उत्तराखंड का जलियांवाला बाग तिलाड़ी
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी: ब्रिटिश शासन की क्रूरता का गवाह रहे जलियांवाला बाग की तरह उत्तराखंड
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी:
ब्रिटिश शासन की क्रूरता का गवाह रहे जलियांवाला बाग की तरह उत्तराखंड के तिलाड़ी का भी ऐतिहासिक महत्व है। आज से 86 साल पहले राजशाही से अपने हक हकूकों की रक्षा के लिए रणनीति बना रहे लोगों को राजा की सेना ने गोलियों से भून दिया था। सरकार यदि थोड़ा प्रयास करती तो जलियांवाला बाग की तरह यह स्थल भी विश्व पर्यटन मानचित्र पर अपना नाम अंकित करा सकता था।
यूरोप में ऐतिहासिक स्थलों को जहां पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किया गया है वहीं सूबे की सरकार इन स्थलों के प्रति उदासीनता बरते हुए है। इससे उत्तराखंड की सैर के लिए आने वाले देश-विदेश के पर्यटक सूबे की लोक संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व से अनजान रह जा रहे हैं। यहां के ऐतिहासिक मेले और ऐतिहासिक स्थलों को पर्यटन के मानचित्र पर स्थान नहीं मिल पाया है। इन्हीं में एक है तिलाड़ी कांड, जो आज से 86 साल पहले यमुना के किनारे तिलाड़ी के मैदान में हुआ था। तिलाड़ी मैदान में 30 मई 1930 को यमुना घाटी के लोग जंगल से जुड़े हक-हकूक बचाने को लेकर बैठक हो रही थी। इसी बैठक में राजा ने अंदोलनकारियों पर गोलियां चलवाई, जिसमें दो सौ से अधिक लोग मरे, 100 से अधिक लोग घायल हुए।
युगांतकारी आंदोलन
जन आंदोलनों में यह आंदोलन पर्वतीय क्षेत्र का पहला युगांतकारी आंदोलन था, लेकिन आज तक इस आंदोलन से यहां आने वाले पर्यटक अंजान हैं। यही स्थिति रही तो पर्यटकों की तरह हमारी आने वाली पीढ़ी को भी इस ऐतिहासिक घटना से अनजान रहना पड़ सकता है।
तिलाड़ी मैदान में आज लगता है शहीद मेला
रवाई क्षेत्र की जनता को जिस स्थान पर 30 मई 1930 को अपने हक-हकूकों को लेकर बैठक करने के दौरान टिहरी राजशाही के नौकरशाहों ने गोलियों से भूना था, उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष आज के दिन शहीद मेला लगता है। यह मेला तिलाड़ी के शहीदों के नाम से जाना जाता है। मेले का आयोजन नगर पालिका करती है। आज के दिन दूर-दूर से लोग तिलाड़ी मैदान में स्थापित स्मारक पर शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। नगर पंचायत अध्यक्ष अतोल ¨सह रावत का कहना है कि तिलाड़ी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए पालिका योजना तैयार कर रही है।
रवाई घाटी का तिलाड़ी कांड एक ऐतिहासिक घटना है। इस ऐतिहासिक स्थल को संरक्षित रखने के लिए इसे पर्यटन से जोड़ा जाना चाहिए, जिससे देश-विदेश के पर्यटक भी यहां पहुंचकर इस ऐतिहासिक घटना से परिचित हो सकें।
-गजेंद्र नौटियाल, साहित्यकार
जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज उठा कर लोगों को उनके हक हकूक दिलाने के लिए शहीद हुए शहीदों को याद रखने के लिए आज कोई ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। शहीदों की याद के लिए शहीद स्थल तिलाड़ी को अमृतसर के जलियांवाला बाग की तर्ज पर पर्यटन के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।
-राजेन्द्र ¨सह रावत, अध्यक्ष स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संगठन बड़कोट