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मनरेगा पर विस में सर्वदलीय प्रस्ताव पारित

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में कटौती के विरुद्ध गुरु

By Edited By: Published: Fri, 21 Nov 2014 04:52 AM (IST)Updated: Fri, 21 Nov 2014 01:39 AM (IST)
मनरेगा पर विस में सर्वदलीय प्रस्ताव पारित

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में कटौती के विरुद्ध गुरुवार को विधानसभा में नियम 185 के तहत लाया गया प्रस्ताव बहस के बाद सर्वसम्मति से पारित हो गया। इसके लिए सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल दिल्ली जाएगा और ग्रामीण जनता के हित में मनरेगा में किसी तरह की कटौती नहीं करने की अपनी मांग पेश करेगा।

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प्रस्ताव पर बहस के जवाबी भाषण में संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि राज्य पर 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज का बोझ है। केंद्र में पिछली कांग्रेस नेतृत्व की सरकार को राज्य की आर्थिक समस्या से अवगत कराया गया था लेकिन कोई मदद नहीं मिली। केंद्र की वर्तमान सरकार को भी राज्य की आर्थिक स्थिति के बारे में विस्तार से बताया गया है लेकिन अभी तक कोई मदद नहीं मिली। इसके बावजूद सरकार विभिन्न कल्याणकारी परियोजनाएं पूरी कर रही है। ग्रामीणों के लिए 100 दिन काम उपलब्ध कराने व उस पर धन खर्च करने में बंगाल अव्वल है। इस योजना के तहत ग्रामीणों की मजदूरी के बावत केंद्र पर 1815 करोड़ रुपया बकाया है। राज्य को यह बकाया राशि केंद्र से यथाशीघ्र मिले इसके लिए राज्य के एक मात्र भाजपा विधायक को भी प्रयास करना चाहिए।

चटर्जी ने कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को 100 दिनों का काम उपलब्ध कराने पर गंभीर है।

मुख्यमंत्री ने कहा है कि वह इस योजना के तहत ग्रामीणों के लिए 100 दिनों का काम बढ़ा कर 200 दिनों के लिए करना चाहती हैं। इसी से गरीब ग्रामीण जनता के हित में काम करने की मुख्यमंत्री की इच्छा शक्ति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

एक मात्र भाजपा विधायक शमिक भंट्टाचार्य ने कहा कि वह इस प्रस्ताव का संपूर्ण विरोध नहीं कर सकते। राज्य के हित में किसी भी काम में वह सहयोग करने के लिए तैयार हैं लेकिन प्रस्ताव की आड़ में केंद्र को निशाना बनाने के प्रयास को वह विरोध करते हैं। अधिकांश सदस्यों ने मीडिया रिपोर्ट में मनरेगा खत्म करने की खबर के आधार पर अपनी बात कही है। जबकि सच्चाई यह है कि केंद्र सरकार की ओर से मनरेगा बंद करने की बात नहीं कही है। कुछ राज्यों की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल होने पर योजना में थोड़ी बहुत कटौती करने की बात कही गई है। मनरेगा ही क्यों, और कितनी ग्रामीण परियोजनाओं के तहत राज्य को फंड नहीं मिला उसका भी खुलासा होनी चाहिए और बकाया फंड लाने की बात सोचनी चाहिए।

पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने कहा कि मनरेगा पर केंद्र सरकार संकीर्ण राजनीति कर रही है लेकिन वह सफल नहीं होगी। केंद्र इस योजना का नाम बदलना चाहता है। निर्मल गांव योजना का नाम बदल कर स्वच्छ भारत कर दिया गया है। जवाहर लाल नेहरू या इंदिरा गांधी के नाम पर कोई केंद्रीय योजना है तो उसमें आपत्तिजैसी कोई बात नहीं है।

मुखर्जी ने कहा कि राज्य सरकार मनरेगा के तहत साढ़े चार हजार करोड़ रुपया खर्च कर चुकी है। लेकिन केंद्र ने अभी तक दूसरी किस्त का पैसा नहीं दिया है। मनरेगा के तहत काम में कटौती करने का अधिकार किसी को नहीं है।

विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा ने कहा कि राज्य की 65 प्रतिशत ग्रामीण जनता को इस योजना का लाभ मिलता है। 100 दिन काम उपलब्ध कराने में 65 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है लेकिन केंद्र सरकार ने इसके लिए मात्र 33 हजार करोड़ का बजट ही आवंटित किया है। अब केंद्र ने राज्यों को श्रम बजट में 50 प्रतिशत कटौती करने का सुझाव दिया है। कारपोरेट घरानों को 5 लाख करोड़ रुपये कर में छूट दी गई है और गरीबों के लिए श्रम बजट में कटौती की जा रही है। इसी केंद्र सरकार की मानसिकता को समझा जा सकता है। कांग्रेस के मानस भुइयां ने कहा कि जरूरत पड़ने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल दिल्ली जाएगा और केंद्र के समक्ष अपनी मांग रखेगा।

बहस में नगर विकास मंत्री फिरहाद हकीम, एसयूसीआई के तरुण नस्कर, तृणमूल कांग्रेस के अजय दे और कांग्रेस के मानस भुइयां सहित अन्य सदस्यों ने भाग लिया। विधानसभा अध्यक्ष विमान बंद्योपाध्याय ने बहस के बाद प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित करने की घोषणा की।


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