आई.वी.एफ. संतान प्राप्ति की कारगर तकनीक - नि:संतान न हो निराश
1978 में हुई टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक में अब काफी नवीनतम तकनीकों का आविष्कार हुआ है जो कि निसंतान दम्पतियों की सभी समस्याओं के लिए एक कारगर तकनीक साबित हो रही है।
संतान की आस में जगह-जगह इलाज से थक चुके नि:संतान दम्पतियों के जीवन में आई.वी.एफ. या टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक कारगर है। हाल ही में किए गए शोध के मुताबिक देखा गया है कि शादी की बढ़ती उम्र, भाग-दौड़ व कैरियर बनाने के जुनून ने समाज में नि:संतानता की समस्या को बढ़ा दिया है। इस कारण लाखों महिलाओं की गोद खाली रह जाती हैं और ये बातें दम्पति समाज व परिवार से छुपाते हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर वर्ष जितनी शादियां होती हैं, उनमें से 10 से 15 प्रतिशत महिलाएं नि:संतानता से ग्रस्त होती हैं। 1978 में हुई टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक में अब काफी नवीनतम तकनीकों का आविष्कार हुआ है जो कि नि:संतान दम्पतियों की सभी समस्याओं के लिए एक कारगर तकनीक साबित हो रही है।
माहवारी बंद होने के बाद भी मां बनना संभव
महिलाओं में अण्डों की मात्रा सीमित होती है जो हर महीने कम होती रहती है। 35 वर्ष की उम्र के बाद अण्डों की गुणवत्ता व संख्या में तेजी से गिरावट होती है और जब किसी महिला में अण्डे खत्म हो जाते हैं तब उनका मासिक धर्म बंद हो जाता है। ऐसी महिलाओं का गर्भाशय भी सिकुड़ जाता है। इन महिलाओं को हार्मोन की दवा देकर माहवारी शुरू की जाती है, जिससे गर्भाशय की आकृति पुन: सामान्य हो जाती है तथा आई.वी.एफ. प्रक्रिया के जरिये बाहरी (डोनर) अण्डे की सहायता से पति के शुक्राणु का इस्तमाल कर भ्रूण बना लिया जाता है। इस भ्रूण को भ्रूण प्रत्यारोपण के माध्यम से गर्भाशय के अंदर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। डोनर एग आई.वी.एफ. प्रक्रिया के जरिये वे महिलाएं भी संतान प्राप्ति की ओर आगे बढ़ सकती है, जिनमें अण्डों की गुणवत्ता किसी सभी कारणवश खराब हो गई हो।
शादी के 2 साल बाद भी संतान न होने पर दम्पति आई.वी.एफ. जैसी उन्नत तकनीक अपना सकते हैं जिसकी सफलता की दर काफी बढ़ गई है तथा सभी समस्याओं में कारगर साबित हुई है
महिला की ट्यूब ब्लॉक हो, अधिक उम्र के चलते माहवारी बंद हो गई हो व अण्डो की गुणवत्ता में कमी आ गई हो, अनियमित माहवारी होने से अण्डो के बढऩे की समस्या हो तथा पुरुषों में शुक्राणु की मात्रा/ गुणवत्ता में कमी, शून्य शुक्राणु, धीमी गतिशीलता
अंधविश्वास नहीं-वैज्ञानिक तकनीक चुनें
आमतौर पर देखा जाता है कि बहुत से नि:संतान दम्पति संतान के लिए अंधविश्वास, झाड़-फूंक और टोने-टोटकों में पड़ जाते हैं और समय रहते डॉक्टरी इलाज नहीं कराते। विज्ञान की बढ़ती उपलब्धियों के चलते आज के ज़माने में बंद ट्यूब्स, कम या शून्य शुक्राणु, अंडों की खराब गुणवत्ता जैसी अलग-अलग समस्याओं का संपूर्ण उपचार संभव हो चुका है। ज़रूरत है तो समय पर सही मार्गदर्शन और अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाने की। आई.वी.एफ., आई.सी.एस.आई., आई.यू.आई., जैसे समुचित वैज्ञानिक तरीकों से संतान प्राप्ति संभव है।
आधुनिक प्रजनन तकनीक के अनुसार कोशिकाओं को उचित पर्यावरण देने के लिए लेब में उच्च मापदण्डों का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है। एम्ब्रियोलॉजी लेब में कई तकनीकों व उपकरणों का निरन्तर आविष्कार वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। जिससे दम्पति की सफलता की दर बढ़ाई जा सके। क्लोज्ड वर्किंग चैम्बर, लेजर हेचिंग, ब्लास्टोसिस्ट कल्चर, एम्ब्रियो मॉनिटरिंग सिस्टम, इम्सी, इक्सी इत्यादि ऐसे हीं कुछ सफलता बढ़ाने वाले आविष्कार है जो भ्रूण वैज्ञानिक को एक अच्छा भ्रूण बनाने में तथा अच्छे भ्रूण का चयन करने में निरन्तर मदद कर रहे हैं। आई.वी.एफ. की सफलता के लिए सभी सुविधाओं के युक्त एक अत्याधुनिक लेब अत्यन्त आवश्यक है।
जरूरी बातें - ध्यान दें
शुक्राणु की जांच अत्याधुनिक माईक्रोस्कोप व प्रशिक्षित लैब टेक्नीशियन की देख-रेख में करानी चाहिए।
आईयूआई, आईवीएफ, इक्सी तकनीक में दम्पति की सफलता भ्रूण वैज्ञानिक पर ज्यादा निर्भर करती है।
अत्याधुनिक उपकरणों से सुसर्जित लैब व अनुभवी भू्रण वैज्ञानिक सफलता दर बढ़ाने में सहायक है। उम्र के साथ शुक्राणु कम होने पर विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।
शरीर के बाहर महिला के अण्डे व पुरुष के शुक्राणु का लेब में निषेचन प्रक्रिया से भ्रूण तैयार कर महिला के गर्भाशय में पुन: प्रत्यारोपण किया जाता है | टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया निम्न भागो में विभाजित होती है :
1. अण्डों को बढ़ाना
प्राकृतिक तौर पर औरत के अंडाशय में एक महीने के दौरान एक ही अंडा बनता है, लेकिन आई.वी.एफ. प्रक्रिया में महिलाओं को ऐसी दवाइयां दी जाती है जिनकी सहायता से उनके अंडाशय में एक से अधिक अंडे बनने लगते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान महिला के अल्ट्रासाउंड कराए जाते हैं ताकि अण्डों की बढ़त को जांचा जा सके। अधिक अण्डे इसलिए जरूरी है ताकि उनसे ज्यादा से ज्यादा भ्रूण बनाए जा सकें जिनमें से सबसे अच्छे भ्रूण का चयन कर प्रत्यारोपण किया जा सके।
2. अण्डे को निकालना
अण्डों को शरीर से बाहर निकालने के लिए महिला को 10 से 15 मिनट के लिए बेहोश किया जाता है। अल्ट्रासाण्ड इमेजिंग की निगरानी में एक पतली सुई की मदद से अण्डे टेस्ट ट्यूब में एकत्रित किए जाते हैं जो कि लेब में दे दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया के बाद कुछ ही घंटों मंे महिला अपने घर जा सकती है।
3. अण्डा फर्टिलाइजेशन
लेब में पुरुष के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग किए जाते हैं तथा महिला से निकले अण्डे से निषेचन कराया जाता है। भ्रूण वैज्ञानिक निषेचन के लिए आई.वी.एफ. प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं। जिन पुरुषों के शुक्राणुओं की मात्रा सामान्य होती है व जिन पुरुषों में शुक्राणु की मात्रा काफी कम होती है (1-10 मिलियन/एमएल) उनके लिए इक्सी प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसमें एक अण्डे को पकड़, एक शुक्राणु उसके अंदर इन्जेक्ट किया जाता है। फर्टिलाइजेशन प्रक्रिया के बाद अण्डे को विभाजित होने के लिए इन्क्यूबेटर में रख दिया जाता है।
4. भ्रूण विकास
भ्रूण वैज्ञानिक इन्क्यूबेटर में विभाजित हो रहे भ्रूण को अपनी निगरानी में रखते हैं व उसका विकास समय-समय पर देखते हैं। 2-3 दिन बाद यह अण्डा 6 से 8 सेल के भ्रूण में परिवर्तित हो जाता है। भ्रूण वैज्ञानिक इन भ्रूण में से अच्छी गुणवत्ता वाले 1-3 भ्रूण प्रत्यारोपण के लिए चयन करते हैं। कई मरीजों में इन भ्रूण को 5-6 दिन लेब में पोषित कर ब्लास्टोसिस्ट बना लिया जाता है जिससे सफलता की संभावना बढ़ जाती है।
5. भ्रूण प्रत्यारोपण
भू्रण वैज्ञानिक विकसित भ्रूण या ब्लास्टोसिस्ट में से 1-3 अच्छे भ्रूण का चयन कर उन्हें भ्रूण ट्रांसफर केथेटर में ले लेते हैं। डॉक्टर इस केथेटर को महिला के गर्भाशय में निचे के रस्ते से डालकर एक पतली नली के जरिए उन भ्रूण को बड़ी सावधानी से अल्ट्रासाउण्ड इमेजिंग की निगरानी में औरत के गर्भाशय में छोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया में दर्द नहीं होता तथा महिला को बेड-रेस्ट की जरूरत नहीं होती है। भ्रूण का विकास व आगे की प्रक्रिया वैसी ही होती है जैसी प्राकृतिक गर्भधारण की होती है।
क्यों बढ़ रही है दूरियां
आज हम भागदौड़ भरी जीवनशैली को अपना चुके हैं। इसके चलते हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा है। नि:संतानता की समस्या का प्रमुख कारण भी इसी जीवनशैली की देन है। यह समस्या केवल ज्यादा उम्र के लोगों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि युवा दम्पति भी इससे जूझ रहे हैं। जीवनशैली में बदलाव, तनाव, हाल ही में चली देर से विवाह की प्रवृत्ति इसके मुख्य कारण है। आज कॅरियर के चलते महिलाएं गर्भधारण को कम प्राथमिकता दे रही है जिसके चलते संतान प्राप्ति की कोशिश की उम्र बढ़ गई है। महिलाओं में बढ़ती उम्र में अण्डों की गुणवत्ता में भारी गिरावट देखने को मिली है जिसके चलते अधिक उम्र में संतान प्राप्ति में समस्या हो रही है। आज महिला व पुरुष अपने टारगेट पूरे करने के चक्कर में ज्यादा समय ऑफिस में बिता रहे हैं जिसका असर उनकी शादी-शुदा जिंदगी पर भी देखने को मिल रहा है। कार्य में तनाव, यात्रा व कॅरियर के चलते महिला व पुरुष संतान प्राप्ति को टाल रहे हैं।
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