अगर आपके अन्दर भी है रिस्क लेने का जज्बा तो ये पढ़ें
अरुणिमा सिन्हा, एक ऐसा नाम जो कल तक पहचान की मोहताज है और आज उसका नाम देश की सबसे ऊंची चोटी के साथ सदियों के लिए जुड़ चुका है।
अरुणिमा सिन्हा, एक ऐसा नाम जो कल तक पहचान की मोहताज है और आज उसका नाम देश की सबसे ऊंची चोटी के साथ सदियों के लिए जुड़ चुका है। एक हादसे के तहत विकलांग हुई अरुणिमा के लिए एवरेस्ट की चोटी को फतह करना कोई आसान काम नहीं था क्योंकि अरुणिमा का बायां पैर कट चुका था। लेकिन मजबूत इरादों और बुलंद हौसलों ने अरुणिमा को दुनिया की सबसे पहली महिला विकलांग पर्वतारोही बनाया।
उत्तर प्रदेश निवासी अरुणिमा अपने शरीर की कमी को किस्मत मानकर बैठ जाती और रिस्क ना लेती तो आज वो पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल नहीं बन सकती थी। अरुणिमा ने अपनी शारीरिक विकलांगता को भुलाते हुए मानसिक हौसले को बुलंद कर एक बहुत बड़ा खतरा उठाया। यह खतरा था एवरेस्ट की चोटी पर सिर्फ एक टांग की बदौलत चढ़ना I
अपने एक पैर की विकलांगता को दरकिनार कर जिस तरह अरुणिमा ने एवरेस्ट की चोटी के सफर को पूरा किया वह परिचायक है माउंटेन ड्यू के उस जज्बे का, जिसमें कहा गया है कि ‘नाम बनते हैं रिस्क से’। माउंटेन ड्यू अरुणिमा के मजबूत इरादों और रिस्क लेकर मंजिल हासिल करने के हौसले को तहे दिल से सलाम करता है, चूंकि नाम तभी बनते हैं जब रिस्क लेने का जज्बा अंदर हो।
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