मौत या जिंदगी! सत्ता के लिए विरोधियों को मरवाने वाले बशीर की किस्मत कोर्ट करेगा तय
तख्तापलट के बाद सूडान के पूर्व राष्ट्रपति बशीर की किस्मत का फैसला वहां की अदालत करेगी। उन्हें मौत मिलेगी या देश निकाला फिलहाल यह कोई नहीं जानता।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। तीन दशकों तक सूडान की सत्ता पर काबिज राष्ट्रपति उमर अल बशीर का तख्तापलट होने के बाद उन्हें कहां रखा गया है ये कोई नहीं जानता है। दरअसल, बशीर के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत (आईसीसी) ने दो बार गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। इनमें पहला गिरफ्तारी वारंट 4 मार्च 2009 और दूसरा 12 जुलाई 2010 को जारी किया गया था। उनपर हत्या, जबरन विस्थापन, प्रताड़ना और बलात्कार के आरोप हैं। उन पर युद्ध अपराध के भी दो आरोप हैं। कोर्ट चाहता है कि बशीर को उनके हवाले किया जाए जिससे उनपर मुकदमे की कार्यवाही को आगे बढ़ाया जा सके। लेकिन सूडान की अंतरिम सैन्य काउंसिल ने आईसीसी की इस मांग को ठुकरा कर साफ कर दिया है कि बशीर पर सूडान के कानून के हिसाब से ही मुकदमा चलाया जाएगा और दोष सिद्ध होने पर सजा भी वहीं सुनाई जाएगी।
सैन्य काउंसिल के पॉलिटिकल कमेटी के चेयरमेन लेफ्टिनेंट जनरल उमर जाइन अब अब्दीन का कहना है कि यदि बशीर को आईसीसी को सौंपा जाता है तो देश की बड़ी बदनामी हो जाएगी, लिहाजा ऐसा कदम नहीं उठाया जाएगा। यही वजह है कि बशीर को तख्तापलट के तुरंत बाद किसी अज्ञात जगह पर रखा गया है, जिसकी जानकारी कुछ खास लोगों के अलावा अन्य किसी के पास नहीं है। लेकिन इन सभी के बीच यह बड़ा सवाल है कि आखिर बशीर को सजा ए मौत मिलेगी या फिर पूर्व प्रधानमंत्री की तरह ही उन्हें देश निकाला दे दिया जाएगा। बहरहाल, इसका जवाब समय आने पर मिल जाएगा। लेकिन, फिलहाल सैन्य कांउसिल ने देश में अपनी पकड़ मजबूत करते हुए अमेरिका समेत दूसरे देशों में मौजूद अपने राजदूतों को बर्खास्त कर दिया है।
आपको बता दें कि तीन दशकों तक सूडान पर राज करने वाले बशीर भी कभी अपने शासक का तख्तापलट कर सत्ता में आए थे। वो 30 जून 1989 का दिन था जब सूडानी सेना के कर्नल उमर अल बशीर ने कुछ सैन्य अधिकारियों के साथ मिल कर प्रधानमंत्री सादिक अल-महदी का तख्तापलट कर सत्ता को अपने हाथों में ले लिया था। महदी को देश निकाला दे दिया गया था। इतना ही नहीं उन्होंने देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को भंग कर दिया और शरिया कानून लागू कर दिया था। बशीर ने सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री का पद खत्म कर दिया और महदी के विश्वासपात्रों को बशीर ने मौत की सजा सुनाई। कई नेताओं और पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया। 1993 में उन्होंने खुद को देश का राष्ट्रपति घोषित कर दिया.
वर्ष 2000 में महदी स्वदेश वापस लौटे और 2014 के चुनाव में खड़े भी हुए। 2014 में महदी को बशीर का तख्तापलट करने के आरोपों के चलते फिर देश निकाला दिया गया था। इसके बाद वह जनवरी 2017 में दोबारा वापस लौट आए थे। बशीर ने कभी नहीं सोचा होगा उनका हश्र भी ऐसा ही होगा और उन्हें भी ऐसा ही दिन देखना पड़ेगा। सत्ता में रहते हुए दारफूर में 2003-2008 उन्होंने संगठित हथियारबंद गुटों को खत्म करने के नाम पर कई लोगों को निशाना बनाया था। आरोप तो यहां तक है कि उन्होंने इसकी आड़ में सूडानीज लिबरेशन मूवमेंट और जस्टिस एंड इक्वलिटी मूवमेंट के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के दौरान फूर, मसालित और जाघावा समुदायों के खात्मे के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। इस दौरान करीब 3 लाख लोग मारे गए थे।
आपको बता दें कि बशीर के तख्तापलट के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और नार्वे ने सूडान में नागरिक शासन की वकालत करते हुए सैन्य शासकों से इसकी पहल की अपील की है। तीनों देशों ने संयुक्त रूप से वार्ता शुरू करने के लिए यहां के सैन्य शासन से आग्रह किया है। तीनों देशों ने कहा है कि सूडान की नई सत्तारूढ़ सैन्य परिषद ने एक निर्वाचित सरकार को सत्ता हस्तांरित करने का वादा किया है। सैन्य काउंसिल की पॉलिटिकल कमेटी के चेयरमैन अल-अब्दीन ने कहा है कि वह ताकत के भूखे नहीं हैं। सैन्य काउंसिल का कहना है कि दो साल के भीतर नागरिक सरकार को सभी अधिकार दे दिए जाएंगे। इतना ही नहीं सरकार बनने के बाद सेना सरकार के काम में कोई में दखल नहीं देगी। हालांकि इसमें ये भी कहा गया है कि रक्षा और आतंरिक मंत्रालय सैन्य काउंसिल के अधीन ही रहेंगे। हालांकि तख्तापलट के बाद देश के कई हिस्सों में हिंसा की घटनाएं हुई हैं, इसमें अब तक करीब 16 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं बशीर को हटाने के बाद जिनके हाथों में सत्ता सौंपी गई थी उन्होंने (जनरल अवद इब्ने ऑफ) ने भी इस्तीफा दे दिया था।
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