'व्यास पीठ' पर बैठेंगी वनवासी कन्याएं
ब्राह्मण समाज के युवक-युवतियों को श्रीमद्भागवत कथावाचन और पाठ की दीक्षा प्राप्त करते तो आपने खूब देखा होगा, लेकिन अब पूर्वी तथा पूर्वोत्तर राज्यों की दलित और वनवासी कन्याएं भी इस क्षेत्र में महारत हासिल कर रही हैं। वृंदावन के केशवधाम में इन्हें श्रीमद्भागवत कथावाचन व पाठ की दीक्षा दी जा रही है।
वृंदावन, [महेश चौधरी]। ब्राह्मण समाज के युवक-युवतियों को श्रीमद्भागवत कथावाचन और पाठ की दीक्षा प्राप्त करते तो आपने खूब देखा होगा, लेकिन अब पूर्वी तथा पूर्वोत्तर राज्यों की दलित और वनवासी कन्याएं भी इस क्षेत्र में महारत हासिल कर रही हैं। वृंदावन के केशवधाम में इन्हें श्रीमद्भागवत कथावाचन व पाठ की दीक्षा दी जा रही है। मकसद है इनके जरिये इन राज्यों में हिंदुओं का धर्मातरण रोकना।
दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से श्रीहरि सत्संग समिति दलित कन्याओं को यह प्रशिक्षण दे रही है। देश के जिन स्थानों पर हिंदू धर्म का प्रचार-प्रसार कम है, वहां समिति के पदाधिकारी भ्रमण करके धर्मातरण रोकने का प्रयास करते हैं। समिति के मार्गदर्शक डॉ. सूर्यप्रकाश शर्मा का कहना है कि पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदू परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हैं। वहां धर्मातरण भी तेजी से हो रहा है, इसलिए हिंदू परिवारों की बच्चियों को धर्मज्ञान और श्रीमद्भागवत कथा वाचन-पाठन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यहां प्रशिक्षण ले रही असम की नंदनी, मिनाली, वंदना, ओडिशा की रीतांजलि, शिवानी, संगीता, सीता, बंगाल की समिता का कहना है कि इनके राज्य में धर्मातरण बड़ी समस्या है। प्रशिक्षण लेने सबसे अधिक ओडिशा की कन्याएं आ रही हैं।
डॉ. सूर्यप्रकाश शर्मा कहते हैं कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की बच्चियों का व्यास की कुर्सी पर काबिज होना बड़े सम्मान की बात है। हमें धर्म को मजबूत करने के लिए जात-पात की खाई को इसी तरह पाटना होगा। कार्यक्रम में उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम आदि राज्यों के प्रशिक्षक हैं। केशवधाम में प्रशिक्षण का छह माह का एक सत्र होता है, एक सत्र में करीब 50 कन्याओं को शामिल किया जाता है। यह प्रशिक्षण 1998 में शुरू हुआ था। प्रशिक्षण की अनिवार्य शर्त है कि यहां से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कन्याओं को चार साल तक हिंदू धर्म का प्रचार-प्रसार करना होगा। समिति प्रशिक्षण से पहले कन्याओं के अभिभावकों से इस आशय का करार करा लेती है। ऐसा इसलिए कराया जाता है कि बाद में किसी तरह की समस्या न पैदा हो।
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