मखमली घास में खेली मक्खन की होली, प्रकृति की पूजा की
उत्तरकाशी में दयारा बुग्याल में प्रसिद्ध अंढूड़ी उत्सव (बटर फेस्टिवल) धूम-धाम से मनाया गया। मेले में मक्खन की होली खेलने के साथ ही प्रकृति की पूजा की गई।
उत्तरकाशी, [जेएनएन]: उच्च हिमालयी क्षेत्र में समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल में गुरुवार को प्रसिद्ध अंढूड़ी उत्सव (बटर फेस्टिवल) की धूम रही। मेलार्थियों ने प्रकृति की पूजा के इस खास उत्सव में भाग लेकर मखमली घास में मक्खन व मट्ठे की होली खेली और इन लम्हों को स्मृतियों में कैद कर सदा के लिए यादगार बना दिया। मेले का लुत्फ लेने विभिन्न स्थानों से दयारा पहुंचे पर्यटकों का उत्साह भी देखते ही बनता था।
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 42 किलोमीटर की सड़क दूरी और भटवाड़ी ब्लाक के रैथल गांव से छह किलोमीटर की पैदल दूरी पर 28 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले दयारा बुग्याल में पीढिय़ों से भाद्रपद संक्रांति के दिन अंढूड़ी उत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है। इस बार उत्सव का उद्घाटन के लिए गंगोत्री विधायक गोपाल सिंह रावत ने किया। इस मौके पर स्थानीय महिलाओं ने लोक नृत्यों की मनोहारी प्रस्तुतियां दीं।
विदित हो कि गर्मी का मौसम शुरू होते ही रैथल समेत आसपास के गांवों के ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ बुग्याली क्षेत्रों (मखमली घास के मैदान) में स्थित अपनी छानियों में चले जाते हैं। पूरी गर्मी वहीं बिताने के बाद वे अंढूड़ी उत्सव मनाकर ही गांव वापस लौटते हैं। लेकिन, लौटने से पूर्व वे प्रकृति का शुक्रिया अदा करने के लिए मेले का आयोजन करते हैं, जिसमें प्रकृति की पूजा-अर्चना की जाती है।
रैथल गांव के 83 वर्षीय उम्मेद सिंह राणा बताते हैं कि ठंड बढ़ने के साथ ग्रामीणों के वापस लौटने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। बुग्याल में पहुंचकर मवेशियों के दूध में अप्रत्याशित वृद्धि होती है और ग्रामीणों के घरों में संपन्नता आती है। इसलिए हर वर्ष अगस्त में इस पर्व को प्रकृति देवता की पूजा के रूप में मनाते हैं।
इस मौके पर पर्यटन सचिव आर.मीनाक्षी सुंदरम, ब्लाक प्रमुख चंदन सिंह पंवार, ग्राम प्रधान श्यामा देवी, क्षेत्र पंचायत सदस्य राजकेंद्र घनवाण, गजेंद्र राणा, राजवीर रावत, सुरेश रतूड़ी आदि मौजूद थे।
ऐसे हुई बटर फेस्टिवल की शुरुआत
दयारा पर्यटन उत्सव समिति रैथल के अध्यक्ष मनोज राणा कहते हैं कि पहले इस होली को गाय के गोबर से भी खेलते थे। लेकिन, अंढूड़ी उत्सव को पर्यटन से जोडऩे के लिए कालांतर में ग्रामीणों ने मक्खन और मट्ठे की होली खेलना शुरू कर दिया। इसी से अंढूड़ी उत्सव को बटर फेस्टिवल के रूप में पहचान मिली। इस उत्सव में ग्रामीण प्रकृति के प्रति कृतज्ञता जताते हैं कि उसी की बदौलत उनके मवेशी स्वस्थ हैं और दूध की वृद्धि से घरों में संपन्नता आई है।
मेले को मिलेगी विश्व स्तर पर पहचान
पर्यटन सचिव आर.मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि बटर फेस्टिवल को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के लिए सरकार गंभीर है। इस संबंध में शासन स्तर पर विचार-विमर्श चल रहा है और जल्द ही इस पर कार्य शुरू होने की उम्मीद है।
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