बेल फल से हुई मां कालरात्रि की विशेष पूजा
अररिया। नवरात्र के सातवें दिन शनिवार को मां जगत जननी शेरावाली का सातवें स्वरूप कालरात्रि क
अररिया। नवरात्र के सातवें दिन शनिवार को मां जगत जननी शेरावाली का सातवें स्वरूप कालरात्रि की विशेष पूजा अर्चना श्रद्धालुओं द्वारा की गई। खासकर तेगछिया में बैलतोड़ी के दौरान दर्जनों श्रद्धालु शामिल हुए। इसके अलावा दुर्गा मंदिर पटेगना, शरणपुर, जमुआ, फुलबाड़ी, पेरवाखोड़ी, आदि गांवों के दुर्गा मंदिरों में बेलफल से मां कालरात्रि की पूजा हुई।
इस मौके पर जमुआ निवासी पंडित जगन्नाथ झा ने पूजा की परंपरा की जानकारी देते हुए कहा कि षष्ठी के सायंकाल श्रद्धालु गाजे-बाजे के साथ बेल वृक्ष को निमंत्रण देने पहुंचते हैं। सतवीं के अहले सुबह परोहित, पुजारी व श्रद्धालुओं की टोली गाजेबाजे के साथ मां भगवती की जयकारे हुए लगाते डोली लेकर फिर उसी बेल वृक्ष के पास पहुंचकर विधि-विधान पूर्वक पूजा अर्चना कर बेल वृक्ष में जोड़ा लगा बेल फल तोड़कर मंदिर लाते हैं तथा मध्यरात्रि को निशा पूजा के रूप में मां कालरात्रि की पूजा करते हैं। मां कालरात्रि के स्वरुप का चित्रण करते हुए उन्होंने कहा कि अत्यंत भयानक अंधेरी रात जैसी दिखती हैं मां। मां दुर्गा का सबसे भयंकर स्वरूप कालरात्रि की है। इनका रंग काला है। ये तीन नेत्रधारी हैं। मां कालरात्रि के गले में अछ्वुत माला है। हाथों में खड्ग तथा कांटा है और मां के वाहन गदर्भ(गधा) है। सिर के बाल बिखरे हैं। मां कालरात्रि की पूजा से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसीलिए इन्हें शंभकारी भी कहा जाता है। मां को चमत्कारी भी कहा जाता है। मां की भक्ति से दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत का भय दूर हो जाता है तथा इनके पूजन से ग्रहों की पीड़ा दूर होती है। अक्षय लोकों की प्राप्ति एवं ग्रहों की पीड़ा दूर होती है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में होता है। इसीलिए मां के इस स्वरूप को हृदय में अवस्थित कर साधक एक निष्ठ भाव से मां की आराधना करते हैं।