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फोर्ड के डीलर को 31.4 kmpl के माइलेज का दावा पड़ा भारी, ग्राहक ने मुकदमा कर वसूले 7.43 लाख रुपये

शिकायतकर्ता ने कहा कि उसने देहरादून में AB Motors Pvt. Ltd. से जो Ford Fiesta खरीदा था उसका माइलेज लगभग 15 से 16 किलोमीटर प्रति लीटर था। इस प्रकार ओईएम और डीलर को शिकायतकर्ता को वाहन वापस करने के बाद 7.43 लाख का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

By BhavanaEdited By: Published: Sun, 17 Oct 2021 11:34 AM (IST)Updated: Mon, 18 Oct 2021 08:18 AM (IST)
फोर्ड के डीलर को  31.4 kmpl के माइलेज का दावा पड़ा भारी, ग्राहक ने मुकदमा कर वसूले 7.43 लाख रुपये
डीलर ने विज्ञापन में बताया कि कार औसतन 31 किलोमीटर प्रति लीटर का माइलेज देती है।

नई दिल्ली, ऑटो डेस्क।  भारत में वाहनों को बेचने के लिए कंपनियां लगातार कोशिश करती हैं, जिसके लिए विज्ञापन का सहारा भी लिया जाता है। हाल ही में कार के माइलेज को लेकर किया गया फोर्ड के डीलर का दावा भारी पड़ गया। दरअसल, एक फोर्ड डीलर को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) द्वारा एक शिकायतकर्ता को 7.43 लाख का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। क्योंकि डीलर ने विज्ञापन में बताया कि कार औसतन 31 किलोमीटर प्रति लीटर का माइलेज देती है।

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कार को इस्तेमाल करने पर निकला महज 16kmpl का माइलेज

डिस्ट्रिक्ट फोरम में एक शिकायत दर्ज की गई थी, जिसमें कहा गया था कि फोर्ड इंडिया ने राष्ट्रीय समाचार पत्रों में 31.4 kmpl के माइलेज का दावा करने वाले विज्ञापन डाले थे। हालांकि, शिकायतकर्ता ने कहा कि उसने देहरादून में एबी मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड से जो Ford Fiesta खरीदा था, उसका माइलेज लगभग 15 से 16 किलोमीटर प्रति लीटर था। इस प्रकार, ओईएम और डीलर को शिकायतकर्ता को वाहन वापस करने के बाद 7.43 लाख का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका ने केंद्र को अभद्र भाषा से निपटने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि एनसीडीआरसी ने एक निष्कर्ष दर्ज किया है कि कथित भ्रामक विज्ञापन 20 जून, 2007 को जारी किया गया था, जबकि वाहन 9 मार्च, 2007 को खरीदा गया था। "इसलिए, यह माना गया कि उपभोक्ता को विज्ञापन से गुमराह नहीं कहा जा सकता है।"

यहां यह ध्यान देने वाली बात है, कि यात्री वाहन में लगभग हर निर्माता द्वारा माइलेज के आंकड़ों का दावा किया जाता है। वास्तविक दुनिया में माइलेज को प्रभावित करने वाले कई कारकों के कारण आंकड़े इन दावों से हमेशा कम होते हैं। यहां तक ​​कि एआरएआई-प्रमाणित माइलेज के आंकड़ों भी वास्तविकता से परे होते हैं।

"पीठ ने कहा कि,"चूंकि डीलरों का हित वाहन के निर्माता से स्वतंत्र नहीं है, हम पाते हैं कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत उपभोक्ता मंचों द्वारा पारित आदेश उन डीलरों के खिलाफ कायम नहीं रह सकता है, जिनका हित वाहन के निर्माता के साथ समान है। वाहन, वास्तव में वाहनों के निर्माता से प्राप्त होता है, "पीठ ने कहा।


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