दवा पर दीदी का दांव आजमा रहे मोदी
अब ममता के नक्शेकदम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सस्ती दवाइयों को जरूरी करने पर जोर दिया है।
मिलन कुमार शुक्ला, कोलकाता। गोपाल कृष्ण गोखले ने कभी कहा था- 'बंगाल जो आज सोचता है, पूरा देश उसे कल सोचता है।' मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इसे लगातार दोहराती रही हैं। मरीजों को सस्ती दवाइयां मिल सकें, इसके लिए वर्ष 2012 में ममता सरकार ने उचित मूल्य वाली दवा दुकानों (फेयर प्राइस शॉप) को खोला था। इसे मिली सफलता के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी प्रशंसा हो चुकी है।
अब ममता के नक्शेकदम पर बढ़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सस्ती दवाइयों को जरूरी करने पर जोर देते हुए इसके लिए नया कानून लाने का इरादा भी साफ कर दिया है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत डॉक्टरों को मरीजों के लिए जेनेरिक दवा लिखना अनिवार्य हो जाएगा।
77.2 फीसद तक की छूट पर मिलती हैं दवाइयां
पश्चिम बंगाल में विभिन्न बड़े सरकारी अस्पतालों, सदर अस्पतालों और ग्रामीण इलाकों में बीते चार वर्षों के दौरान 99 फेयर प्राइस शॉप खोले जा चुके हैं जबकि और 121 दुकानें खोलने का लक्ष्य निर्धारित है। इन दुकानों में जेनेरिक दवाइयां एमआरपी के मुकाबले 48 से 77.2 फीसद तक की कम कीमत पर मिलती हैं। राज्य स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार चार वर्षों में 157 लाख मरीजों को 440 करोड़ रुपये की छूट का लाभ मिला। इसी का नतीजा है कि अब राज्य में दवा कारोबार करने वाली नामी कंपनियों के रिटेल दुकानों पर 20 फीसद तक की छूट दी जा रही है। सरकारी डाक्टर भी अब पर्ची पर ब्रांडेड कंपनियों की दवा लिखने के बजाय जेनेरिक दवा लिखते हैं।
फेयर प्राइस डायगोनॉस्टिक सेंटर भी
ममता सरकार ने इन चार वर्षों में 58 फेयर प्राइस डायगोनॉस्टिक सेंटर भी खोले हैं, जहां किफायती दर पर मरीजों का डिजिटल एक्सरे, डायलिसिस, सीटी स्कैन और एमआरआइ किया जाता है। वहीं, राज्य सरकार सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कालेजों में कैंसर, हृदय की समस्याओं के अतिरिक्त रक्त परीक्षण की नि:शुल्क सेवा उपलब्ध कराने की ओर अग्रसर है।
यह भी पढ़ेंः ममता करेंगी मंत्रिमंडल का विस्तार
राजस्थान में 'जनौषधि' बंगाल में फेयर प्राइस
यह बात दीगर है कि गरीबों को सस्ती दवाएं देने के लिए 2008 में राजस्थान में 'जनौषधि' परियोजना की शुरुआत की गई थी। जनौषधि और फेयर प्राइस शॉप में कई समानताएं हैं लेकिन बंगाल के मुकाबले राजस्थान का फार्मूला अधिक सफल रहा है। राजस्थान में दवाइयां सीधे कंपनियों से खरीदी जाती हैं और महज बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भरोसे नहीं रहा जाता। राजस्थान में दवा की गुणवत्ता पर लगातार कड़ी नजर रखी जाती है। वहीं बंगाल की बात करें तो यहां 'फेयर प्राइस शॉप' में बिकने वाली दवाइयां राज्य सरकार सीधे तौर पर नहीं खरीदती है। यही वजह है कि जहां राजस्थान में 461 प्रकार की दवाइयां फेयर प्राइस शॉप में उपलब्ध हैं, वहीं बंगाल में महज 142 दवाइयां ही मिल पाती हैं। एक निजी अस्पताल में कार्यरत जनरल फिजिशियन व हृदय रोग विशेषज्ञ डाक्टर उज्ज्वल कुमार ने कहा कि महज 142 दवाइयों की सूची की बदौलत सभी बीमारियों के लिए दवा लिख पाना कई बार संभव नहीं हो पाता है।
यह भी पढ़ेंः जगन्नाथ मंदिर में ममता को पूजा नहीं करने देने का एलान, हिरासत में पुजारी