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पहले प्रकृति अब प्रशासन की मार

संवाद सहयोगी, उत्तरकाशी : आपदा से बेघर परिवारों पर प्रकृति के बाद प्रशासन की भी मार पड़ रही है। दरअसल

By Edited By: Published: Mon, 15 Dec 2014 05:20 PM (IST)Updated: Tue, 16 Dec 2014 04:16 AM (IST)
पहले प्रकृति अब प्रशासन की मार

संवाद सहयोगी, उत्तरकाशी : आपदा से बेघर परिवारों पर प्रकृति के बाद प्रशासन की भी मार पड़ रही है। दरअसल, आपदा में बेघर परिवारों को जलविद्युत निगम प्रबंधन ने अपनी कालोनी में बसाया था। बेघर परिवारों के साथ कुछ लोग अवैध रूप से घुस गए। ऐसे लोगों को हटाने के लिए प्रबंधन ने बिजली-पानी कनेक्शन काट दिया, जो एक साल बाद भी नहीं जुड़ा। नतीजा यह कि कुछ लोगों के चक्कर में बेघर परिवार भी सर्दी की ठिठुरन भरी रात अंधेरे में काटने को मजबूर हैं। प्रशासन की खामोशी इन परिवारों पर भारी पड़ रही है।

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वर्ष 2012 और 2013 में आई आपदा से मनेरी और डिडसारी में कुछ परिवारों के आवासीय भवनों को भारी नुकसान पहुंचा था। इसके बाद इन परिवारों को फौरी तौर पर मनेरी स्थित उत्तरांचल जल विद्युत निगम की आवासीय कॉलोनियों में ठहरा दिया गया था। डिडसारी और मनेरी के तकरीबन 20 परिवारों को इन कॉलोनियों में जगह दी गई थी। वहीं मौके का फायदा उठा कर ऐसे परिवार भी कॉलोनी में दाखिल हो गए, जिनका आपदा में कोई नुकसान नहीं हुआ था।

सब कुछ पटरी पर लौटने के बाद जब जल विद्युत निगम ने इन परिवारों को हटाने की प्रक्रिया शुरू की तो अवैध रुप से घुसे परिवारों ने बाहर निकलने से मना कर दिया। लिहाजा ऐसे में जल विद्युत निगम ने इस साल की शुरूआत में कॉलोनियों में रह रहे सभी परिवारों के बिजली और पानी के कनेक्शन काट दिए। ऐसे में पीड़ित परिवार भी सालभर से अंधेरे में रात काटने को मजबूर हैं। सर्दियों की दस्तक के साथ बिन बिजली के रोजमर्रा के काम भी आसान नहीं हैं। बिजली कटने के बाद कुछ कब्जाधारी अपने मूल घरों को तो लौट रहे हैं लेकिन कॉलोनियों को नहीं छोड़ रहे। इसके चलते असल प्रभावितों की मुसीबतें खत्म होने का नाम नहीं ले रही।

इधर, जिला प्रशासन भी पूरे प्रकरण पर चुप्पी साधे है। प्रशासन अब तक यह भी तय नहीं कर पाया है कि कौन वास्तविक रूप से बेघर हो चुका है और कौन इन कॉलोनियों में अवैध रूप से घुसा हुआ है। वहीं जल विद्युत निगम भी आगे की कार्यवाही के लिए प्रशासन के निर्देशों का इंतजार कर रहा है।

'प्रशासन निर्देश दे तो वह प्रभावितों की बिजली-पानी बहाल करने को तैयार हैं। लेकिन, यहां अधिकांश परिवार कब्जा करने की नीयत से घुसे हैं। ऐसे में इन पर आने वाले खर्च को कौन वहन करेगा, यह प्रशासन को तय करना होगा।'

जेबी सिंह, महाप्रबंधक, यूजीवीएनएल

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