कई दबावों ने खस्ता कर दी ऑटो सेक्टर की हालत
आर्थिक सुस्ती ऑटो लोन में सख्ती महंगे तेल तथा उत्सर्जन व सुरक्षा मानकों के अनुपालन से लागत और कीमतों में बढ़ोतरी ने भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की हालत खराब कर दी है
नई दिल्ली, ऑटो डेस्क। आर्थिक सुस्ती, ऑटो लोन में सख्ती, महंगे तेल तथा उत्सर्जन व सुरक्षा मानकों के अनुपालन से लागत और कीमतों में बढ़ोतरी ने भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की हालत खराब कर दी है। हताश इंडस्ट्री अब बजट से आस लगाए बैठी है। जहां से उसे उम्मीद है कि उसकी मुश्किलें कम करने के कुछ न कुछ उपाय अवश्य किए जाएंगे। वैसे तो ऑटोमोबाइल की मौजूदा हालत की कई वजहें हैं। परंतु, परिवहन क्षेत्र के विशेषज्ञ मौजूदा आर्थिक सुस्ती को सबसे बड़ा कारण मानते हैं। इसकी शुरुआत पिछले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में ही हो गई थी, जब भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में गिरावट के आंकड़े सामने आए थे। उसका असर लोगों की क्रय शक्ति के साथ FMCG उत्पादों के और वाहनों की बिक्री पर सबसे ज्यादा पड़ा है।
दूसरी प्रमुख वजह उत्सर्जन और सुरक्षा के नए सख्त मानकों को लागू करने की विवशता है। परिणामस्वरूप वाहन निर्माण की लागत बढ़ी है और इसकी भरपाई के लिए कंपनियों को मजबूरन वाहनों के दाम बढ़ाने पड़े हैं। सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चर्स (सियाम) के मुताबिक नए मानकों को पूरा करने में इंडस्ट्री को अधिक खर्च करना पड़ रहा है। उत्पादन लागत बढ़ गई है। लोकसभा चुनाव के कारण भी बीते महीनों लोगों में वाहन खरीद को टालने की प्रवृत्ति दिखाई दी।
कार लोन देने में बैंक हो रहे सख्त
IL & FS घोटाले के बाद नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (NBFC) पर बढ़ी सख्ती का भी वाहनों की बिक्री पर असर पड़ा है। वित्तीय क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि पहले ये कंपनियां धड़ल्ले से वाहन खरीद के लिए कर्ज प्रदान करती थीं। परंतु अब काफी मीन-मेख के बाद मुश्किल से कर्ज दिया जाता है। नियम सख्त होने से बैंक भी ऑटो लोन देने में अब पहले जैसा उत्साह नहीं दिखा रहे हैं। पिछले एक साल से कमोबेश यहीं स्थिति है। ग्राहक फिलहाल नया वाहन खरीदने से बच रहे हैं। तेल और रुपये की कीमतों ने भी ऑटोमोबाइल बिक्री को प्रभावित किया है। जहां एक तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं, वहीं दूसरी तरफ रुपया कमजोर हो रहा है। ट्रांसपोर्ट विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग को इन दिनो संक्रमण के दौर से गुजरना पड़ रहा है। उन पर एक साथ कई चीजों को बदलने का दबाव है।
नए मानकों के चलते वाहनों की कीमतों में बढ़ोतरी
एक तरफ उन्हें अप्रैल, 2020 से BS-6 वाहनों के प्रोडक्शन की तैयारियां करनी पड़ रही हैं और गाड़ियों के सुरक्षा मानकों को मजबूत करना पड़ रहा है। जबकि दूसरी तरफ 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोडक्शन के सरकार के रोडमैप के हिसाब से भी चलना पड़ रहा है। इसके कारण लागत बढ़ने से वाहनों के दाम बढ़ाने पड़ रहे हैं। परिणामस्वरूप बिक्री में और गिरावट हो रही है। हालत ये है कि ऑटोमोबाइल कंपनियों के पास तकरीबन 30 हजार करोड़ रुपये के वाहनों का अनबिका स्टॉक जमा हो गया है। इंडियन फाउंडेशन ऑफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग के एसपी सिंह के अनुसार वाहन बीमा दरों में लगातार भारी बढ़ोतरी से भी वाहनों की बिक्री पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। वाहन बीमा दरों का निर्धारण बाजार पर नहीं छोड़े जाने से ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है।
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