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उत्तर बंगाल के नदियों बढ़ा प्रदूषण

-समय रहते प्रशासन को देना होगा ध्यान -ऐसे तो नहीं बचेगी नदियां और उसमें आसपास के जीव जंतु जाग

By Edited By: Published: Sun, 26 Oct 2014 12:21 AM (IST)Updated: Sat, 25 Oct 2014 09:44 PM (IST)
उत्तर बंगाल के नदियों बढ़ा प्रदूषण

-समय रहते प्रशासन को देना होगा ध्यान

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-ऐसे तो नहीं बचेगी नदियां और उसमें आसपास के जीव जंतु

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : दुर्गा पूजा,लक्ष्मी पूजा, काली पूजा, भंडारी पूजा और छठ को लेकर उत्तर बंगाल में कम से कम तीन लाख प्रतिमाओं के साथ पूजन सामग्री नदियों में विसर्जित की जाती है। प्रतिमाओं में इन दिनों रंग के जगह पर पेंट का इस्तेमाल जल प्रदूषण के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। सिलीगुड़ी नगर निगम ने तो महानंदा नदी को बचाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे है। यही स्थिति रही तो नदियों को बचा पाना मुश्किल होगा। इतना ही नहीं नदियों के जल के सहारे बचने वाले जीव जंतुओं पर भी इसका असर पडे़गा। पूर्व में प्रतिमा के विसर्जन के साथ ही प्रतिमाओं को तत्काल वहां तैनात कर्मियों द्वारा बाहर निकाल लिए जाते थे पर अब ऐसा नहीं दिख रहा है। यहीं नतीजा है कि मूर्तियों के साथ पूजन सामग्री भी विसर्जित की जा रही है। यह नदियों के किनारे दिखाई दे रहा है। यही स्थिति रही तो उत्तर बंगाल की नदियों को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। मूर्ति विसर्जन के समय नदी के कुछ ऐसे परिवार भी होते है जो प्रतिमा विसर्जन के साथ ही नदी किनारे बसने वाले लोगों द्वारा प्रतिमा नदी से बाहर निकाल लेते है। विसर्जन के साथ -साथ सफाई का कार्य भी हो जाता है। मूर्ति जितनी देर भी रहती है उससे प्रतिमाओं की मिट्टी या तो बह जाती है या नदी के तली में बैठ जाती है, एवं प्राकृतिक तत्व होने के वजह से जल प्रदूषण की संभावना बनी रहती है। प्रतिमाओं को रंगने के लिए प्लास्टिक पेंट, विभीन्न रंगों के लिए स्टेनर, फेब्रिक और पोस्टर आदि रंगों का प्रयोग करते हैं। मूर्ति के रंगों को विविधता देने के लिए फोरसोन पाउडर का प्रयोग होता है। ईमली के बीज के पाउडर से गम तैयार किया जाता है एवं उस गोंद से पेंट बनाते हैं। इसके साथ ही प्रतिमाओं को चमक देने के लिए बार्निस का प्रयोग होता है। कुछ प्रतिमाओं को जलरोधी बनाने के लिए डिस्टेंपर का भी प्रयोग करते हैं। भारी मात्रा में प्रतिमाओं के विसर्जन से जल प्रदूषण की संभावना काफी है। ऐसा करना हमारी मजबूरी है। पर्यावरण के लिए काम करने वाले अनिमेष बसु का कहना है कि उत्तर बंगाल में नदियों के प्रति जागरुकता नहीं बढ़ायी गयी तो आने वाले दिनों में नदियां सिर्फ नाम की बच जाएगी। प्रदूषित होने के साथ इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। नदियां समाप्त होगी तो इसमें पाए जाने वाली जीव जन्तु भी नहीं बचेंगे।


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