Move to Jagran APP

आसियान सम्मेलन में भारत से मात मिलने के बाद चीन को नेपाल से झटका

आसियान सम्मेलन से इतर भारत ने जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ कूटनीतिक संबंधों को और पुख्ता किया।

By Lalit RaiEdited By: Published: Wed, 15 Nov 2017 04:11 PM (IST)Updated: Wed, 15 Nov 2017 05:03 PM (IST)
आसियान सम्मेलन में भारत से मात मिलने के बाद चीन को नेपाल से झटका
आसियान सम्मेलन में भारत से मात मिलने के बाद चीन को नेपाल से झटका

नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। चीन एक तरफ भारत को उभरती हुई शक्ति के रूप में मान्यता देता है तो दूसरी तरफ वो भारत का राह में रोड़े भी अटकाता रहता है। लेकिन डोकलाम के मुद्दे पर कड़ा प्रतिवाद मिलने के बाद अब उसके रुख में बदलाव आ रहा है। फिलीपींस की राजधानी मनीला में आसियान देशों के सम्मेलन में पीएम मोदी ने कहा कि भारत सह-अस्तित्वपूर्ण के सिद्धांत में विश्वास करता है। भारत ने न तो कभी किसी देश के मामले में दखल दिया न ही वो ऐसी मंशा रखता है। आसियान के मंच से जहां एक तरफ वैश्विक चुनौतियों को सौहार्द के वातावरण में निपटने पर बल दिया गया वहीं एक नई पहचान चार देशों के साझा प्रयास में दिखी। भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने एक साथ मिलकर चलने पर सहमति जताई। चार देशों के इस प्रयास पर चीन की तरफ से सधी प्रतिक्रिया आई कि उसे उम्मीद है कि इस तरह के गठबंधन से कोई नकारात्मक असर नहीं होगा। इन सबके बीच नेपाल ने चीनी कंपनी की सहयोग से बननेवाली पनबिजली के एक बड़े प्रोजेक्ट के करार को रद्द कर दिया है।  

loksabha election banner

चार देशों का गठबंधन और चीन पड़ा अकेला

चार देशों के बीच बने इस गठबंधन को लेकर इन देशों के विदेश मंत्रलयों के अधिकारियों की पहली बैठक पिछले मनीला में हुई। आसियान सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री मोदी की राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ मुलाकात हुई तो उसी दिन ट्रंप की एबी और टर्नबुल से भी अलग-अलग बैठक हुई। मंगलवार को मोदी की एबी और टर्नबुल के साथ द्विपक्षीय मुलाकात हुई थी। कूटनीतिक जानकारों के मुताबिक, चारों देशों के प्रमुखों ने जानबूझकर साझा बैठक नहीं की। साझा बैठक होने से चीन को थोड़ा ज्यादा कड़वा संदेश चला जाता। लेकिन द्विपक्षीय स्तर पर होने वाली इन बैठकों में भी जिस तरह से हिंद और प्रशांत महासागर क्षेत्र में सुरक्षा के मुद्दे को आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया गया है, वह संदेश देने के लिए काफी है।

माना जा रहा है कि जल्द ही चारों देश अपने विदेश, रक्षा व वित्त मंत्रियों की अलग-अलग बैठक की घोषणा करेंगे। उसके बाद ही राष्ट्र प्रमुखों की संयुक्त बैठक प्रस्तावित की जाएगी। वैसे यह बात अब पक्की लग रही है कि भारत-अमेरिका-जापान के बीच होने वाले नौसैनिक अभ्यास में आस्ट्रेलिया को जल्द ही शामिल कर लिया जाएगा। संभवत: अगले वर्ष जो सैन्य अभ्यास होगा उसमें आस्ट्रेलिया शामिल होगा। तीन देशों का पिछला सैन्य अभ्यास कुछ महीने पहले बंगाल की खाड़ी में हुआ था। जापान इस गठबंधन को लेकर सबसे ज्यादा उत्साहित है। वह इसे सिर्फ सैन्य या सुरक्षा तक सीमित नहीं रखना चाहता बल्कि वह इसका आर्थिक व निवेश के क्षेत्र में भी विस्तार करने का इच्छुक है।विदेश मंत्रलय में संयुक्त सचिव (पूर्व) प्रीति सरन के मुताबिक, मोदी और एबी के बीच द्विपक्षीय हितों के साथ ही वैश्विक हितों को लेकर काफी अच्छी चर्चा हुई है। इसमें भारत और जापान की मदद से एशिया-अफ्रीका कॉरीडोर बनाने को लेकर भी विमर्श हुआ। इस बारे में पिछले दिनों जब एबी भारत आए थे तब यह सहमति बनी थी कि दोनों देश एशिया से लेकर अफ्रीका तक में रेल व सड़क नेटवर्क तैयार करेंगे और इसे कई औद्योगिकी पार्को से जोड़ा जाएगा। माना जाता है कि यह चीन की प्रस्तावित वन बेल्ट वन रोड (ओबोर) का मुकाबला करेगा। अमेरिका ने भी भारत और जापान की इस रणनीति का स्वागत किया है। आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री के साथ मोदी की बातचीत में हिंद-प्रशांत महासागर सुरक्षा मुद्दों के साथ आतंकवाद का मुद्दा सबसे अहम रहा।
जानकार की राय
दैनिक जागरण से खास बातचीत में ओआरएफ के प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि आसियान सम्मेलन में भारत ने साफ कर दिया कि क्षेत्रीय स्थिरता को कायम रखते हुए देशों को आगे बढ़ने की जरूरत है। आज विश्व के सामने जिस तरह की चुनौतियां हैं उससे निपटने के लिए बिना किसी पूर्वाग्रह के सदस्य देशों को एक साथ आने की जरूरत है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए हर्ष वी पंत ने कहा कि आसियान सम्मेलन से इतर ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ भारत के गठजोड़ से चीन का चिंतित होना स्वाभाविक है। ये बात अलग है कि चीन की तरफ से सधी प्रतिक्रिया आई है। दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर जापान के प्रति चीन आक्रामक रहता है। इसके साथ ही अमेरिकी प्रभुत्व को चीन चुनौती देता रहता है। इस तरह की परिस्थितियों में अमेरिका को भी एक ताकतवर और सुलझे हुए देश के मदद की जरूरत है, ऐसे में अमेरिका को भारत में भविष्य दिखाई देता है। 

नेपाल ने चीन को दिया झटका
नेपाल ने चीन को बड़ा झटका दिया है। सरकार ने ढाई अरब डॉलर (करीब 16,300 करोड़ रुपये) की लागत से बनने वाले देश के सबसे बड़े पनबिजली संयंत्र के लिए चीन की एक कंपनी के साथ हुए समझौते को रद कर दिया है। चीन के गेझौबा ग्रुप कॉरपोरेशन के साथ बूढ़ी गंडक पनबिजली निर्माण के लिए करार हुआ था। ऊर्जा मंत्रलय के अनुसार ठेका देने की प्रक्रिया में खामियों के चलते यह कदम उठाया गया है।

ऊर्जा मंत्री कमल थापा ने सोमवार को ट्विटर पोस्ट में कहा कि कैबिनेट ने बूढ़ी गंडक पनबिजली परियोजना के लिए गेझौबा ग्रुप कॉरपोरेशन के साथ हुआ समझौता रद कर दिया है। थापा नेपाल के उप प्रधानमंत्री भी हैं। उन्होंने कैबिनेट बैठक के बाद यह जानकारी दी। ज्ञात हो कि इस साल जून में माओवादियों के प्रभाव वाली गठबंधन सरकार ने बिजली कमी को पूरा करने के लिए बूढ़ी गंडक नदी पर 1200 मेगावाट का संयंत्र बनाने के लिए गेझौबा कंपनी को ठेका दिया था। इस पर कई आलोचकों ने सवाल उठाए और आरोप लगाया कि बगैर किसी बोली प्रक्रिया के ही चीनी कंपनी को ठेका दे दिया गया। इसके बाद गठित संसदीय समिति ने ठेका रद करने के लिए सिफारिश की थी। बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है। चीन के नेपाल के साथ अच्छे संबंध हैं और कई क्षेत्रों में सहयोग किया जा रहा है।

एक और चीनी कंपनी को मिली है मंजूरी
नेपाल ने देश के पश्चिमी भाग में सेती नदी पर 750 मेगावाट का संयंत्र बनाने के लिए चीन की सरकारी कंपनी थ्री गार्ज इंटरनेशन कोर्प को मंजूरी दी है।
भारतीय कंपनियां भी बना रहीं संयंत्र
नेपाल में दो भारतीय कंपनियों जीएमआर ग्रुप और सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड को भी एक-एक पनबिजली संयंत्र के निर्माण का काम मिला है। इन दोनों परियोजनाओं की क्षमता 900-900 मेगावाट बताई गई है।
बिजली के लिए भारत पर निर्भर
हिमालयी राष्ट्र नेपाल की नदियों से बिजली उत्पादन की भरपूर संभावनाएं हैं लेकिन धन और तकनीक की कमी इसके आड़े आ जाती है। उसे अपनी सालाना 1,400 मेगावाट की जरूरत पूरा करने के लिए भारत पर निर्भर रहना पड़ता है।

यह भी पढ़ें: गुजरात चुनाव में भाजपा नहीं कर पाएगी ‘पप्पू’ का इस्तेमाल, क्या राहुल को मिलेगा फायदा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.