आपदाओं से भी नहीं टूटा हौसला
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : अलग जनपद के रूप में अस्तित्व में आए उत्तरकाशी जनपद को 55 वर्ष हो गए हैं
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : अलग जनपद के रूप में अस्तित्व में आए उत्तरकाशी जनपद को 55 वर्ष हो गए हैं। स्थापना के बाद सीमांत जनपद ने अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान हासिल की और खेती बागवानी की मिसाल पेश की। यही वजह है कि प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद यहां से पलायन अन्य जिलों की तुलना में काफी कम है।
क्षेत्रफल के लिहाज से उत्तरकाशी राज्य का सबसे बड़ा जिला है। इसका बड़ा भूभाग बर्फीला हिमालयी क्षेत्र है। यह क्षेत्र पूरी तरह से मानव विहीन है। वर्ष 1960 तक उत्तरकाशी टिहरी जनपद का ही हिस्सा था। 24 फरवरी 1960 में इसे टिहरी जिले से अलग जनपद के रूप में स्थापित किया गया। इसमें गंगा भागीरथी घाटी, यमुना घाटी और टौंस घाटी से लगा पर्वत व बंगाण क्षेत्र शामिल किया गया। विकास की गति पर जनपद आगे बढ़ा ही था कि 1978 की बाढ़ ने भागीरथी घाटी में बडे़ पैमाने पर नुकसान पहुंचाया। उस आपदा से उबरने के बाद जिले में विकास कार्यो को गति मिली। छह तहसीलों वाले जनपद में उत्तरकाशी जिला मुख्यालय के समीप मनेरी भाली जल विद्युत परियोजना भी इसी दौरान अस्तित्व में आई। वहीं गंगोत्री व यमुनोत्री धाम की यात्रा को भी गति मिली, लेकिन 1991 में आए विनाशकारी भूकंप ने जिले में बड़ा नुकसान पहुंचाने के साथ ही एक बार फिर यहां विकास की गति को बाधित कर दिया। इस आपदा से भी लोग उबरे और उसके बाद इस जनपद को समृद्ध सांस्कृतिक जनपद के रूप में पहचान भी मिली। वहीं रवांई क्षेत्र में खेती और बागवानी की शुरूआत हुई। यह शुरुआत उत्तराखंड राज्य बनने के बाद और परवान चढ़ी। हर्षिल से लेकर आराकोट तक फल पट्टियों के विस्तार ने जिले को बागवानी के क्षेत्र में अग्रणी बना दिया। इस स्थिति के कारण बड़े हालांकि इस वर्ष 2010 के साथ ही 2012 व 2013 की आपदाओं ने जिले के बड़े हिस्से को बुरी तरह झकझोर दिया। लोग इन आपदाओं से उबरकर एक बार फिर विकास की राह तय करने को तैयार हैं।
'जिले में विकास कार्यो को गति दी जा रही है, आपदा के बाद पुनर्निर्माण का खाका पूरा खींचा जा चुका है। कोशिश की जा रही है कि पूरे जिले कृषि, शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में आधुनिक विकास की धारा से जोड़ा जा सके।
इंदुधर बौड़ाई, जिलाधिकारी उत्तरकाशी।