चुनौती बना माउंट शिवलिंग
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी: पर्वतारोहियों के लिए बड़ा आकर्षण माउंट शिवलिंग पर आरोहण फिलहाल चुनौती बन गया है। गंगोत्री हिमालय क्षेत्र के इस हिमशिखर पर बीते तीन सालों से कोई भी पर्वतारोही नहीं चढ़ सका है। जबकि, इस हिम शिखर का आकर्षण हर साल देशी विदेशी पर्वतारोहियों को यहां खींच लेता है।
समुद्र तल से 6,345 मीटर ऊंचा शिवलिंग हिमशिखर गोमुख तपोवन क्षेत्र का सबसे आकर्षक हिमशिखर है। अपनी खास बनावट के कारण यह इस ट्रैक पर पहुंचने वाले हर पर्यटक का ध्यान खींच लेता है। वहीं दुनिया भर के पर्वतारोहियों का भी यह पसंदीदा हिमशिखर है। सीधी खड़े पहाड़ पर बनी बर्फ की दीवार और तीखे ढलान इस पर चढ़ाई को बेहद जटिल बना देते हैं। यही वजह है कि पहाड़ों के रोमांच का हर शौकीन पर्वतारोही इस चोटी का आरोहण करना चाहता है। लेकिन बीते तीन सालों से यह काम अंसभव सा बना हुआ है। शिवलिंग पर्वत पर टूटती आइसवाल के कारण इस पर चढ़ना पर्वतारोहियों के लिए चुनौती साबित हो रहा है।
इस हिमशिखर पर सबसे पहला आरोहण 1974 में एक आइटीबीपी के एक दल ने किया था। उसके बाद नियमित अंतराल पर देशी विदेशी पर्वतारोही उत्तर पूर्व की दिशा से इसकी चोटी पर आरोहण करते रहे। वर्ष 2010 में आइएमएफ के बारह सदस्यीय भारतीय दल ने 18 जून को इस पर तिरंगा फहराया था। इसी साल सितंबर माह में एक स्पेनिश दल ने भी इस हिमशिखर का सफल आरोहण किया। लेकिन उसके बाद कोई भी दल इसका आरोहण नहीं कर सका। इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन की सूची में भी वर्ष 2010 में इन्हीं दो अभियानों को शिवलिंग के अंतिम अभियानों के तौर पर दर्शाया गया है। इसके बाद इस हिमशिखर पर आरोहण के आठ देशी विदेशी दल रवाना हो चुके हैं, लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिल सकी।
शिवलिंग के अभियान से जुड़े पर्वतारोही विनोद गुसाई के मुताबिक शिवलिंग के दूसरे और तीसरे कैंप के बाद टूटती आइसवाल आगे बढ़ने से रोकती है। अत्यधिक जोखिम के कारण आगे बढ़ना उचित नहीं रहता। वहीं, इस हिमशिखर के आरोहण के लिए वैकल्पिक रूट भी नहीं है। गंगोत्री हिमालय क्षेत्र में ही भागीरथी 1,2,3, सतोपंथ, मेरू जैसे हिमशिखरों पर लगातार सफल आरोहण हो रहे हैं।
ये दल कर चुके हैं प्रयास
2011-1 दल
2012-2 दल, (1 विदेशी, 1 भारतीय)
2013-2 दल (1 विदेशी, 1 भारतीय)
2014-1 दल (विदेशी)
तकनीकी रूप से जटिल होने के कारण माउंट शिवलिंग पर आरोहण करना हमेशा ही चुनौतीपूर्ण रहा है। लेकिन, कुछ वर्षो से यह और अधिक कठिन हो गया है। जोखिम लेने से बेहतर रहता है कि कुछ समय तक हालात को सामान्य होने दिया जाए।
कर्नल अजय कोठियाल, प्रिंसिपल, नेहरू पर्वतारोहण संस्थान।