आप भी जानें आखिर पश्तूनों की आवाज दबाने को कैसे बेरहम हो गई है पाक सेना और सरकार
पश्तून तहफूज मूवमेंट को पाकिस्तान की सेना हर हाल में कुचल देना चाहती है। इसी वजह से सेना ने पीटीएम को अंतिम चेतावनी दी है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पश्तून तहफूज मूवमेंट (PTM) कुछ दिनों से लगातार चर्चा में है। पाकिस्तान की सेना इसको लेकर काफी बौखलाई हुई है। पाक सेना की तरफ से मेजर जनरल आसिफ गफूर (आईएसपीआर) ने पीटीएम को चेतावनी देते हुए कहा कि उनका वक्त अब खत्म हो चुका है। रावलपिंडी में हुई इस प्रेस कांफ्रेंस में सेना के प्रवक्ता ने यहां तक कहा कि अशांति फैलाने के मकसद से इस मूवमेंट को अफगानिस्तान और भारत की खुफिया एजेंसियां पैसा मुहैया करवा रही हैं। उनका कहना था कि यह लोग विदेशों के हाथों का खिलौना बन गए हैं जो इनका इस्तेमाल कर रहे हैं।
सेना की खुली धमकी
आपको बता दें कि यह मूवमेंट काफी समय से पाकिस्तान की सेना की निगाहों में चढ़ा हुआ है। इसके सदस्यों को न सिर्फ देशद्रोह का आरोप लगाकर जेलों में डाला गया बल्कि इनके किसी भी प्रोग्राम को कवर करने पर मीडिया को प्रतिबंधित किया गया है। सेना इस पर सफाई दे रही है कि जो कुछ हो रहा है वह सबकुछ नियमों के तहत हो रहा है। प्रवक्ता ने रावलपिंडी में यहां तक कहा कि इस मूवमेंट के सदस्यों को जितनी छूट मिलनी चाहिए थी मिल चुकी है। अब उनका वक्त पूरा हो गया है।
पीटीएम नेता की दो-टूक
सेना के प्रवक्ता की प्रेस कांफ्रेंस के बाद ही मूवमेंट के सदस्य और नेशनल असेंबली के सदस्य मोहसिन ने साफ कर दिया कि सेना का बयान झूठ से ज्यादा और कुछ नहीं है। मोहसिन ने असेंबली में कहा कि वह इस संगठन को मिलने वाले एक-एक पैसे का सुबूत देने को तैयार हैं। उन्होंने सरकार को इस बात के लिए खुली छूट भी दी कि वह इस मूवमेंट से जुड़े और इसके अकाउंट की तह तक जाकर जांच करवा लें और पूरे देश को इसका सच भी बता दें। उन्होंने सेना पर आरोप लगाया कि यह सब कुछ मूवमेंट को बदनाम करने की साजिश के तहत किया जा रहा है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि मूवमेंट के तहत सरकार से उन लोगों के बारे में जवाब मांगा जा रहा है जिन्हें बिना किसी आरोप के सजा दी जा रही है और उनकी हत्या तक की जा रही है। जब कभी सरकार से इस पर जवाब मांगा जाता है तो उन पर विदेशी फंडिंग का आरोप लगा दिया जाता है। उन्होंने असेंबली में यह भी कहा कि उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जताने से कोई नहीं रोक सकता है।
इसके इतिहास पर एक नजर
पीटीएम पश्तूनों के मानवाधिकारों के लिए चलाया जाने वाला एक मूवमेंट है। यह मूवमेंट खासतौर पर खैबर पख्तून्ख्वां और बलूचिस्तान में रहने वाले पश्तूनों के लिए शुरू किया गया था। इसकी शुरुआत मई 2014 में डेरा इस्माइल खान में गोमाल यूनिवर्सिटी के आठ छात्रों ने की थी। इस मूवमेंट का मकसद वजरीस्तान में बिछी लैंड माइन को हटाना था, जो आए दिन लोगों की मौत की वजह बन रही थी। यह इलाका फेडरल एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरिया या फाटा के अंतर्गत आता है। जनवरी 2018 में इस मूवमेंट में नया मोड़ उस वक्त आया जब एक फर्जी मुठभेड़ में नकीबुल्ला मेहसूद नाम के शख्स की बेरहमी से हत्या कर दी गई।
हिरासत में हत्या
हकीकत में मेहसूद की हिरासत में लेकर हत्या की गई थी, जिसको बेहद चालाकी से मुठभेड़ दिखा दिया गया था। इसके बाद इस आंदोलन में मेहसूद नाम को जोड़ लिया गया, जिसका अर्थ वजरीस्तान में रहने वाली मेहसूद जाति से संबंधित था। वहीं पश्तून पाकिस्तान में रहने वाले सभी पश्तूनों से संबंधित था। इस आंदोलन के तहत मांग की गई की मेहसूद के हत्यारे पुलिसवाले राव अनवर को गिरफ्तार कर उसको नियमानुसार सजा दी जाए। नवंबर 2018 में फिर इस आंदोलन में नया मोड़ आया। पुलिस ने पश्तो कवि ताहिर द्वार को इस्लामाबाद से हिरासत में लिया और उसे इस कदर पीटा गया कि उसकी मौत हो गई।
ताहिर का मामला
ताहिर की लाश अफगानिस्तान के दर बाबा जिले में उसके गायब होने के 18 दिन बाद मिली। ताहिर के परिजनों के साथ मिलकर पीटीएम ने उसकी हत्या की अंतरराष्ट्रीय एजेंसी से कराने की मांग की। 2019 में यह मूवमेंट फिर तब दुनिया के सामने आया जब मूवमेंट के एक सदस्य अरमान लोरालाइ की हिरासत में मौत हो गई। इसको लेकर जबरदस्त प्रदर्शन हुआ और पुलिस ने मूवमेंट से जुड़े करीब 20 कार्यकर्ताओं को नजरबंद कर दिया। इसमें मूवमेंट से जुड़े बड़े नेता गुलालाई इस्माइल और अब्दुल्ला नंगयाल भी शामिल थे।
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