संघ निष्ठा और सोशल इंजीनियरिंग से त्रिवेंद्र ने मारी बाजी
त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री बनने के पीछे प्रदेश की सोशल इंजीनियरग और संघ निष्ठा एक बड़ा कारण बना है। पीएम मोदी, अमित शाह और राजनाथ सिंह के करीबी होने का भी उन्हें फायदा मिला।
देहरादून, [विकास गुसाईं]: त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री बनने के पीछे प्रदेश की सोशल इंजीनियरग और संघ निष्ठा एक बड़ा कारण बना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और गृह मंत्री राजनाथ सिंह से उनकी निकटता अन्य कारण रहे, जिनकी मौजूदगी से अन्य दावेदार उनके मुकाबले पिछड़ गए थे।
विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत मिलने के बाद भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती नए मुख्यमंत्री का चुनाव करना रही। मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में त्रिवेंद्र रावत के अलावा सतपाल महाराज, प्रकाश पंत और सांसद रमेश पोखरियाल निशंक का नाम तेजी से चला।
आखिर में मुकाबला त्रिवेंद्र रावत और प्रकाश पंत के बीच सिमट कर रह गया। माना जा रहा है कि यहां प्रदेश की सोशल इंजीनियरिंग ने खासी भूमिका निभाई। उत्तराखंड को राजपूत बहुल प्रदेश माना जाता है। भाजपा ने भी इसे देखते हुए पहली अंतरिम सरकार में भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री पद पर बिठाया था।
2007 में जब भाजपा सत्ता में आई तब भी मुख्य मुकाबला कोश्यारी व खंडूडी के बीच रहा। हालांकि, तब इसमें खंडूडी के हाथ बाजी लगी थी। इस बार भगत सिंह कोश्यारी, त्रिवेंद्र की पैरवी कर रहे थे।
वहीं, केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का त्रिवेंद्र से पुराना नाता रहा है। जब मोदी भाजपा में राष्ट्रीय महामंत्री संगठन के पद पर थे तब त्रिवेंद्र प्रदेश में महामंत्री संगठन की भूमिका में रहे। यहीं से उनकी मोदी से नजदीकियां बढ़ी थी।
लोकसभा चुनावों में त्रिवेंद्र तत्कालीन उत्तर प्रदेश चुनाव प्रभारी अमित शाह के डिप्टी, यानी सह प्रभारी रहे। यहां से वे अमित शाह के काफी नजदीक आ गए। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी त्रिवेंद्र के पक्ष में ही थे। प्रदेश अध्यक्ष का पद ब्राह्मण नेता अजय भट्ट का काबिज होना भी त्रिवेंद्र रावत के पक्ष में गया। यह सारी परिस्थितियां त्रिवेंद्र सिंह रावत के पक्ष में गई और उनकी मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी हुई।
यह भी पढ़ें: उत्तराखंडः सरलता ही बनी पंत की सबसे बड़ी कमजोरी
यह भी पढ़ें: त्रिवेंद्र सिंह रावत का आरएसएस प्रचारक से मुख्यमंत्री तक का सफर