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जानिए क्या है नेट जीरो एमिशन समझौता, 2050 तक क्या करेंगे इसमें शामिल देश

दुनिया भर के देश ग्लोबल वर्मिंग से परेशान है। इसको ध्यान में रखकर यूरोपीय देशों के बीच समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत अब उनको काम करना होगा।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sat, 14 Dec 2019 06:03 PM (IST)Updated: Sun, 15 Dec 2019 02:52 PM (IST)
जानिए क्या है नेट जीरो एमिशन समझौता, 2050 तक क्या करेंगे इसमें शामिल देश
जानिए क्या है नेट जीरो एमिशन समझौता, 2050 तक क्या करेंगे इसमें शामिल देश

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दुनिया भर के प्रमुख देश ग्लोबल वर्मिंग को लेकर चिंतित है। कुछ देशों ने तो इसको ध्यान में रखकर काम भी शुरू कर दिया है और कुछ देश जागरूकता फैलाने की दिशा में काम कर रहे हैं जिससे 2050 से पहले इसमें सुधार हो सके। देशों का मानना है कि यदि अभी से इस दिशा में काम नहीं शुरू किया गया तो बहुत देर हो जाएगी और वातावरण बिगड़ता चला जाएगा। हिमालय और अन्य जगहों पर जमी बर्फ दिनोंदिन पिघलती जा रही है, ये एक बड़ा चिंता का कारण है। फिलहाल ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के नेताओं की लंबी बातचीत के बाद कार्बन उत्सर्जन को लेकर एक नया समझौता हो गया है। अभी पोलैंड इस समझौते से बाहर है।

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कार्बन न्यूट्रल बन जाएंगे यूरोपीय संघ के देश 

जानकारी के अनुसार यूरोपीय संघ ने समझौता किया है कि साल 2050 तक यूरोपीय संघ के सदस्य देश कार्बन न्यूट्रल हो जाएंगे। यूरोपीय संघ परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने कहा कि हमारे बीच जलवायु परिवर्तन को लेकर एक समझौता हुआ है यह बेहद जरूरी था। यूरोप की कार्बन उत्सर्जन को लेकर एक इच्छाशक्ति दिखाना महत्वपूर्ण था। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन के यूरोपियन ग्रीन डील के एलान के बाद हुआ ये पहला सम्मेलन था। इस डील के मुताबिक वर्तमान में जो अर्थव्यवस्था चल रही है उसकी कायापलट कर 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य रखा गया है।

2050 के लिए तय किया गया लक्ष्य 

साल 2015 में पेरिस में जलवायु समझौता हुआ था। उसमें 2050 को ध्यान में रखा गया था। अब इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को जीवाश्म ईंधनों की वजह से हो रहे कार्बन उत्सर्जन को कम करना होगा और इन ईंधनों का विकल्प भी तलाशना होगा। ये विकल्प ऐसे होंगे जो किसी तरह का प्रदूषण न फैलाएं। फिलहाल पोलैंड ने इस समझौते में शामिल होने से इनकार कर दिया। इसके पीछे भी एक बड़ा कारण है दरअसल पोलैंड में 80 प्रतिशत ऊर्जा उत्पादन कोयले की मदद से होता है। पोलैंड ने फिलहाल खुद को इस समझौते से बाहर रखा है। 

पोलैंड के पास जून 2020 तक का समय 

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा कि पोलैंड के पास जून 2020 में होने वाले सम्मेलन तक सोचने का समय है कि वे क्या करना चाहते हैं। यूरोपीय संघ में इस मुद्दे पर कोई मतभेद नहीं है। एक सदस्य देश इस मुद्दे पर और विचार करना चाहता है। इसमें कोई परेशानी नहीं है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि पोलैंड भी इस समझौते में शामिल हो जाएगा। चेक रिपब्लिक ने भी इस समझौते पर आपत्तियां जताईं लेकिन जब सदस्य देशों ने एक विकल्प के रूप में परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल पर सहमति जता दी तो चेक ने आपत्ति वापस ले ली। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आने वाले सालों में पृथ्वी का औसत तापमान 1.5 से 2 डिग्री तक बढ़ जाएगा। इसको रोकने के लिए जीवाश्म ईंधनों का उपयोग कम करना ही होगा। यूरोपीय संघ की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 20 साल में यूरोपीय संघ का कार्बन उत्सर्जन कम तो हुआ है लेकिन अभी भी विश्व के कार्बन उत्सर्जन का 9.6 प्रतिशत हिस्सा यूरोपीय संघ से निकलता है।

नेट जीरो एमिशन का मतलब क्या है? 

नेट जीरो एमिशन का मतलब एक ऐसी अर्थव्यवस्था तैयार करना है जिसमें जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल एकदम से खत्म हो जाए। उसका वैकल्पिक इंतजाम कर लिया जाए और सभी इंडस्ट्रीज उसी से चलें। कार्बन उत्सर्जन करने वाली दूसरी चीजों का इस्तेमाल एकदम कम हो, जिन चीजों से कार्बन उत्सर्जन होता है उसे सामान्य करने के लिए कार्बन सोखने के इंतजाम भी साथ में किए जाएं। नेट जीरो एमिशन का मतलब एक ऐसी व्यवस्था तैयार करना है जिसमें कार्बन उत्सर्जन का स्तर लगभग शून्य हो। इसकी वजह आईपीसीसी द्वारा की गई एक भविष्यवाणी है। इसके मुताबिक आने वाले सालों में अगर ठोस इंतजाम नहीं किए गए तो पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ जाएगा। इस बढ़ोत्तरी को दो डिग्री से कम रखने के लिए नेट जीरो एमिशन जैसी व्यवस्था बेहद जरूरी है।

कुछ जगहों पर नेट जीरो एमिशन तक पहुंचना कठिन 

कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां नेट जीरो एमिशन को प्राप्त करना कठिन है। ऊर्जा के क्षेत्र में नेट जीरो एमिशन प्राप्त करने के लिए नए ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल बढ़ाना होगा। ऐसे अधिकतर स्रोत मौसम के हिसाब से काम करते हैं। ऐसे में मौसम के हिसाब से ऊर्जा पैदा कर उसे स्टोर करना होगा, इसके लिए इंटेलिजेंट ग्रिडों का निर्माण करना होगा। यह एक खर्चीला और समय लेने वाला काम है हालांकि हीटिंग, शिपिंग और कारखानों में कार्बन एमिशन को जीरो करना एक बड़ी चुनौती है। साथ ही बीफ जैसे खाने की बढ़ती मांग भी एक बड़ी चुनौती है जिसमें बड़ी मात्रा में मीथेन गैस निकलती है।

जीरो एमिशन के लिए लेना होगा निगेटिव एमिशन का सहारा 

नेट जीरो एमिशन के लिए निगेटिव एमिशन का सहारा भी लेना होगा। निगेटिव एमिशन से मतलब ऐसी चीजों से है जो कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने का काम करते हैं। पेड़ ऐसी प्राकृतिक चीज है जो कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने का काम करते हैं। इसके लिए बड़े स्तर पर पेड़ लगाने होंगे। साथ ही खेतों में मक्के जैसी फसलें लगानी होंगी जो बड़े होने के साथ ज्यादा कार्बन सोखती हैं।

बायो एनर्जी का इस्तेमाल बढ़ाना होगा 

नेट जीरो एमिशन के लिए बायो एनर्जी का इस्तेमाल भी बढ़ाना होगा जिसमें कार्बन डाई ऑक्साइड का इस्तेमाल ऊर्जा उत्पादन में हो जाता है। साथ ही प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर बंदिशें लगानी होंगी। इन बंदिशों के मुताबिक जो उद्योग जितना ज्यादा उत्सर्जन करेंगे, उन्हें उतना ही ज्यादा इंतजाम इस प्रदूषण को खत्म करने के लिए करना होगा। 2050 के लिए अभी से योजना बनाने की वजह ये है कि जीरो नेट एमिशन के लिए किए जाने वाले इंतजाम एक लंबी प्रक्रिया से होकर गुजरेंगे, ऐसे में ये कदम जितनी जल्दी उठा लिए जाएं वो उतनी जल्दी ही पूरे हो सकेंगे।  

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