शहरनामा ::: अररिया :::
..तो दिल्ली में भी आशियाना होता लॉकडाउन में भी मैडम के वारे-न्यारे थे। पद के अनुरूप ग
..तो दिल्ली में भी आशियाना होता
लॉकडाउन में भी मैडम के वारे-न्यारे थे। पद के अनुरूप गुलाबी नोट भी खूब छांक रही थीं। नोटों की गिनती में इतनी मशगूल हो गई कि कुछ और दिखना ही बंद हो गया। दिख भी रहा था तो नजरअंदाज कर रही थीं। खासकर लोगों के हंगामे को। बार-बार लोग शिकायत लेकर आ रहे थे। अपना निवाला हड़पने की जानकारी दे रहे थे। वे एक कान से सुनती थीं और दूसरे कान से निकाल देती थीं। जितना लोगों का निवाला निगला जा रहा था उतना ही नोट हाथ में आ रहा था। इसकी शिकायत बड़े जनप्रतिनिधि से लेकर छोटे जनप्रतिनिधि लगातार ऊपर तक कर रहे थे। आखिरकार जब पानी सिर से ऊपर पहुंच गया तो लुटिया ही डूब गई। यहां से विदाई हुई तो एक कसक भी सुनाई दी। इतना में पटना में तो फ्लैट हो गया है, चार माह और रहते तो दिल्ली में भी अपना आशियाना हो ही जाता।
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रौब झाड़ना पड़ा महंगा
साहब थोड़ा हटकर हैं। साफ-सफाई वाले महकमे से हैं। स्थानीय स्तर पर जननप्रतिनिधि के बीच खूब रौब झाड़ते हैं। किसी को टेरते नहीं। नियम कानून बतियाने में उनके आगे कोई नहीं टिकता। पिछलका बड़े साहब के समय वे और भी ठसक में थे। अभी कंटेनमेंट जोन के करीब उनका ऑफिस आ गया। उनके महकमे से जुड़ कर्मचारियों को जब वर्दी वाले ने रोका तो जानकारी मिलते ही ताव में आ गए। मौके पर पहुंचकर वर्दीवाले को हड़काने का प्रयास किया। लेकिन वर्दीवाले ने पुलिसिया अंदाज जब डंडा उठाकर उनकी ऐसी तैसी कर दी। तब साहब के चेहरा देखते ही बनता था। पुलिस वाले ने डंडा दिखाकर वहां से यह कहते हुए भगा दिया कि बड़का साहब छोड़कर किसी के कहने पर नहीं जाने देंगे। फिर क्या, अपना उतरा हुए मुंह लेकर वापस चेंबर आए। वर्दी उतरवाने वाली मैडम व फिर बड़े साहब से शिकायत की। लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला।
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गेज मास्टर की ली नाप
नेताजी गेज मास्टर के नाम से जाने जाते हैं। पहले भाजपा में थे। बाद में कांग्रेस में आए। लंबे समय से कांग्रेस से जुड़े हैं। दिमागी इतने कि हंगामा बरपाने में आगे रहने पर भी कभी फंसते नहीं हैं। लॉकडाउन में खूब तफरी करते रहे। एकाध बार अगर वर्दी वाले ने रोकने का प्रयास किया तो हड़का कर निकल गए। उनका तरीका वर्दी वाले को खल गया। कई बार फोर व्हीलर पर रहने के कारण वर्दी वाले हाथ मलते रह जाते थे। एक दिन वर्दी वाले को मौका मिला। बाइक पर पीछे बैठे नेताजी सामने से गुजर रहे थे। रोकने पर इस बार भी हड़काया। लेकिन, दांव उल्टा पड़ गया। तड़ाक-तड़ाक.. पिछवाड़े पर महज कुछ सेकेंड में ही इतना डंडा पड़ गया कि नेताजी को लॉकडाउन का अहसास हो गया। वर्दी वाले से मिली सौगात के बाद गाड़ी पर बैठना तो दूर, उन्हें खड़ा होने पर भी टीस मारता है।
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बिना सीजन मुफ्त का गोभी
अभी सीजन गोभी का नहीं है। ऐसे में ताजी-ताजी गोभी दिख जाए तो फिर क्या कहने! थाने से निकलते ही वर्दी वाले मंझले साहब की गोभी पर नजर पड़ गई। पहुंच गए गोभी का मोलभाव करने। उनके साथ कई खबरनवीस भी थे। इस बीच मंडी वाले क्षेत्र के वर्दीवाले साहब पहुंच गए। मंझले साहब के सामने अपनी हनक दिखाने मे अपनी ओर से सबको सबको गोभी दिलाने लगे। विशेष ऑफर था कई ने फायदा उठाया। जब माले मुफ्त की बात हुई तो मंझले साहब फल भी लेने लगे। मंझले साहब के बॉडीगार्ड ने तो गोभी का झोला उठा लिया। लेकिन, उनके साथ रहे एक व्यक्ति ने जो गोभी खरीदी थी, वहीं रखकर फल दुकान की ओर गए। यहां रखा गोभी का पन्नी उनके बीच के ही एक व्यक्ति ने उठा लिया और वहां से निकल लिए। अब फ्री का गोभी लेने वाले बस स्वाद ही पूछकर काम चला रहे हैं।