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बंद से दार्जिलिंग में चाय उद्योग को साढ़े तीन सौ करोड़ का नुकसान

पहाड़ पर एक महीने से जारी बंद व ¨हसा से चाय उद्योग की टूटी कमर। चाय बागानों में नौ जून से ही कामकाज पूरी तरह ठप है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 08 Jul 2017 11:39 AM (IST)Updated: Sat, 08 Jul 2017 11:39 AM (IST)
बंद से दार्जिलिंग में चाय उद्योग को साढ़े तीन सौ करोड़ का नुकसान
बंद से दार्जिलिंग में चाय उद्योग को साढ़े तीन सौ करोड़ का नुकसान

कोलकाता, [राज्य ब्यूरो]।  अलग गोरखालैंड राज्य की मांग पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) द्वारा दार्जिलिंग के पहाड़ी इलाकों में पिछले करीब एक महीने से जारी बेमियादी बंद व ¨हसा की वजह से यहां का मशहूर चाय उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

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लगातार आंदोलन के चलते दार्जिलिंग इलाके में स्थित अधिकतर चाय बागानों में बीते नौ जून से ही कामकाज पूरी तरह ठप है जबकि चाय पत्तियों को चुनने का यही सीजन है। इसी सीजन में दूसरे फ्लश में चुनी गई पत्तियां देशी-विदेशी बाजारों में महंगे दामों पर बिकती हैं। वैसे भी इस पहाड़ी इलाके की अर्थव्यवस्था पर्यटन और चाय उद्योग पर ही टिकी है। लेकिन, महीने भर से जारी आंदोलन व बंद के कारण पर्यटन उद्योग तो चौपट हो ही गया है, मशहूर चाय उद्योग की भी कमर टूटने लगी है।

मोटे अनुमान के मुताबिक, पहाड़ पर बंद व ¨हसा से चाय उद्योग को करीब साढ़े तीन सौ करोड़ की चपत लग चुकी है। चाय उद्योग का अनुमान है कि अब तक 16 लाख किलो चाय का नुकसान हो चुका है। 

दार्जिलिंग में फिलहाल 87 चाय बागान हैं और उनमें हर साल करीब एक करोड़ किलो चाय पैदा होती है। लेकिन, गोरखालैंड आंदोलन की वजह से इस उद्योग पर आए संकट से अब उत्पादकों को निर्यात में गिरावट और समय पर डिलीवरी नहीं देने का डर सताने लगा है। 

दार्जिलिंग टी एसोसिएशन (डीटीए) के प्रमुख सलाहकार संदीप मुखर्जी का कहना है कि 'गोजमुमो के आंदोलन से क्षेत्र की सबसे बेहतरीन चाय उत्पादों की असमय मौत हो रही है। मौजूदा गतिरोध से पूरी दुनिया में दार्जिलिंग चाय का निर्यात काफी प्रभावित होगा।' उन्होंने बताया, एक महीने से पत्ते चुनने का काम पूरी तरह बंद है। इससे घास फूस बढ़ने की वजह से कीड़ों के हमले का भी खतरा है। उनके मुताबिक, बागानों में काम जारी रहने देना चाहिए था। डीटीए के मुताबिक, बंद से यहां के चाय बागानों को 11 फीसद राजस्व व 40 फीसद निर्यात का नुकसान हो चुका है। 

डीटीए के एक अन्य पदाधिकारी ने बताया कि अब तक जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई असंभव है। यह बीते पांच दशकों में चाय उद्योग को होने वाला सबसे बड़ा नुकसान है। 

इधर, चाय बागानों को बंद से छूट देने को लेकर हाल ही में चाय बागान मालिकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली में दार्जिलिंग के भाजपा सांसद व केंद्रीय मंत्री एसएस अहलुवालिया से भी मुलाकात की थी। उन्होंने सांसद से इस संकट से निपटने का रास्ता तलाशने की अपील की थी ताकि बागानों में कामकाज दोबारा शुरू हो सके। बागान प्रबंधन ने इस मुद्दे पर श्रमिक यूनियनों से भी बातचीत की लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादातर यूनियनों पर गोजमुमो से जुड़े संगठन का कब्जा होने के कारण गतिरोध जस की तस है। 

जानकारी के मुताबिक, पहाड़ पर इससे पहले हुए आंदोलनों व बंद से चाय उद्योग को छूट दी जाती थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। पहली बार बेमियादी बंद में चाय बागानों को भी शामिल कर लिया गया। गोजमुमो के राष्ट्रीय महासचिव रोशन गिरि कहते हैं कि, गोरखालैंड आंदोलन पूरे पहाड़ के लोगों की पहचान का सवाल है। एक बड़े मकसद के लिए होने वाले आंदोलन में चाय उद्योग को कुछ करोड़ रुपये का नुकसान कोई मायने नहीं रखता है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि अलग गोरखालैंड नहीं बनने तक दार्जिलिंग की चाय बाहर नहीं भेजने दी जाएगी। 

इधर, बंगाल में सबसे अधिक चाय उत्पादन करने वाली प्रमुख कंपनी गुडरिक के प्रबंध निदेशक व मुख्य कार्यकारी अधिकारी एएन सिंह कहते हैं कि, चाय बागान मजदूरों का आंदोलन में शामिल होना दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे चाय उद्योग को तो भारी नुकसान हो ही रहा है दुनियाभर में दार्जिलिंग चाय की साख पर भी बट्टा लगेगा। उन्होंने कहा, इससे मजदूरों के बोनस व वेतनमान संशोधन जैसे मुद्दे भी प्रभावित होंगे। 

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