इंसान के मन को वश में करना उसके लिए संभव नहीं है : सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज
जागरण संवाददाता, गंगटोक : इंसान बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान कर सकता है। बड़े से बड़े संकट को काट सकता
जागरण संवाददाता, गंगटोक : इंसान बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान कर सकता है। बड़े से बड़े संकट को काट सकता है। लेकिन मन को वश में करना उसके लिए संभव नहीं है। मन के उदगार इतने प्रबल है कि इंसान इनसे बच नही सकता। मन रूपी ताकतवर हाथी को सतगुरु रूपी महावत ही साध सकता है। शुक्रवार को यह सत्संग हरियाणा प्रान्त से पधारे राधास्वामी परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने शहर के शीशा गोलाई स्थित साध संगत के समक्ष दिया। गुरु महाराज जी गंगटोक में अपने तीन दिवसीय सत्संग कार्यक्रम से पहले दिन सत्संग फरमा रहे थे।
उन्होंने कहा कि मैं पर अंकुश केवल शब्द के भेदी सतगुरु ही लगा सकता है, क्योंकि शब्द ही सृष्टि का रचयिता है। सात द्वीप नौ खंड पृथ्वी आकाश समुद्र सब शब्द की रचना है। इसलिए शब्द का भेदी ही इस रचना को बखूबी समझ सकता है। इंसान को शब्द भेदी गुरु की खोज करनी चाहिये ताकि गुरु के शब्द बाण से हमारी भ्रम की दुनिया ढह सके। उन्होंने गुरु वचन की महिमा का सार सत्संग को बताया। सत्संग से बढ़कर कुछ नही है। गुरु वशिष्ठ और गुरु विश्वामित्र में एक दिन इसी बात को लेकर बहस हो गई। विश्वामित्र जप और तप को बड़ा बताने लगे और वशिष्ठ जी सत्संग को। दोनों फैसले के लिए राजा हुज़ूर कंवर साहेब जी ने फरमाया की मुख्य रूप से हम तीन इंद्रियों से ही शक्ति का क्षरण करते हैं। मुख से,आख से और कान से। अगर हमने इनको साध लिया तो हम अपनी शक्ति का संचय तो कर ही लेंगे साथ ही साथ जगत को भी जीत लेंगे। मुख से बुरा मत बोलो, कान से बुरा मत सुनो और आख से बुरा मत देखो। सारा संसार आपको अच्छा लगेगा और आप जगत को। संत महात्मा भी अंतर में चढ़ाई करने के लिए ये तीन बंद ही बताते हैं। इंसान का पिंड का रूप ही ब्रह्माड है। फिर भी इंसान अपने महत्व को नही जानता। गुरु महाराज ने कहा कि इस सृष्टि में 9 लाख जल के जीव हैं 10लाख पखेरू हैं 11 लाख कीट पतंगे हैं,बीस लाख स्थावर जीव है और 4 लाख इंसानी योनि है परंतु उसमे श्रेष्ठ केवल वो है जो परमात्मा का भजन करता है। परमात्मा के भजन का ज्ञान केवल इंसान के पास है। परंतु विडम्बना ये है कि इंसान अपने इस अनमोल जीवन को व्यर्थ कर रहा है। जीव हत्या करके,गंदे मन्दे कर्मो में फंस कर। गाधी जी जैसे महापुरुषों ने भी इसी पर बल दिया कि अहिंसा परमो धर्म यानी अपना सा जीव सबको जानो। जिस बात से आपको कष्ट होता है मत भूलो उसी बात से दूसरों को भी कष्ट होता है।उन्होंने कहा कि संचय केवल इतना करो कि आपका काम चल जाये। नाव में पानी बढ़ जाये और घर में यदि धन बढ़ जाये तो उसको उलीचना ही स्याना काम माना गया है। उन्होंने कहा कि बार बार सन्तो के संग में जाओ। जाकर उनके दर्शन करो,वचन को बार बार सुनो सुन सुन के गुनो गुन गुन के उसका सार निकालो। जिस प्रकार पशु पहले चारा चरता है और फिर जुगाली करता है उसी प्रकार हमें भी सन्त महापुरुषों की वाणी का सार निकालना चाहिये। क्या पता कब आपके पूर्व जन्म के संस्कार सामने आ जाए। गुरु के आगे चालाकी, कपट, चतुराई मत करो। उनके आगे तो सुरखुरु बन कर रहो। सच्चे बन कर रहो। संग सुधारो क्योंकि सत्संग से,सन्तो के संगो से आई हुई बला टल जाती है। सत्कर्मो से अपने जगत को भी सुधारो और अपने अगत को भी।