Move to Jagran APP

टी.बी. से पीडि़त महिला : आईवीएफ से मां बनने की उम्मीद

टी.बी. के कीटाणु श्वास के जरिये शरीर में प्रवेश करते हैं फिर खून के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंच जाते हैं।

By Manoj YadavEdited By: Published: Mon, 22 Jan 2018 01:48 PM (IST)Updated: Fri, 02 Feb 2018 01:33 PM (IST)
टी.बी. से पीडि़त महिला : आईवीएफ से मां बनने की उम्मीद
टी.बी. से पीडि़त महिला : आईवीएफ से मां बनने की उम्मीद

टी.बी. दुनिया की काफी पुरानी बीमारी हैं, 20 वीं सदी की शुरुआत के बाद से सामान्य और जननांग टी.बी. की घटनाएं विशेष रूप से विकसित देशों में निरन्तर कम हो रही हैं, लेकिन भारत जैसे कई विकासशील देशों में टी.बी. आज भी एक गंभीर बीमारी बनी हुई है।

loksabha election banner

जननांग टी.बी. महिलाओं में नि:संतानता की एक बड़ी समस्या के लिए जिम्मेदार है। डॉक्टर पवन यादव, आईवीएफ एवं लेप्रोंस्कोपी विशेषज्ञ (इंदिरा आईवीएफ, लखनऊ) ने बताया की महिलाओं के जननांग के भीतरी हिस्से (जेनाइटल ट्रैक्ट) में माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लूसिस के बैक्टीरिया का पहुंचना, नि:संतानता का बड़ा कारण है। अगर कोई महिला गर्भवती होने से पहले टी.बी. से पीडि़त हो तो उसे उपचार पूरा हो जाने तक गर्भधारण नहीं करने की सलाह दी जाती है।

टीबी कैसे फैलती है

टी.बी. के कीटाणु श्वास के जरिये शरीर में प्रवेश करते हैं फिर खून के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंच जाते हैं। शरीर का कोई भी अंग दिमाग से लेकर चमड़ी तक इससे प्रभावित हो सकता है। आमतौर पर इसका संक्रमण सबसे ज्यादा फेफड़ों, हड्डियों को और महिला की जनेन्द्रियों को प्रभावित करता है।

टी.बी. के बाद गर्भधारण की तकनीक

वाराणसी स्थित इंदिरा आईवीएफ सेंटर के गायनोकोलॉजी एवं आईवीएफ एक्सपर्ट डॉक्टर रणविजय सिंह ने जिन महिलाओं की ट्यूब्स टी.बी. के कारण खराब हो चुकी हैं उनको सबसे पहले विशेषज्ञ सलाह में टी.बी. का ईलाज पूरा करने की हिदायत दी है |

टी.बी. का ईलाज खत्म होने के बाद 6 माह तक वे प्राकृतिक रूप से संतान प्राप्ति की कोशिश कर सकते हैं। कई महिलाओं में अगर ट्यूब का कुछ भाग सही हो तथा दूसरा भाग खराब हो उनमें एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (भ्रूण का ट्यूब में विकसित होना) की समस्या हो सकती है।

अक्सर टी.बी. से प्रभावित महिलाओं में ट्यूब का बंद होना, ट्यूब में पानी भरने की समस्या के चलते डॉक्टर लेप्रोस्कॉपी का ऑपरेशन कर ट्यूब खुलवाने की सलाह देते हैं।

“अगर टी.बी. के इंफेक्शन से ट्यूब के अंदर के महीम रेशे (सिलियां) खराब हो चुके हैं तो अक्सर ऐसे मरीजों में लेप्रोस्कॉपी के बाद गर्भधारण की समस्या काफी कम रहती है क्योंकि अण्डे व शुक्राणु का मिलन ट्यूब में नहीं हो पाता है। ऐसे मरीजों के लिए आई.वी.एफ. (टेस्ट ट्यूब बेबी) एक अच्छा विकल्प है” डॉक्टर शिल्पा अद्की, महिला रोग एवं आईवीएफ विशेषज्ञ, इलाहाबाद ।

क्या है टी.बी. का कारण

टी.बी. रोग के लिए माइकोबैक्टीरियम ट्युबरक्युलोसिस नामक जीवाणु जिम्मेदार है। यह जीवाणु देश भर में हर साल 20 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित करता है। वैसे तो टी.बी. मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है लेकिन अगर इसका समय रहते उपचार न कराया जाए तो यह शरीर के दूसरे भाग जैसे किडनी, फैलोपियन ट्यूब्स, गर्भाशय और मस्तिष्क को भी संक्रमित कर सकता है।

टी.बी. प्रभावित करती है प्रजनन क्षमता

इन्दिरा आईवीएफ आगरा सेंटर की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रजनी पचोरी ने समझाया की यह बीमारी प्रमुख रुप से फेफड़ों को प्रभावित करती है, लेकिन समय रहते इसका उपचार ना कराया जाए तो यह रक्त के द्वारा शरीर के दूसरे भागों में भी फैल कर उन्हें संक्रमित कर सकती है। यह संक्रमण महिला के प्रजनन तंत्र एवं अंगों जैसे अण्डवाहिनी नलिकाओं (फैलोपियन ट्यूब्स), अण्डाशय एवं गर्भाशय को प्रभावित कर गंभीर क्षति पहुंचा सकती है जो आगे चलकर गर्भधारण में समस्या उत्पन्न कर सकती है। महिलाओं में टी.बी. के कारण गर्भाशय की परत (एण्डोमेट्रियम) में खराबी व ट्यूब बंद अथवा खराब होने की समस्या हो सकती है।

जब टी.बी. संक्रमण फैलोपियन ट्यूबों, गर्भाशय तक पहुंच जाता है तो गर्भधारण में परेशानियां पैदा करता है।

पेल्विक ट्युबरक्युलोसिस का पता लगाना कई बार मुश्किल होता है क्योंकि कई मरीजों में लम्बे समय तक इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते, कई मामलों में इसका पता तब चलता है जब दम्पती नि:संतानता से जुड़ी समस्या लेकर जांच के लिए आते हैं ।

टी.बी. का असर- गर्भधारण में समस्या

पूरी दुनिया के लगभग एक चौथाई टी.बी. के मरीज भारत में हैं। जिसमें से 19 प्रतिशत महिलाओं के अंदर ही पाई जा रही है। महिलाओं के अंदर टी.बी. उनकी जनेन्द्रियों को प्रभावित करती हैं ।

टी.बी. से प्रभावित जननांग

ग्लोबल लाईब्रेरी ऑफ विमन्स मेडिसीन के अनुसार अगर महिला को टी.बी. हुई तो उसकी ट्यूब खराब होने की संभावना 90 प्रतिशत, गर्भाशय की परत में खराबी 50-60 प्रतिशत, अण्डाशय प्रभावित होने की संभावना 20-30 प्रतिशत तक रहती है।

टी.बी. का ट्यूब्स पर असर

इसमें ट्यूब्स के अंदर की महीम रेशे खराब हो सकते हैं जिसके कारण ट्यूब्स पूरी तरह से ब्लॉक या खराब हो सकती है। अगर ट्यूब्स सही तरीके से काम नहीं कर पा रही हैं तो प्राकृतिक तरीके से गर्भ ठहरने की संभावना ना के बराबर रह जाती है। ट्यूब अगर पूरी तरह से खराब नहीं हुई हो तो उसमें भ्रूण ट्यूब में फंसने और बच्चेदानी तक ना पहुंच पाने की समस्या से एक्टोपिक प्रेग्नेंसी की गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है जिससे ट्यूब शरीर में फटने की संभावना रहती है। इस स्थिति में ऑपरेशन से ट्यूब को निकालना पड़ सकता है।

टी.बी. का गर्भाशय पर असर

अगर किसी महिला को बचपन में ही टी.बी. हो जाती है तो यह बीमारी उसके गर्भाशय की परत को नष्ट कर सकती है जिससे की उसकी माहवारी कम हो सकती है या पूरी तरह से बंद हो सकती हैं। टी.बी. गर्भाशय में संक्रमण का कारण बन सकता है। इस संक्रमण की वजह से गर्भाशय के अंदर मौजूद परत पतली भी हो सकती है जिसके कारण आगे जाकर भ्रूण को ठीक तरह से विकसित होने में बाधा होती है।

जांच कैसे की जाये

टी.बी. की जाँच कई तरीके से की जा सकती है, जैसे फेफड़ों की टी.बी. में बलगम की जांच, हड्डी में है तो उसका टुकड़ा और अगर महिला के गर्भाशय, ट्यूब में टी.बी. है तो ऑपरेशन में लिया गया एक छोटा टुकड़ा जांच के लिए भेजा जा सकता है ।

टी.बी. का ईलाज

टी.बी. चाहे किसी भी जगह की हो इसका पूरा ईलाज विशेषज्ञों की सलाह में ही लेना चाहिए। इसके ईलाज के लिए सरकार की ओर से काफी प्रयास किये जा रहे हैं। टी.बी. की सभी जांचे व दवाइयां मुफ्त उपलब्ध करवाई जा रही हैं। टी.बी. से ग्रसित मरीजों के लिए अलग से अस्पताल हैं।

क्या है आई.वी.एफ. (टेस्ट ट्यूब बेबी) तकनीक?

कानपूर की आईवीएफ विशेषज्ञ डॉक्टर प्रतिभा सिंह ने आईवीएफ प्रक्रिया को समझाया जिसमे अण्डे व शुक्राणु का मिलन प्राकृतिक गर्भधारण में ट्यूब के अंदर होता है। टेस्ट ट्यूब बेबी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अण्डे व शुक्राणुओं को शरीर से बाहर फर्टिलाइज कराया जाता है।

इस प्रक्रिया में महिला के अण्डों को बाहर निकाल पति के शुक्राणु से लेब में निषेचन कर भ्रूण तैयार किए जाते हैं। इस भ्रूण को ३-5 दिन लैब में ही विकसित कर महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।

1. अण्डों को बढ़ाना

प्राकृतिक तौर पर औरत के अंडाशय में एक महीने के दौरान एक ही अंडा बनता है, लेकिन आई.वी.एफ. प्रक्रिया में महिलाओं को ऐसे इंजेक्शन दिए जाते हैं जिनकी सहायता से उनके अंडाशय में एक से अधिक अंडे बनने लगते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान महिला के अल्ट्रासाउण्ड कराए जाते हैं ताकि अण्डों की बढ़त को जांचा जा सके। अधिक अण्डे इसलिए जरूरी है ताकि उनसे ज्यादा से ज्यादा भ्रूण बनाए जा सकें जिनमें से सबसे अच्छे भ्रूण का चयन कर प्रत्यारोपण किया जा सके।

2. अण्डे को निकालना

अण्डों को शरीर से बाहर निकालने के लिए महिला को 10 से 15 मिनट के लिए बेहोश किया जाता है। अल्ट्रासाउण्ड इमेजिंग की निगरानी में एक पतली सुई की मदद से अण्डे टेस्ट ट्यूब में एकत्रित किए जाते हैं जो कि लेब में दे दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया के बाद कुछ ही घंटों में महिला अपने घर जा सकती है।

3. अण्डा फर्टिलाइजेशन

लेब में पुरुष के सीमन से पुष्ट शुक्राणु अलग किए जाते हैं तथा महिला से निकले अण्डे से निषेचन कराया जाता है।

भ्रूण वैज्ञानिक निषेचन के लिए आई.वी.एफ. प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं। जिन पुरुषों के शुक्राणुओं की मात्रा निल होती है व जिन पुरुषों में शुक्राणु की मात्रा काफी कम होती है (1-10 मिलियन/ एमएल) उनके लिए इक्सी प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसमें एक अण्डे को पकड़, एक शुक्राणु उसके अंदर इन्जेक्ट किया जाता है। फर्टिलाइजेशन प्रक्रिया के बाद अण्डे को विभाजित होने के लिए इन्क्यूबेटर में रख दिया जाता है।

4. भ्रूण विकास

भ्रूण वैज्ञानिक इन्क्यूबेटर में विभाजित हो रहे भ्रूण को अपनी निगरानी में रखते हैं व उसका विकास समय-समय पर देखते हैं।

2-3 दिन बाद यह अण्डा 6 से 8 सेल के भ्रूण में परिवर्तित हो जाता है। भ्रूण वैज्ञानिक इन भ्रूण में से अच्छी गुणवत्ता वाले 1-3 भ्रूण प्रत्यारोपण के लिए चयन करते हैं। कई मरीजों में इन भ्रूण को 5-6 दिन लेब में पोषित कर ब्लास्टोसिस्ट बना लिया जाता है जिससे सफलता की संभावना बढ़ जाती है।

5. भ्रूण प्रत्यारोपण

भू्रण वैज्ञानिक विकसित भ्रूण या ब्लास्टोसिस्ट में से 1-3 अच्छे भ्रूण का चयन कर उन्हें भ्रूण ट्रांसफर केथेटर में ले लेते हैं। डॉक्टर इस केथेटर को महिला के गर्भाशय में निचे के रस्ते से डालकर एक पतली नली के जरिए उन भ्रूण को बड़ी सावधानी से अल्ट्रासाउण्ड इमेजिंग की निगरानी में औरत के गर्भाशय में छोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया में दर्द नहीं होता तथा महिला को बेड-रेस्ट की जरूरत नहीं होती है। भ्रूण का विकास व आगे की प्रक्रिया वैसी ही होती है जैसी प्राकृतिक गर्भधारण की होती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.