परिचय – ये किताब क्यों
इस किताब को लिखने का मकसद लोगों को खुद उनसे जोड़ने और ऐसे कई कारणों को समझाने का है जिनसे वो ये समझ पाए कि हम ऐसा क्यों सोचते, महसूस करते और काम करते हैं।
मेरे करियर के 17 सालों में और ख़ासतौर पर पिछले एक दशक में मुझे कई टीमों को लीड और मेंटर करने का मौका मिला। मैंने उन्हें मेंटर किया लेकिन इससे कहीं ज़्यादा मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने का मौका भी मिला। मेरे अनुभव के दौरान जिन टीमों ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया उनमें कुछ ऐसे लोग थे जो खुद से ही गहराई से जुड़े हुए थे – अपने विचारों और क्रियाओं की तर्क शक्ति से अवगत थे (या इसकी कमी से) साथ ही अपनी भावनाओं से अवगत थे।
ऐसे व्यक्ति खुद में आत्मविश्वास और सुरक्षा की भावना रखते हैं। आत्मनिरीक्षण की उनकी क्षमता उन्हें दूसरे के विचारों को स्वीकार करने में मदद करती है, जिससे टीम में बेहतर तालमेल विकसित होता है। ऐसे में, खुद से जुड़ाव की क्षमता किसी भी व्यक्ति के व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास में एक अहम कौशल बन जाती है।
दुर्भाग्यवश, ऐसे बहुत से लोग हैं जो खुद को गहराई से नहीं जानते हैं। हमारे स्कूल और कॉलेजों ने हमें कभी भी आत्मनिरीक्षण और खुद को पहचानने की कला सिखाई ही नहीं। हममें से ज़्यादातर लोग अपने माता-पिता और शिक्षकों की आशाओं को पूरा करने मात्र के लिए स्कूल गए। जिसके बाद हमने अपने युवाओं को दूसरी कई सामाजिक आशाओं को पूरा करने के लिए ढाला, जिसके लिए हमने कुछ ऐसे अहम मूल-तत्वों को पीछे छोड़ दिया जो हमारे यानी मनुष्य के अस्तित्व की पहचान हैं।
खुद को पहचानने का ये सफ़र बेहद ही दिलचस्प रहा है। मेरे लिए इस सफ़र की शुरुआत खुद से यह पूछकर हुई कि मैंने ऐसा क्यों सोचा, महसूस किया या इस तरह काम क्यों किया। मेरा मानना है कि खुद से जुड़े रहने की वजह से ही मैं जीवन के सभी अनुभवों का लुत्फ़ उठा पाया। जैसे-जैसे मैं इस सफ़र पर आगे बढ़ता जा रहा हूं वैसे-वैसे ही मुझे इस सफ़र में आने वाले दूसरे अनुभवों का इंतज़ार रहता है।
मुझे विश्वास हो चुका है कि सफ़लता हमारी धारणा पर आधारित हमारे रोज़मर्रा के फैसलों और कामों पर निर्भर करती है। हमारे विचार और भावनाएं सही आदतों और व्यवहार को विकसित करने में एक बहुत ही अहम भूमिका निभाती हैं जिन्हें हम रोज़मर्रा के जीवन में प्रकट करते हैं। चाहे हम ये भी जानते हों कि हमारा मस्तिष्क विचार, भावनाओं, आदतों, व्यवहार में अहम भूमिका निभाता है लेकिन हैरानी की बात है कि हममें से बहुत कम लोग जानते हैं कि हमारा मस्तिष्क इन सभी में किस तरह हमारी मदद करता है।
इस किताब को लिखने का मकसद लोगों को खुद उनसे जोड़ने और ऐसे कई कारणों को समझाने का है जिनसे वो ये समझ पाए कि हम ऐसा क्यों सोचते, महसूस करते और काम करते हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य मानव व्यवहार के विज्ञान के बारे में कुछ ऐसे रोचक तथ्यों को समझाना है जिनके बारे में हर व्यक्ति को पता होना चाहिए। यह खुद को और दूसरों को बेहतर तरीके से समझने में मदद करता है। इस किताब के विचार बड़े तौर पर न्यूरोसाइंस और मनोविज्ञान से लिए गए हैं।
लेखक के बारे में
विशाल जैकब वेवमेकर इंडिया (ग्रुपएम इंडिया के मैक्सस और एमईसी के विलय से बना) में वाइस प्रेसिडेंट, डिजिटल मीडिया एंड मार्केटिंग हैं। विशाल जैकब के पास डिजिटल मार्केटिंग, संचार योजना और उपभोक्ता व्यवहार के क्षेत्र में 17 से अधिक वर्षों का अनुभव है।
उन्होंने जिन टीमों की अगुवाई और उन्हें मेंटर किया, उनमें से कुछ टीमों ने भारत और वैश्विक स्तर पर मान्यता और सम्मान हासिल किया। विशाल एक एक्ज़िक्यूटिव कोच भी हैं जो न्यूरो लीडरशिप इंस्टीट्यूट द्वारा प्रमाणित हैं और टीए (लेन-देन संबंधी विश्लेषण) और एनएलपी (न्यूरो-लिंगुइस्टिक प्रोग्रेमिंग) में सर्टिफाइड हैं। उन्होंने डिजिटल मार्केटिंग पर दो किताबों का सह-लेखन किया है और देश के कुछ शीर्ष बी-स्कूलों में गेस्ट लेक्चरर भी हैं।