणें दूर- दूर तक दिखाई न दे, वहां आखिर बस्तियां कबतक आबाद र
अररिया। जहां उम्मीद की किरणें दूर- दूर तक दिखाई न दे, वहां आखिर बस्तियां कबतक आबाद रह सकती हैं। नेताओं के आश्वासन और झूठी दिलासे से तंग आकर लोग गांव छोड़कर दूसरे जगह अपना आसियाना बनाने में हीं अपनी भलाई समझ रहे हैं। वाकया जोकीहाट प्रखंड के तारण पंचायत अंतर्गत मझुवा गांव की है। करीब पांच सौ की आबादी गांव से घर- बार छोड़कर अररिया प्रखंड के पोखरिया पंचायत में शरण लिए हैं। गांव के बीचो-बीच जहां बीबी बच्चों के साथ लोग महफूज थे वहां अब बकरा नदी बहती है। खेतों में रेत ही रेत दिखता है। आधारभूत आवश्यकताएं तो दूर भोजन और शुद्ध पेयजल भी लोगों को नहीं मिल रहा है। सैकड़ों किसानों की हालात दयनीय हो गई। लोग पलायन में हीं अपनी भलाई समझ रहे हैं।
-कोट-
- गांव के बुजुर्ग मो. ताहिर ने कहा कि जीवन के 70 बसंत गुजार चुके हैं लेकिन गांव को कटान से बचाने का बीते सात दशक में सिर्फ आश्वासन मिला। मो. ताहिर, बुजुर्ग ग्रामीण, मझुवा। लोगों ने कहा कि बिहार की अबतक की सभी सरकारों ने मझुवा वालों के साथ सौतेला व्यवहार किया है। बुजुर्ग ताहिर ने बताया कि हमने जो जिल्लत की ¨जदगी गुजार ली वो हमारे बच्चों को नहीं गु•ारना पड़े इसलिए हमलोग मझुवा छोडक़र अररिया प्रखंड के पोखरिया पंचायत में घर बनाकर रह रहे हैं। तारण पंचायत के करीब पांच सौ गरीब व असहाय लोग मझुवा छोड़ चुके हैं। मझुवा गांव के किसान गरीबी और बेबसी की ¨जदगी जीने को मजबूर हैं। कुछ लोग तो भूमि के अभाव में बीबी व बच्चों के साथ दिल्ली और पंजाब की राह पकड़ लिए। दर्जनों किसान मजदूरी करने को मजबूर हैं। किसानों के सैंकड़ों एकड़ जमीन बकरा में समा गए जो बचे हैं उसपर बालू की परत जमी है। ये जमीन किसी काम के नही हैं। इस गांव में अबतक न तो बिजली गई और न बकरा नदी के कटान को रोकने की कोई ठोस पहल की गई। ग्रामीणों ने बताया कि वोट के दौरान बड़े बड़े आश्वासन मिल जाते हैं। कोई कहता है सड़क बना देंगे कोई कहता है बांध बना देंगे लेकिन जमीन पर दशकों से कुछ नहीं बना। सभी वायदे बालू की दीवार की तरह कबके गिर गए। लोगों के मन में
-कोट- गांव को कटान से बचाने के लिए पंचायत कोष में उतनी राशि नहीं है। मैं अपने स्तर से कई बार कटान रोकने के लिए सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाता रहा लेकिन मेरी एक भी किसी ने नहीं सुनी। वे गांव के लोगों के पुनर्वास के लिए कोशिश कर रहे हैं। मेराज आलम, मुखिया, तारण, जोकीहाट।