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'12 साल की रोशनी फिर अंधेरी रात'

राधाकृष्ण उनियाल, पुरोला जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 176 किमी दूर फतेपर्वत का अतिदुर्गम क्षेत्र, जो

By Edited By: Published: Sun, 24 May 2015 09:51 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2015 09:51 PM (IST)
'12 साल की रोशनी फिर अंधेरी रात'

राधाकृष्ण उनियाल, पुरोला

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जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 176 किमी दूर फतेपर्वत का अतिदुर्गम क्षेत्र, जो पांच साल पहले रोशन था, वहां आज घुप्प अंधेरा पसरा है। 12 वर्षो तक रोशनी में रहने वाले क्षेत्र के छह गांवों की चार हजार आबादी फिर से रोशनी का इंतजार कर रही हैं, लेकिन उनका यह इंतजार लंबा होता जा रहा है। लेकिन, लोगों में उम्मीद है कि जल्द ही उन्हें फिर से रोशनी मिलेगी।

1998 में मोरी प्रखंड के फतेपर्वत क्षेत्र में उरेडा की ओर से इस्त्रागाड धौला जलविद्युत परियोजना की स्थापना की गई थी। योजना निर्माण के बाद 12 वर्षो तक परियोजना से क्षेत्र को विद्युत आपूर्ति मिलती रही। 2010 में मानसून के दौरान आई तकनीकी खामियों और डेढ़ सौ मीटर लंबी नहर के जगह जगह ध्वस्त होने से यहां उत्पादन बंद कर दिया गया। इससे क्षेत्र के दोणी, मसरी, भितरी, खन्यासणी, खन्ना व पुजेली गांवों में बिजली आपूर्ति भी ठप हो गई। ग्रामीणों को उम्मीद थी कि मानसून बीतने के बाद परियोजनाओं में आई मुश्किलें दूर हो जाएंगी और ग्रामीणों की जिंदगी फिर रोशन हो सकेगी। इन उम्मीदों के सहारे पांच साल गुजर चुके हैं और पांच मानसून भी बीत गए। गांव में बिजली पहुंचनी तो दूर उरेडा ने यहां आकर तकनीकी खामियों को सही करने की जहमत तक नहीं उठाई। रोशनी के लिए ग्रामीणों को फिलहाल मिट्टी के तेल से जलने वाले लैंपों का ही सहारा है। लेकिन, क्षेत्र में लंबे समय से केरोसिन का कोटा भी कम आ रहा है। ऐसे में लोगों को रोशनी के लिए जंगल से एकत्र किए छिलकों के सहारे रातें काटनी पड़ रही हैं। वहीं मोबाइल चार्ज करवाने के लिए मोरी तक के चक्कर काटने पड़ते हैं। बिजली गुल है तो संचार के अन्य माध्यम भी ठप पडे़ हुए है।

सड़क पर पड़ी टरबाइन, कब

बनेगी परियोजना

बडासू पट्टी क्षेत्र के छह गांवों के ग्रामीणों का भी बिजली का इंतजार लंबा होता जा रहा है। क्षेत्र में बिजली में आपूर्ति के लिए निर्माणाधीन काफूगाड परियोजना का निर्माण अब तक पूरा नहीं हो सका है। करोड़ों की लागत से खरीदी गई टरबाइन और अन्य मशीनें भी 2010 से सड़क पर ही जंग खा रही है। तालुका में बनी परियोजना भी 2010 के बाद से ही खराब पड़ी है।

परियोजना के पेनस्टोक पाइप से गुजरने वाला हिस्सा स्लाइडिंग जोन में तब्दील हो चुका है। 2010 के बाद यहां लगातार धंसाव हो रहा है जिससे कई मुश्किलें सामने आ रही हैं। लेकिन, उरेडा इसके बावजूद भी मरम्मत के काम में लगा हुआ है जल्द इस परियोजना से उत्पादन शुरू किया जाएगा।

इं. मनोज कुमार, परियोजना अधिकारी उरेडा


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