रामनवमी : परिचर्चा
- 92 वर्ष का हो गया हूं, लेकिन रामनवमी अखाड़ा देखने का मोह नहीं छूटता। जब ठाकुर प्यार
- 92 वर्ष का हो गया हूं, लेकिन रामनवमी अखाड़ा देखने का मोह नहीं छूटता। जब ठाकुर प्यारा सिंह अखाड़ा निकालते थे, तब भी अलग ही रौनक रहती थी। उनके पोते भी उस परंपरा को बचाकर रखे हैं, देखकर अच्छा लगता है।
- लखन प्रसाद, काशीडीह
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- मै काशीडीह में ही रहता हूं, लिहाजा हर साल ठाकुर प्यारा सिंह धुरंधर सिंह अखाड़ा में शामिल होता हूं। क्षेत्र के सभी लोग इस आयोजन में खुद ब खुद शामिल होते हैं।
- अशोक गोस्वामी, काशीडीह
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साकची बाजार में मेरी सोने-चांदी की दुकान है। दुकान बंद करके अखाड़ा देखने के लिए सड़क के किनारे खड़ा हूं। थोड़ा दुख इस बात से हुआ कि अखाड़े की सेवा में हम दुकानदार कोई स्टॉल नहीं लगा सके।
- अशोक कुमार बर्मन, साकची
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चलिए, इसी बहाने हमलोगों को दो दिन रामनवमी अखाड़ा का विसर्जन जुलूस देखने को मिला। महसूस ही नहीं हुआ कि शुक्रवार को दो ही अखाड़े निकले। मजा आ गया।
- एमएल बर्मन, साकची
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मेरी साकची बाजार में दुकान है। दोस्तों व पड़ोसी दुकानदारों के साथ अखाड़ा देखने आ गया। काशीडीह के अखाड़े की झांकी बड़ी मनमोहक है। इसमें धर्म के साथ भारत के इतिहास की जानकारी रोचक लगी।
- गणेश प्रसाद, साकची
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मैं गोलमुरी के एनएमएल कॉलोनी में रहती हूं। वहां से पति व बेटी के साथ अखाड़ा देखने आई हूं। कल बहुत भीड़-भाड़ थी, इसलिए घर से नहीं निकली। वह हर साल अखाड़ा-झांकी देख रही हूं।
- तुलसी मुखी, गोलमुरी
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मैं मैट्रिक में पढ़ती हूं। मां-पिताजी के साथ अखाड़ा देखने आई हूं। यह देखकर अच्छा लगा कि दोनों अखाड़े बढि़या ढंग से निकले। मै हर साल काशीडीह का जुलूस देखने आती हूं।
- लक्ष्मी मुखी, गोलमुरी
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मैं अपने बच्चों व पति के साथ अखाड़ा देखने आई हूं। मेरे पड़ोसी भी साथ हैं। रामनवमी जुलूस में जो डंका बजता है, वह रोमांच से भर देता है। इसकी जीवंत झांकी भी बड़ी मनमोहक है। कलाकारों का चयन बेहतरीन है।
- नमिता नेब, गुरुद्वारा बस्ती, साकची
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मैं टेंट का कारोबार करता हूं। संयोग से आज ही मुझे फुर्सत मिली, तो अखाड़ा देखने आ गया। कल से फिर 10 दिन के लिए चांडिल जाना है।
- वीरेंदर सिंह, मानगो
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मैं मुंगेर की रहने वाली हूं। शादी के बाद पांच साल से यहां रह रही हूं। मै हर साल अखाड़ा देखने आती हूं। बहुत अच्छा लगता है। इस बार भी काशीडीह व भालूबासा से बढि़या झांकी निकली।
- खुशबू, काशीडीह
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पहले भी कई बार शुक्रवार को निकला है अखाड़ा
ठाकुर प्यारा सिंह धुरंधर सिंह अखाड़ा इससे पहले भी कई बार शुक्रवार को अखाड़ा निकल चुका है। जब-जब गुरुवार को दशमी पड़ती है, उनका अखाड़ा शुक्रवार को निकलता है। ठाकुर प्यारा सिंह वर्ष 1921 से अखाड़ा निकाल रहे हैं, जिसे उनके बेटे धुरंधर सिंह ने जारी रखा। अब धुरंधर सिंह के बेटे दिलीप सिंह, अभय सिंह व निर्भय सिंह निकाल रहे हैं। अभय सिंह बताते हैं कि उनका अखाड़ा पहली बार शुक्रवार को नहीं निकला है। प्रशासन ने उनसे गुरुवार को अखाड़ा निकालने का आग्रह किया था, लेकिन जिस परंपरा व संस्कृति की रक्षा के लिए अखाड़ा निकालते हैं, उसे कैसे छोड़ दें।
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साकची गोलचक्कर से शहीद चौक तक लगा जाम
रात करीब आठ बजे जैसे ही काशीडीह का अखाड़ा साकची स्थित बसंत टाकीज के पास पहुंचा, जाम लगना शुरू हो गया। हालांकि बीच-बीच में पुलिस अखाड़ों ने दोपहिया-चारपहिया वाहनों को धीरे-धीरे निकाला, लेकिन करीब साढ़े आठ से साढ़े नौ बजे तक वाहनों की कतार साकची शहीद चौक से साकची गोलचक्कर तक लग गई थी। इसके बाद जैसे ही काशीडीह का अखाड़ा निकला, जंबू अखाड़ा के आने से पहले कुछ वाहनों को पार किया गया। पूरी तरह से वाहनों का आवागमन रात साढ़े दस बजे से सामान्य हो गया।