पासपोर्ट-वीजा लेकर आते हैं भारत, खजूर का रस निकालकर गुड़ बनाते हैं बांग्लादेशी पिता-पुत्र
अवैध तरीके से नहीं बल्कि कानूनी तौर पर वीजा व पासपोर्ट लेकर ही पिता-पुत्र भारत में आए हैं। बांग्लादेश से आकर खजूर का गुड़ बनाना ही अब उनलोगों का रोजगार है।
जलपाईगुड़ी, जागरण संवाददाता। बंगाली पीठा, खीर का मतलब ही है खजूर का गुड़। इसके बीना ठंड के समय में पीठा, खीर का स्वाद ही नहीं बनता। वैसे तो यहां खजूर के पेड़ हैं, लेकिन रस निकालने वाला कोई नहीं है। लेकिन अब ऐसा नहीं है। बांग्लादेश से आए पिता-पुत्र खजूर के पेड़ से रस निकालकर गुड़ बना रहे हैं। अवैध तरीके से नहीं बल्कि कानूनी तौर पर वीजा व पासपोर्ट लेकर ही पिता-पुत्र भारत में आए हैं। बांग्लादेश से आकर खजूर का गुड़ बनाना ही अब उनलोगों का रोजगार है।
जलपाईगुड़ी के राजगंज ब्लॉक के दूधिया ग्राम में आकर बांग्लादेश के राजशाही जिले के बागथाना के मोहम्मद रहीम व आलमगीर हुसैन। गत चार वर्षो से ठंड का मौसम शुरू होते ही दोनों वीजा व पासपोर्ट लेकर चैंगराबांधा सीमांत से होते हुए दूधिया गांव में चले आते हैं। फिर यहां खजूर का रस निकालकर गुड़ बनाते हैं। यही गुड़ जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी समेत उत्तर बंगाल के अलग-अलग बाजार में बेचने के लिए भेजा जाता है। पहले पेड़ होने के बाद भी गुड़ नहीं बनता था लेकिन अब बांग्लादेशी व्यवसायियों की मदद से गुड़ बनने से गांव के लोग भी काफी खुश हैं।
वहीं इस वर्ष अब तक पारा नहीं गिरा है। ठंड नहीं आने से गुड़ बनाने वाले पिता-पुत्र चिंतित हैं। मोहम्मद रहीम ने कहा कि प्रतिदिन 70 खजूर के पेड़ को काटकर 150 लीटर रस संग्रह करते थे। फिर उसी रस से 30 किलो गुड़ बनता था। दोपहर होते ही गुड़ की सुगंध पूरे गांव में फैलने लगती थी। इसे देखने के लोगों की भीड़ जमा हो जाती थी। व्यवसायी भी गुड़ खरीदने आते हैं और शेष गुड़ खुद उनलोगों द्वारा बाजार में बेचा जाता है।
मोहम्मद रहीम ने कहा कि बांग्लादेश में खजूर के काफी पेड़ है। पेड़ काटकर रस निकालने वालों की भी कमी नहीं है। मालिक खुद ही पेड़ काटकर रस निकाल लेते हैं। यही कारण कि वे लोग भारत आते हैं। कुछ वर्षो पहले उनलोगों को जानकारी मिली थी कि जलपाईगुड़ी जिले के राजगंज ब्लॉक में खजूर के काफी पेड़ है। लेकिन पेड़ काटने व गुड़ बनाने वाले नहीं हैं। तभी उनलोगों ने गांव के लोगों से बात करके अपना काम शुरू कर दिया। अक्टूबर महीने में ही वीजा लेकर नवंबर महीने में दूधिया गांव चले आते हैं। यहां किराये पर घर लेकर अपने काम में लग जाते हैं। गत चार वर्ष ने दोनों इसी प्रकार खजूर का गुड़ बना रहे हैं।
स्थानीय उत्तम राय और योगेश्वर राय ने कहा कि बांग्लादेश से आए पिता-पुत्र के कारण ही अच्छा गुड़ खा पा रहे हैं। पहले उन लोगों को जलपाईगुड़ी, उदलाबाड़ी समेत दूसरे बाजारों से गुड़ खरीदना पड़ता था।