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ऑफिस में महिला बने रहने में कैसी शर्म? मर्दाना मिजाज़ नहीं, नारीत्व अपनाएं

कई बार ल‍ड़कियों का स्‍वभाव और उनका नाम कतई मेल नहीं खाता है। लिहाजा उन्‍हें समझने में भी भूल हो जाती है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 15 Sep 2016 12:31 PM (IST)Updated: Thu, 15 Sep 2016 01:33 PM (IST)
ऑफिस में महिला बने रहने में कैसी शर्म? मर्दाना मिजाज़ नहीं, नारीत्व अपनाएं

एक बार अपने नाम के बारे में सोचिए, क्या आपका स्वभाव आपके नाम से मेल खाता है? आपने अपने आसपास ऐसी कितनी ही लड़कियों को देखा होगा जिनका नाम कोमल, चांदनी, सौम्या, मुस्कान, लता वगैरह रखा गया होगा, लेकिन अपने नाम से बिल्कुल अलग या फिर ये कहिए कि उलट होता हैं इन लड़कियों का स्वभाव।

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अब इनमें जरा चांदनी नाम को ही लीजिए। जन्म लेते ही माता-पिता ने कितने अरमानों से नाम ‘चांदनी’ रखा होगा। उनकी कितनी उम्मीदें होगी चांदनी के स्वभाव को लेकर, लेकिन बड़े होकर चांदनी बनती है गर्म दिमाग, आक्रामक और हर वक्त दूसरों पर हावी होने वाली लड़की।

पूरे ऑफिस में अपने डर का आंतक फैलाकर मंद ही मंद मुस्कुराती है चांदनी। लेकिन परेशानी ये नहीं है कि चांदनी का नाम और स्वभाव बिल्कुल अलग है बल्कि हक़ीक़त में चांदनी ऐसी नहीं है। वह बहुत ही शांत और बात-बात पर इमोशनल हो जाती है। फिर वह ऑफिस में मर्दाना-सा मिजाज़ क्यों दिखाती है। क्या खुद को बोल्ड दिखाने के लिए मर्द बनने की जरूरत है?

बेशक कॉरपोरेट की दुनिया में पुरूष कर्मचारियों की तुलना में महिलाओं के सामने चुनौतियों का अम्बार लगा हुआ है, लेकिन अपने स्वभाव के उलट जाकर खुद को मजबूत दिखाने के लिए कर्कश, रूखापन होना कोई स्थायी तरीका नहीं माना जा सकता है।

अपने स्वभाव को स्वीकार करके उसे अपना हथियार या मजबूती बना लेना मर्द बनने से कहीं ज्यादा आसान है।जैसे ऑफिस में किसी बात पर आपको रोना आ जाता है। उसके बाद जब वो बुरा वक्त गुजर जाता है तो आपको अपने उस दिन के व्यवहार पर बेहद शर्मिदगी होती है। आप खुद को अनगिनत बार कोसती हैं।

लेकिन आप खुद सोचिए, अपनी भावनाओं को दिखाना कमज़ोरी नहीं बल्कि मजबूती की निशानी है, इसलिए मन भारी होने पर कभी-कभार रो लेना बुरा नहीं है। लेकिन याद रखिए ‘कभी-कभी’ रोने-धोने को कभी अपनी आदत न बनने दें।

अब ज़रा नजर डालते हैं चमेली टाइप के किरदारों पर। कॉरपोरेट की दुनिया में नारी मुक्ति के पहले दौर में ऐसी कई सारी चांदनियां चारों तरफ बिखरी पड़ी थीं, पर बदकिस्मती से कुछ दूसरे किस्म की महिलाएं अपने हथकंडों के कारण अपनी दूसरी कामकाजी बहनों की इमेज खराब करने में जुटी हुई हैं, जिसे कहीं से भी जायज़ मानना बिल्कुल नामुमकिन है। आप समझ ही गए होंगे कि इशारा किस तरह की महिलाओं (चमेली टाइप) की ओर है। जो क़ामयाब होने के लिए अपनी नाजुक अदाओं का जाल बिछाने से भी गुरेज नहीं करती।

इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि कॉरपोरेट की दुनिया में एक क़ैद करने वाली स्थिति में भी महिलाओं को न ही ‘मुसीबत की मारी बेचारी नारी’ बनना जरूरी है, और न मर्दों की इमेज में ढलना। बस अपने प्राकृतिक गुणों को स्वीकार करें। अगर आप बहुत भावुक हैं, तो इसे अपनी मजबूती बनाएं। जैसे, भावुक इंसान किसी भी अन्य व्यक्ति की बात को आसानी से समझ सकता है।

आत्मविश्वास के साथ अपने नारीत्व को अपनाइए। स्त्री होना शर्म की नहीं, गर्व की बात है। अपने आप को पूरी तरह, सभी गुणों समेत स्वीकार करें. मूड स्विंग्स, कभी-कभार रोना-धोना भी चलेगा। बस आदत मत बनाएं।कॉरपोरेट की दुनिया के बीच तालमेल बिठाती महिलाओं को ज़मीनी हक़ीक़त वाले ऐसे ही दिलचस्प मंत्र देती है ‘अपूर्वा पुरोहित’ की क़िताब 'लेडी यू आर नॉट ए मैन-एडवेंचर्स ऑफ ए वुमन एट वर्क’। जिसका हिंदी वर्जन है ‘नारी, मर्द बनना नहीं जरूरी!'

इस क़िताब की सबसे खास बात ये है कि वर्किंग वुमन्स के लिए सेल्फ हेल्प बुक है, जिसमें ज़िंदगी के कई पहलुओं को इस मजेदार अंदाज़ में लिखा गया है, जिसे पढ़कर बड़ी से बड़ी परेशानी को भी आप मुस्कुराते हुए हैंडल कर सकती हैं। महिलाएं ही नहीं, इस क़िताब को मर्द भी पढ़ सकते हैं और अपने आसपास की कामकाजी महिलाओं के स्वभाव और चुनौतियों का अंदाज़ा लगा सकते हैं।

‘लेडी यू आर नॉट ए मैन' (नारी, मर्द बनना नहीं जरूरी!) भारत के सभी जाने- माने बुक-स्टोर्स और वेबसाइट्स पर उपलब्ध है. अमेज़न पर घर बैठे इस लिंक पर क्लिक करके यह क़िताब मंगवाई जा सकती है।


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