सामाजिक सदभाव, आपसी भाईचारे का पर्व होली में इस बार यहां चायनीज पिचकारी को लोगों ने नकारा
इस बार के चुनाव में राष्ट्रवाद प्रत्येक मतदाता के सिर चढ़कर बोल रहा है। यही कारण है कि यहां चायनीज पिचकारी को लोग बाय बाय कर रहे है।
सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। पूवरेत्तर का प्रवेशद्वार सिलीगुड़ी। अनेकता में एकता का समेटे इस पूरे महकमा क्षेत्र को मिनी इंडिया के रुप में जाना जाता है। यहीं कारण है कि यहां प्रत्येक पर्व और धार्मिक अनुष्ठान की अपनी विशेषता है। होली मिलन का पर्व कहा जाता है। इस पर्व के दौरान छोटा काम करने में भी गौरव का अनुभव होता है। सामूहिक रुप से कूड़े-कर्कट की सफाई कर उसे जलाना श्रमदान की प्रवृति को सामूहिक क्रम में बढ़ावा देता है। होली पर्व सामूहिकता का संदेश लेकर एक दूसरे को आपस में जोड़ने का काम करता है। स्कूल कॉलेज के छात्र छात्रएं अपने हिसाब से रंगोत्सव मनाना प्रारंभ कर दिया है।
होलिका दहन का अपना महत्व
एक ही स्थान पर होलिका दहन हो और पूरा गांव या मुहल्ला उसी स्थल पर पहुंचे और एक-दूसरे को पर्व की शुभकामनाएं देते हुए हालचाल लें, तभी पर्व की सार्थकता है। कहते है कि होली शब्द हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के नाम पर पड़ा है। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था जिसे पहनने पर आग में नहीं जलते थे। होलिका ने अपने भाई की बात मानते हुए हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद को लेकर होलिका चिता पर बैठ गयी थी। भगवान विष्णु की कृपा से होली जलकर भस्म हो गयी और प्रह्लाद बच गये। इस लिए इसे अभयदान का पर्व भी कहा जाता है। होलिका पूजन और दहन एक साथ किया जाता है। सब लोग आपस में मिलते हैं। दूसरे दिन होली के बाद होलिका दहन के भस्म को लोग घर लाते है। इसे शुभ माना जाता है।
होली का त्योहार ऐसा अवसर लेकर आता है कि लोग आसानी से एक-दूसरे के साथ मिलकर सुख-दुख साझा कर सकते हैं। इसके लिए होली से अच्छा और कोई मौका नहीं हो सकता। इसके विपरीत अगर एक ही मुहल्ले या गांव में कई-कई स्थानों पर होलिका पूजन और दहन होने लगता है, तब सामाजिक एकता प्रभावित होती है।
लोग तमाम लोगों से एक ही स्थान पर नहीं मिल पाते हैं। इसी दूरी की वजह से लोगों में होली जैसे त्योहार पर भी पहले जैसा सौहार्द नहीं दिखाई देता। वैसे भी भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास एक-दूसरे के लिए समय ही नहीं है। होली का पर्व ऐसा जरूर है, जब हम लोग आपस में मिलकर एक-दूसरे का सुख-दुख साझा कर सकते हैं। आज जगह -जगह इसलिए होलिका जलाए जाते है जो ठीक नहीं है।
किसी एक स्थान पर होलिका रखी जाए और मुहल्ले के सभी लोग बगैर किसी भेदभाव के उसमें शामिल होकर त्योहार की खुशी मनाएं। ज्यादा स्थानों पर होलिका दहन रखा जाना बेवजह लकड़ी की बर्बादी है। साथ ही इससे समाज की एकजुटता का प्रदर्शन भी नहीं हो पाता है। अच्छा तो यही है कि किसी एक स्थान पर होलिका रखी जाए। पूरे मुहल्ले के सभी लोग वहीं पर पहुंचकर पूजन करें। इससे समाज में नई पीढ़ी को अच्छा संदेश मिलता है।
इस बार होली में फाइटर प्लेन उगलेगा रंगों का गोला
पूवरेत्तर के प्रवेशद्वार में प्रथम और द्वितीय चरण के मतदान होने है। चुनाव के दौरान ही 20 व 21 मार्च को होली है। होली के बहाने भी इसे सभी राजनीतिक दल इसके माध्यम से भी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश में होंगे। मात्र दो दिन शेष बचे है। ऐसे में होली के रंग में बाजार सजने लगा है। इस बार के चुनाव में राष्ट्रवाद प्रत्येक मतदाता के सिर चढ़कर बोल रहा है। यही कारण है कि यहां चायनीज पिचकारी को लोग बाय बाय कर रहे है।
ग्राहकों में इस बात की चर्चा रहती है कि चायना को सबक सिखाना है। मंहगा ही हो पर इंडियन देना। महावीर स्थान, विधानमार्केट, सेठश्री लाल मार्केट, सभी मॉल, मिठाई की बड़ी दुकानों, माटीगाड़ा, नक्सलबाड़ी, सेवक रोड, बर्दमान रोड, चंपासारी, मिलनमोड़, खपरैल, सालुगाड़ा, वागडोगरा, एनजेपी बाजार समेत अन्य सभी छोटी बड़ी दुकानों में रंग गुलाल के साथ तरह तरह के पिचकारी आ गये है।
बाजार होली के रंग में रंगने लगा है। पिचकारी और रंग का बाजार भी सज गया है। बाजार में पिचकारियों भी एक से एक आई हैं। रंगों से बचाने के लिए बुढ़िया के बाल वाले मुखौटा हैं, तो उसे सराबोर करने के लिए पिचकारी भी। इस बार आकाशीय कलर फाग फाइटर रंगों की बरसात करेगा।
तो मिसाइल और टैंक से भी रंग की गोली चलेगी। होली जैसे जैसे नजदीक आ रही है बाजार भी रंगीन होती जा रही है। रंग और पिचकारी के बाजार में रौनक बढ़ गई है। इसबार पिचकारी की रेंज और नाम भी नए-नए आए हैं। पिचकारी बाजार पर भी सैनिकों का शौर्य देखने को मिल रहा है। तमाम पिचकारियों के नाम भी मिसाइल, टैंक और स्वचलित असलहों के नाम पर हैं। रंगों से चेहरा बचाने के लिए मुखौटा भी आ गए हैं। होली पर बच्चों में सबसे ज्यादा बुढ़िया के बाल, बब्बर शेर के मुखौटा तो युवाओं को मोदी का मुखौटा अधिक भा रहा है। बच्चे फाइटर टैंक के साथ ही डोरेमन, मोटू पतलू काटरून वाली पिचकारियां पसंद कर रहे हैं। वहीं हर्बल रंगों का फाग फाइटर बच्चों से लेकर युवाओं तक को भा रहा है।
दुकानदारों का कहना है फाग फाइटर 250 से लेकर 600 रुपया तक बिक रहा है। वैसे तो 200 हजार रुपया तक की पिचकारी बाजार में इनमें मिसाइल और टैंक की कीमत 150 से 750 रुपये तक है। काटरून वाली पिचकारी का रेट 100 से लेकर 550 रुपये तक है। बाल वाला मुखौटा 150 रुपये में और बबर शेर वाला मुखौटा 60-70 रुपये में बिक रहा है। कल तक राजनीतिक नेताओं के मुखौटा भी बाजार में उतरने की बात दुकानदार कह रहे है।