जानें- क्या होती है Disinfodemic, कहीं आप भी तो अनजाने में नहीं हो रहे इसके शिकार
कोविड-19 को लेकर कई तरह की भ्रामक जानकारियां फैलाई जा रही हैं। संयुक्त राष्ट्र और उसकी सभी सहयोगी एजेंसियों ने इस पर चिंता जताई है। इनका कहना है कि इसकी बदौलत लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ रही हैं।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। कोविड-19 महामारी और इसकी वैक्सीन को लेकर फैलाई जा रही भ्रामक जानकारियों के मद्देनजर एक शब्द का इस्तेमाल यूनेस्को की तरफ से किया गया है। ये शब्द है डिसइंफोडेमिक। इसका अर्थ भ्रामक जानकारियों की महामारी फैलाने से है। दरअसल दुनिया भर में निराधार और झूठ पर आधारित जानकारियों की भरमार को देखते हुए ही कि इसको ये नाम दिया गया है। यूनेस्को का कहना है कि ये किसी महामारी से कम नहीं है। इस तरह की भ्रामक जानकारियों की बदौलत कई जिंदगियां खतरे में पड़ रही हैं।
इसकी वजह से बहुत से लोग अपने लक्षणों का इलाज गैर-साबित तरीको से इस उम्मीद के साथ कर रहे हैं कि इससे वो ठीक हो जाएंगे। संयुक्त राष्ट्र और इसके साथ काम करने वाले सभी संगठनों ने इस तरह की भ्रामक जानकारियों पर अंकुश लगाने की अपील की है। यूएन प्रमुख एंटोनियो गुटारेश ने भी इस पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि जैसे ही वायरस पूरी दुनिया में फैला, सोशल मीडिया के तहत इसको लेकर गलत सूचनाओं की बाढ़ भी आ गई।
संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) का कहना है कि इस दुष्प्रचार से कुछ भी अछूता नहीं रहा है। कोविड-19 को लेकर यूनेस्को पहले भी इस तरह की भ्रामक जानकारियों को लेकर चेतावनी जारी कर चुका है। संगठन का कहना है कि हाल के वर्षों में इस तरह की भ्रामक जानकारियों को फैलाने के लिए तकनीक का जिस तरह से इस्तेमाल किया गया है उसका असर भी समाज पर पड़ा है। इस तरह के दुष्प्रचार अभियानों के कारण तथ्यों पर आधारित पत्रकारिता के लिए और खासतौर से महामारी से लड़ाई के मौजूदा माहौल में लोगों की जिंदगियों के लिए जोखिम पैदा कर दिया है। इसके डायरेक्टर गाई बर्जेर का कहना है कि अब ये आम बात बन गई है। बहुत ज्यादा भय, अनिश्चितताओं और आनजानेपन के माहौल में मनगढ़ंत जानकारियों को जड़ जमाने और पनपने के लिए उर्वरक जमीन मिल जाती है। अगर भ्रामक जानकारियां अपनी जड़े जमा लेंगे तो इनकी वजह से सही जानकारियां कभी सामने नहीं आ पाएंगी।
बर्जेर का कहना है कि कोविड-19 से बचाव को लेकर कहा जा रहा है कि शराब पीने, अत्यधिक तापमान का सामना करने या अत्यधिक ठंडे मौसम से ये वायरस खत्म हो जाता है। इसमें ये भी कहा जा रहा है कि युवाओं और अफ्रीकी मूल के लोगों को इससे डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि वहां पर तापमान काफी अधिक होता है। इसमें किसी ऐसी दवाओं के इस्तेमाल को लेकर भी भ्रामक जानकारियां फैलाई जा रही हैं जिनका इस्तेमाल दूसरी बीमारियों में किया जाता है। उनके मुताबिक इस तरह की भ्रामक जानकारियों की बदौलत लोगों में लापरवाही का माहौल बन जाता है और इससे लोगों को खतरा बढ़ जाता है। इस तरह की जानकारियों को फैलाने के पीछे कई वजह हो सकती हैं। ऐसा करने वाले लोगों के डर और उनकी नासमझी का पूरा फायदा उठाते हैं। कुछ लोग अनजाने में इन जानकारियों को आगे बढ़ाने का काम करते हैं।