बंदियों के जीवन में सुधार की कवायद
सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता : राज्य सरकार ने बंदियों के जीवन में सुधार की कवायद शुरू की है। इसके लिए ऐसे बंदियों की सूची बनाई जा रही है जिनके जेल आने पर उनके बच्चों का पठन पाठन प्रभावित हो रहा है। उन्हें राज्य सरकार की ओर से सभी प्रकार की सहायता दी जाएगी।
जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री के निर्देश पर शुरू की गई इस कवायद में बंदियों को जीने की कला में निपुण कर आत्मनिर्भर बनाया जाएगा। इससे जहां संशोधनागारों में आरोपियों की संख्या में कमी आएगी वहीं वे समाज के मुख्यधारा से जुड़ जाएंगे। इसका सबसे ज्यादा लाभ उत्तर बंगाल के बंदियों को होगा। बंदियों का स्तर सुधारने के लिए नये संशोधनागार भी बनाए जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय व राज्य की सीमाओं से जुड़े होने के कारण यहां रोजगार के काफी अवसर है। बंदियों को मानसिक विकास हो इसके लिए कानूनी सहायता, धार्मिक पुस्तकें, योग और नाटक का मंचन भी समय-समय पर किया जाता है। पढ़े-लिखे बंदियों से दूसरे को शिक्षित कराया जा रहा है। ज्यादातर मामले में देखा गया है कि आर्थिक तंगी के कारण लोग अपराध जगत में प्रवेश करते हैं। आरोपी बन गिरफ्तार होने से ही समाज में उनके रोजगार के रास्ते बंद हो जाते हैं। समाज में उन्हें संदेह की नजर से देखा जाता है। पिछले दिनों मानवाधिकार और महिला आयोग की टीम ने पश्चिम बंगाल के कारागारों का दौरा किया था। दौरे के क्रम में पाया गया था, कि सैकड़ों ऐसे बंदी है जो अपराध की दुनियां से स्वयं को दूर करना चाहते हैं। उन्हें अगर रोजगार के अवसर मिले तो वे समाज में एक आदर्श प्रस्तुत कर सकते है। गुलमोहर गांव में ऐसा ही एक बंदी डिस्ट्रिक्ट लीगल एड फोरम की मदद से आदर्श बना हुआ है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि बंदियों को जेल में यातना नहीं बल्कि उन्हें उसके किए कर्म को याद कराया जाता है। उनके साथ मधुर बर्ताव, रहन-सहन, स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जा रहा है। बंदियों को बताया जाएगा कि अगर समाज ने उसके साथ गलत किया है तो वे समाज में बदले की भावना लेकर न जाएं। वे समाज में ऐसा वातावरण तैयार करें जिससे समाज के लोग उन्हें आगे बढ़कर स्वीकार करें।