माछ-भात संस्कृति पर संकट
अशोक झा, सिलीगुड़ी : अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरे उत्तर बंगाल में माछ-भात संस्कृति पर खतरा उत्पन्न हो
अशोक झा, सिलीगुड़ी : अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरे उत्तर बंगाल में माछ-भात संस्कृति पर खतरा उत्पन्न हो गया है। विश्व मत्स्य दिवस के अवसर पर इसे बचाने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से कवायद प्रारंभ की गई है।
उत्तर बंगाल उन्नयन मंत्री गौतम देव का कहना है कि मुख्यमंत्री के दिशा निर्देश पर प्रत्येक पंचायत में एक एक तालाब बनाया जाएगा। इसके माध्यम से पंचायत के लोगों को मछली उत्पादन करने के तरीकों को बताया जाएगा। कहते है कि बंगाल में सिंचाई और भूमि अधिग्रहण के कारण धान की पैदावार में कमी आई है। जो भी धान उपज रहा है उसे तस्करी के रास्ते नेपाल और बांग्लादेश भेजा जा रहा है। नदी, तालाब और जल संरक्षण के अभाव में इन दिनों उत्तर बंगाल के बाम, काजोरी, बोरोली, मौजोरो, कास नौवला सहित 25 प्रजातियों की मछली विलुप्त हो गई है। मत्स्य विभाग मछली उत्पादन को बढ़ाने पर जोर दे रहा है पर खत्म हो रही मछलियों को कैसे बचाया जाए इस ओर ध्यान नहीं है। पर्यावरण और जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले सोमनाथ चटर्जी और अनिमेष बसु का कहना है कि अगर माछ-भात संस्कृति को बचाए रखने लिए प्रत्येक गांव में पिछले एक वर्ष से लगातार जागरूकता अभियान प्रारंभ किया गया है। नदी, तालाब व पोखर बचाने की ओर ध्यान नहीं दिए जाने से 20 वर्षो बाद ही लोग दूसरे राज्य के चावल से बने भात और माछ पर आश्रित होंगे। चटर्जी और बसु का कहना है कि माछ-भात की संस्कृति को बचाने के लिए ही मिथिलांचल की तर्ज पर बड़े लोगों के पास पोखर हुआ करता था। गांव में बहने वाली नदियों की विधिवत पूजा की जाती थी। इसी के माध्यम से सिंचाई और गांव में आग पर काबू पाया जाता था। यह सब नष्ट हो गया है।
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कीटनाशक का प्रयोग
उत्तर बंगाल में जो भी नदियां और तालाब बचे हैं वे कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से जहरीले हो रहे हैं। अधिक पैदावार के लिए रासायनिक खाद का धड़ल्ले से प्रयोग किया जा रहा है। वही पानी में बह कर पोखर और नदी को जहरीला बना रहे हैं। इसके कारण पोखर और नदियों में पाई जाने वाली छोटी मछलियों को खत्म कर रहा है।
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जहर और विस्फोटक का प्रयोग
प्रतिबंद्ध के बावजूद मछली पकड़ने के लिए हिल्स और समतल में जहर और विस्फोटक का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। बिजली, पटाखा से विस्फोट कराकर मछलियों को पानी से छान लिया जाता है, लेकिन इससे मछली के अंडे और छोटी मछली पानी में मर जाते हैं।
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जाल के स्थान पर मच्छरदानी के कपड़े का प्रयोग
मछली पकड़ने के लिए निर्धारित जाल बनाया गया है। इससे नदी या तालाब से मछली पकड़ने पर वहीं मछली जाल में आती है जिसे पकड़ने पर रोक नहीं है। सुविधा और अधिक पैसे के लिए इन दिनों मच्छरदानी का नेट प्रयोग किया जाता है। इसमें मछली के अंडे तक फंसकर बर्बाद हो जाते हैं।
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स्वास्थ्य के लिए खतरनाक
मछली जिसे आंख और हृदय के लिए लाभदायक माना जाता था, अब नये तरीके से उत्पादन में यह जीवन के साथ खिलबाड़ बन गया है। डाक्टर कौशिक भट्टाचार्य तथा डाक्टर तिवारी का कहना है कि कम पानी में मछली पालन के दौरान अक्सर मछलियों का भोजन यूरिया खाद से तैयार होता है। इससे मछली जल्द बढ़ जाती है और चमकदार होती है, लेकिन इसके सेवन से ज्यादातर लोगों को किडनी और लीवर की समस्या सामने आ रही है। चर्मरोग हो रहे हैं। हाईब्रीड के मांगुर मछली जिसे चायनीज मछली कहकर हम लोग रोगियों को खाने से मना करते हैं। इसके सेवन से रोगी घातक बीमारी का शिकार हो सकता है।