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आस्था का प्रतीक वारुणी यात्रा

By Edited By: Published: Mon, 19 Mar 2012 05:20 PM (IST)Updated: Mon, 19 Mar 2012 05:22 PM (IST)
आस्था का प्रतीक वारुणी यात्रा

उत्तरकाशी, जागरण कार्यालय : देवभूमि में प्राचीनकाल से ही धार्मिक पदयात्राओं की परंपरा रही है। इनके जरिये श्रद्धालु अपने देवी देवताओं की प्रति आस्था प्रकट करते हुए सुख और समृद्धि की कामना करते हैं। उत्तरकाशी की वारुणी यात्रा भी ऐसी ही प्राचीन पदयात्रा है। इसमें हर साल हजारों श्रद्धालु वरुणावत पर्वत की पांच कोष की परिक्रमा करते हैं।

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हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष चैत्र माह की त्रयोदशी को वारुणी यात्रा का दिन होता है। इसके लिए श्रद्धालु तड़के उठकर उत्तरकाशी नगर क्षेत्र से तीन किमी दूर भागीरथी और वरुणा के संगम पर स्नान कर यात्रा शुरू करते हैं। पंद्रह किमी के यात्रा मार्ग में साल्ड गांव में जगन्नाथ मंदिर, ज्ञाणजा में रुद्रकुंड, ज्ञानेश्वर मंदिर व महतपा बिल के बाद वरुणावत के शीर्ष पर शिखरेश्वर मंदिर में श्रद्धालु शीश नवाते हैं। शिखरेश्वर के बाद ढलान पर विमलेश्वर मंदिर और संगराली गांव में कंडा रदेवता मंदिर में श्रद्धालुओं के हुजूम एकत्र होते हैं। यहां पूजा-अर्चना और प्रसाद ग्रहण करने के बाद असी गंगा और भागीरथी के संगम की ओर उतरते हैं। संगम पर स्नान कर श्रद्धालु लक्षेश्वर मंदिर होते हुए नगर के बीचोंबीच स्थित विश्वनाथ मंदिर पहुंचते हैं और पंचकोसी यात्रा की इतिश्री करते हैं। इस अनूठी पदयात्रा के मार्ग में पड़ने वाले बसुंगा, साल्ड, ज्ञाणजा, ऊपरीकोट, भराणगांव व पाटा संगराली के ग्रामीण श्रद्धालुओं के लिये पेयजल, प्रसाद व फलाहार के इंतजाम करते हैं।

यात्रा मार्ग की खासियत चैत्र माह का खुशनुमा मौसम और प्राकृतिक सुंदरता है। बांज व बुरास के जंगल से होते हुए श्रद्धालु हिमाच्छादित चोटियों, झरनों व नदियों को निहारते हुए आगे बढ़ते हैं। बीते कई सालों से वारुणी पंचकोसी यात्रा समिति श्रद्धालुओं की सुविधा के लिये विभिन्न व्यवस्थाएं जुटा रही है।

हर दिन है पंचकोषी यात्रा का महत्व

उत्तरकाशी : पं. सुरेश शास्त्री के मुताबिक वारणा और असी गंगा के बीच वारणावत क्षेत्र का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। पदयात्रा से इसकी परिक्रमा का यूं तो वर्ष भर में हर दिन महत्व है, लेकिन चैत्रमाह के त्रयोदशी व आषाढ़ी पुर्णिमा के दिन इसका खास महत्व है। स्कंदपुराण में इस पंचकोषी यात्रा का वर्णन भी मिलता है और श्रद्धालुओं को मौनव्रत या भजन कीर्तन करते हुए यात्रा करनी चाहिये।

यात्रा आज, तैयारियां पूरी

उत्तरकाशी : मंगलवार को वारुणी यात्रा की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। इसके लिए यात्रा मार्ग के सभी पड़ावों पर ग्रामीणों ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिये विभिन्न इंतजाम भी जुटा लिये हैं।

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