जहां पड़े थे बापू के चरण, झेल रहा उपेक्षा का दंश
अररिया: आज हम 15 अगस्त को लेकर अति उत्साहित हैं। लोकतंत्र के इस महान पर्व के दिन को खून-
अररिया: आज हम 15 अगस्त को लेकर अति उत्साहित हैं। लोकतंत्र के इस महान पर्व के दिन को खून- पसीना बहाने वाले महापुरुषों की याद ताजा हो जाती है। अररिया आजादी के दिवानों का कर्म भूमि रही है, लेकिन इस बात में भी कोई संदेह नहीं कि हमारा सिस्टम उनके पदार्पण की अमूल्य याद को सहेज पाने में नाकाम रहा है। जिस मार्ग पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चरण पड़े थे, आज भी वह ऐतिहासिक मार्ग उपेक्षा का शिकार बना हुआ है।
-------------------
- 1925 में इस मार्ग से गुजरे थे बापू
शहर के रामकृष्ण आश्रम की आगंतुक पंजी में बापू ने 25 अक्टूबर 1925 को अपने हाथों से लिखा कि मैं इस संस्था की उन्नति चाहता हूं, लेकिन वे जिस सड़क पर चल कर आश्रम तक पहुंचे आज वह पूरी तरह जर्जर बनी है तथा उस पर चलना हर वक्त जोखिम से भरा है। बाद के दिनों में इसी सड़क पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी यात्रा की। उन्होंने मौजूद एडीबी चौराहे के निकट एक सभा को संबोधित करते हुए'तुम मुझे खून दो- मैं तुम्हें आजादी दूंगा'के नारे को बुलंद किया। फिर वे आगे की ओर चलते हुए फारबिसगंज चले गए थे। जश्ने आजादी के हर मौके पर देश की इन महान विभूतियों की याद आना स्वाभाविक ही है, लेकिन उनकी यादों को सहेज कर रखने जिम्मेदारी हम सभों की है।
देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवाने के लिए स्वाधीनता सेनानियों के योगदान के प्रति राष्ट्र हर साल नतमस्तक होता है। लेकिन, उनकी यादों को संजोने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जाता। एडीबी चौक से आश्रम चौक जाने वाली सड़क पर 1925 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी उस वक्त आए थे जब पूरा इलाका प्लेग की बीमारी से जूझ रहा था। उन्होंने शारदा मां के शिष्य स्वामी महादेवानंद जी उर्फ मोती महाराज के सेवा प्रकल्प को अपनी आंखों से देखा और प्रसन्न होकर संस्था की निरीक्षण पंजी में अपनी टिप्पणी दर्ज की थी। लेकिन विडंबना देखिए कि जिला मुख्यालय में आज तक बापू की एक अदद प्रतिमा भी नहीं लगाई जा सकी है। इनके अतिरिक्त देश की आजादी के कई अन्य महानायक भी इस सड़क पर यात्रा कर चुके हैं, लेकिन हम इतनी महत्वपूर्ण सड़क को हेरिटेज बनाना तो दूर उसे सही हाल तक में नहीं रख पाते। इतना ही नहीं, पूरे सड़क में इसके ऐतिहासिक महत्व का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया है।