इतिहास नहीं, भविष्य पर ध्यान देना जरूरी
संस्कारशाला- फोटो-संजय-एक से सात तक --------------- कैचवर्ड : जीडी गोयनका जीडी गोयनका पब्लिक स
संस्कारशाला-
फोटो-संजय-एक से सात तक
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कैचवर्ड : जीडी गोयनका जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल
-पहले खुद दायित्व को समझना होगा, तब दूसरों को समझा पाएंगे
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : जीवन में दायित्व हर समय बदलता रहता है। जब हम बचपन में होते हैं, तो कुछ और दायित्व होता है। युवा में कुछ और दायित्व निभाना पड़ता है। जब हम अभिभावक बनते हैं, तो दायित्व कुछ और हो जाता है। हमें अपने बच्चों पर ध्यान देना होता है। सबसे पहले हमें अपने दायित्व को समझना होगा, तब जाकर दूसरों को हम समझा पाएंगे। हर दिन नई चुनौतियां पेश आती है। इसे रोका नहीं जा सकता। इसका सामना करना पड़ता है। अपने दायित्वों को निभाना पड़ता है। मैं एक शिक्षिका हूं, प्रधानाचार्या के रूप में मेरा दायित्व बनता है कि विद्यार्थियों को यूनिवर्सिटी के लिए नहीं, बल्कि यूनिवर्स के लिए तैयार करें। इसे ही निभाने का प्रयास करती हूं। बच्चों को इतिहास के लिए नहीं, भविष्य की तैयारियों पर ध्यान देना चाहिए। वर्तमान में बच्चे प्रकृति को भूलने लगे हैं। बारिश क्या है, बारिश में भीगने का आनंद क्या होता है, यह सब उन्हें मालूम नहीं। इसका उन्हें बोध करना लोगों का हम लोगों का दायित्व बनता है। पहले की शिक्षा प्रणाली में खास गतिविधि नहीं होने के बावजूद एक संदेश छिपा रहता था। मेरा दायित्व है कि बच्चों को निचले स्तर पर मजबूत करें। नींव मजबूत होने से आगे व खुद अपनी सही राह चुन लेंगे। नींव मजबूत करने का पूरा मेरा प्रयास रहता है।
सानिका शर्मा, प्रधानाचार्या, जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल,सिलीगुड़ी
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बच्चों के विकास पर ध्यान दें
सामाजिक प्राणी होने के नाते मेरा दायित्व बनता है कि समाज के प्रति अपना योगदान दें। एक शिक्षक होने के नाते बच्चों के सर्वागीण विकास पर ध्यान दें, ताकि उनका नींव मजबूत हो सके। तभी वे देश, समाज व राष्ट्र के प्रति अपना योगदान दे पाएंगे। मेरा प्रयास रहता है कि विद्यार्थियों को बंधुत्व की भावना के रूप से शिक्षा दें। शिक्षक की भूमिका ज्वेलरी की तरह होती है, जिसे जिस सांचे में ढालेंगे, उस सांचे में विद्यार्थी ढ़ल जाएंगे।
महात्मा गांधी ने कहा था-'मेरा जीवन ही, मेरी पहचान है।'
एक कविता के रूप में हम कह सकते हैं- 'यह तो एक पड़ाव है, तुम्हे आगे बढ़ते जाना है। लहरों से संतोष न करना, पूरा सागर पाना है। सूरज की किरणों की तरह, तुम्हे दुनिया पर छा जाना है।'
शिवनाथ यादव, शिक्षक, सिलीगुड़ी
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गुरू बताएं शिष्य को सही मार्ग
मेरा जीवन, मेरा दायित्व है अपने आप में बहुत कुछ कहता है। जीवन से बहुत सारी बातें शिक्षा के माध्यम से मिलती है। बच्चों में शालिनता के भाव को भरने तथा अपने परिवार और समाज के प्रति शिष्ट भाव रखने की बात बताना ही एक सच्चे शिक्षक का दायित्व है। शिष्य की आत्मा में अपनी आत्मा को प्रविष्ट करना ही एक शिक्षक का गुण होता है। मेरा दायित्व है कि विद्यार्थियों को सही मार्ग पर ले जाएं। विद्यार्थी सही मार्ग पर जाएंगे, तभी वे समाज के प्रति अपना दायित्व सही तरीके से निभा पाएंगे।
सुरेंद्र कुमार तिवारी, शिक्षक सिलीगुड़ी
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नैतिकता का पाठ पढ़ाना जरूरी
मैं एक शिक्षिका हूं, जो मेरे लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा मनुष्य को सुसंस्कृत एवं नैतिकता का पाठ पढ़ाती है। एक शिक्षिका के नाते मेरा दायित्व होता है कि विद्यार्थियों की नींव मजबूत करें। मैं इस दायित्व को निभाने की पूरी कोशिश करती हूं। समाज व देश के निर्माण में हमारी अहम भागीदारी होती है, जिसे शिक्षक पूर्ण करने का हर संभव कोशिश करता है।
निशा रॉय, शिक्षिका,सिलीगुड़ी
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प्रदूषण गंभीर समस्या
हमारे जीवन में मेरा दायित्व अलग-अलग हिस्सों में बंटा होता है। बच्चों पर बड़ों का आदर व सम्मान के तौर तरीके सिखाए जाते। विद्यार्थी के रूप में सबसे बड़ा दायित्व होता है कि हम अच्छे से पढ़ाई से करें, बेहतर परिणाम लाएं तथा अपने माता-पिता व शिक्षकों का सम्मान करें। यह जीवन का अहम हिस्सा होता है। नई चीजें सीखने का मौका होता है। देश में सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण, गंदगी व भ्रष्टाचार की है। इन सब समस्याओं को दूर करने के लिए खुद जागरूक होना होगा तथा दूसरों को जागरूक करना होगा।
दिवस कुमार, छात्र, सिलीगुड़ी
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किसी से कम नहीं
एक विद्यार्थी का समाज के प्रति बड़ा दायित्व होता है कि जो हम सीखते हैं, वही आगे जाकर समाज को सीखाते हैं। हम नहीं सीखेंगे तो आगे जाकर अपने जीवन को नष्ट करेंगे। एक लड़की होने के नाते आस-पास की लड़कियों को बताना चाहिए कि हम किसी से कम नहीं हैं। समाज के निर्माण में मैं भी अपना दायित्व निभा सकती हूं। मैं अपने से छोटी लड़कियों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने का पूरा प्रयास करूंगी।
करनजीत कौर, छात्रा, सिलीगुड़ी
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सभी को सामान नजरिए से देखें
मनुष्य के रूप में जन्म मिला है, तो हर इंसान का कुछ दायित्व होता है। पहले हम अपने माता-पिता के नाम से जाने जाते हैं। उन्हीं के बल पर हम शिक्षा प्राप्त करते हैं, तथा आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं। हमें भी अपने दायित्वों का पालन कुछ इस तरह से करना चाहिए कि हमारे अभिभावक हमारे नाम से जाने जाएं। समाज में सबको एक समान नजरिए से देखा जाना चाहिए। एक जागरूक नागरिक के रूप में अशिक्षित व अस्वस्थ लोगों को शिक्षित व स्वस्थ रखने के प्रति पूरा ध्यान देना चाहिए। मैं इस दायित्व को निभाने की पूरी कोशिश करूंगी।
आकांक्षा दीक्षित, छात्रा, सिलीगुड़ी