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नक्सलबाड़ी आंदोलन का स्वर्ण जयंती आज

राजेश 11 -सेंट्रल कमेटी के सभी 59 पदाधिकारी सिलीगुड़ी पहुंचे, बांग्लादेश से भी पहुंचे प्रतिनिधि -र

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 May 2017 09:37 PM (IST)Updated: Wed, 24 May 2017 09:37 PM (IST)
नक्सलबाड़ी आंदोलन का स्वर्ण जयंती आज
नक्सलबाड़ी आंदोलन का स्वर्ण जयंती आज

राजेश 11 -सेंट्रल कमेटी के सभी 59 पदाधिकारी सिलीगुड़ी पहुंचे, बांग्लादेश से भी पहुंचे प्रतिनिधि

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-रैली , जनसभा और शहीदों को किया जाएगा याद

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : पश्चिम बंगाल का भारत नेपाल सीमांत दार्जिलिंग जिला का नक्सलबाड़ी का छोटा सा गांव झडूजोत व बेंगाई जोत में 24 व 25 मई 1967 में व्यवस्था के खिलाफ अधिकारों की जंग में हिंसा का रास्ता चुना जिसका नाम दिया गया नक्सलबाड़ी आंदोलन। जो 50 वर्षो में नक्सलवाद और माओवाद के रुप में पूरे देश में विकसित हो गया है। आज उसके स्वर्ण जयंती पर गुरुवार को कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। भाकपा माले न्यू डेमोक्रेसी के सेंट्रल कमेटी की तीन दिवसीय सम्मेलन भी होना है। ऐसे में इसके 59 पदाधिकारी सिलीगुड़ी पहुंच गये है। दो प्रतिनिधि बांग्लादेश से भी सिलीगुड़ी आए है। कहते है कि कानू सान्याल, चारू मजुमदार, जंगल संथाल, सोरेन बोस, खोखन मजुमदार, केशव सरकार, शांति मुंडा द्वारा प्रारंभ सशस्त्र आंदोलन की चिंगारी आज ज्वाला बनकर देश की सरकार और प्रशासन को चुनौती दे रहा है। आंदोलन की शुरुआत सिलीगुड़ी में पैदा हुआ चारू मजुमदार आंध्र प्रदेश के तेलंगाना आंदोलन व्यवस्था से बागी हुए। इसके चलने 1962 में उन्हें जेल में रहना पड़ा, जहां उसकी मुलाकात कानू सान्याल से हुई। जेल से दोनों बाहर आने के बाद व्यवस्था के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का रास्ता चुना। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय को काला झंडा दिखाने के क्रम में कानू सान्याल जेल भेजे गये। इसी बीच जोतदारों पर पूंजीपतियों व जमींदारों का अत्याचार नक्सलबाड़ी क्षेत्र में बढ़ने लगा था। इसके खिलाफ जोतदारों को एकजुट किया जाने लगा। 24 मई 1967 को झडूजोत में गर्भवती आदिवासी महिला को पुलिस सब इंस्पेक्टर सोनम बाग्दी ने लाठी मारकर घायल कर दिया। पेट में ही बच्ची की मौत हो गयी। उसके बाद हिंसक भीड़ ने सोनम बाग्दी को भी मार दिया गया। आदिवासी महिला भी मारी गयी। उसके बाद 25 मई 1967 दोपहर बेंगाइजोत नक्सलबाड़ी में जब महिलाओं का जथ्था सभा के लिए जा रहा था। उस समय सभी निहथ्था थे। अचानक इ‌र्स्टन फोर्स की पुलिस का आक्रोश उनपर कहर बनकर टूट पड़ा। पुलिस गोलीबारी में एक पुरुष, आठ महिलाए और दो महिलाओं के पीठ पर बंधे दो बच्चे भी मारे गये। उसके बाद यह आंदोलन पूरे राज्य में नक्सलबाड़ी आंदोलन के रुप में प्रारंभ हो गया। 16 जुलाई 1972 को कलकत्ता से चारू मजुमदार को गिरफ्तार कर लिया गया। ह्दय रोग से पीड़ित चारू मजुमदार को न तो वहां दवाएं मुहैया करायी गयी और अन्य सुविधाएं। 28 जुलाई 1972 को उनकी मौत जेल में ही हो गयी। उसके बाद आंदोलन देश के कई हिस्सा में पांव फैलाया।


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