कला जगत ने की आत्रेई नदी को बचाने की अपील
-प्लास्टिक कैरीबैग, मृत जानवर व मलमूत्र त्याग करने से नदी बना डस्टबिन संवाद सहयोगी, बालुरघाट : पर्
-प्लास्टिक कैरीबैग, मृत जानवर व मलमूत्र त्याग करने से नदी बना डस्टबिन
संवाद सहयोगी, बालुरघाट : पर्यावरण प्रेमी संगठनों के बाद अब बालुरघाट के कला जगत के हस्तियों ने आत्रेइ नदी को बचाने की अपील की। पहला बैशाख को लेकर आयोजित सभा में शुक्रवार को कलाकारों के चर्चा का विषय था आत्रेइ नदी को बचाना। दक्षिण दिनाजपुर जिले के बीच से बहने वाली इस नदी को अपनी स्थिति में लाने के लिए सभी कटिबद्ध है। ज्ञातव्य है कि आत्रेई नदी की रक्षा करने के लिए दक्षिण दिनाजपुर में जिले के बालुरघाट शहर में लगातार आंदोलन चल रहा है। इसी के तहत सरोज सेतु के बांध में शुक्रवार को पहला बैसाख के पूर्व एक चर्चा का आयोजन किया गया था। जहां शहर व जिले के विशिष्ट कवि मृणाल चक्रवर्ती, इतिहास के शोधकर्ता समित घोष, पर्यावरणविद तुहीन शुभ्र मंडल सहित अन्य साहित्यकार व कवि उपस्थित थे। साथ ही बालुरघाट उच्च विद्यालय एवं अयोध्या एकेडी विद्यापीठ के छात्र-छात्रा पहुंचे । जहां आत्रेइ नदी की वर्तमान व इतिहास को लेकर चर्चा की गई। आत्रेई नदी पर कविता, संगीत व चर्चा की गई। नदी में पानी कम होने से मछली नहीं मिलने से मत्स्यजीवी परेशान हो रहे हैं । नदी में प्लास्टिक कैरीबैग, मृत जानवर व मलमूत्र त्याग करने से यह नदी डस्टबिन बन चुका है। उस पर पानी कम होने से गति भी ठहर गई है। ज्ञातव्य है कि बांग्लादेश में चलन बिल से आत्रेई नदी भारत में प्रवेश कर फिर बांग्लादेश में मिला है। इस नदी के गतिपथ में कुमारगंज में ब्लाक के समजिया से बालुरघाट के डांगी तक 58 किमी का रास्ता है। कुमारगंज में 36 एवं बालुरघाट में 22 किमी से इन नदी के आसपास यहां के लोगों की सभ्यता विकसित हुई, लेकिन साल भर पहले इस नदी के गतिपथ में बांग्लादेश की ओर से एक बांध दिया गया है। कुमारगंज के समजिया से 1400 मीट यानी डेढ़ किमी अंदर बांग्लादेश के दिनाजपुर जिले के फूलबाड़ी रोड पर मोहनपुर इलाके में बांध बनाया गया है। इस बांध का नाम राबार डैम। इसी बांध से आत्रेई को नियंत्रित किया जा रहा है। यही वजह से है कि कभी यहां पानी रह रहा है कहीं सूख रहा है। इन विषयों को लेकर इसबीच राज्य की मुख्यमंत्री, प्रधान मंत्री व राष्ट्रपति को मेल के जरिए पत्र दिया गया है। अब इस नदी को बचाने के लिए जिला व बालुरघाट के कलाकार आंदोलन में शरीक हुए।