ल्वारखा के कारीगरों ने पेश की मिसाल
पुष्कर सिंह रावत, उत्तरकाशी
हुनर को तकनीक का साथ मिला तो ल्वारखा गांव ने एक मिसाल कायम कर दी। लोहे और लकड़ी के परंपरागत कारीगरों का यह गांव अब तक अपनी पहचान खोने के कगार पर पहुंच गया था। अब गांव के कुछ नये पुराने कारीगरों की पहल आखिर रंग लाई। इसके बूते गांव में तैयार हुई वर्कशॉप से कारीगरों के दिन बहुरने की उम्मीद है।
डुंडा प्रखंड के गाजणा क्षेत्र का ल्वारखा गांव लोहे और लकड़ी की परंपरागत कारीगरी के लिये जाना जाता रहा है। इस गांव के लोग दूर दराज के क्षेत्रों तक के लिये लोहे और लकड़ी के खेती के औजार और घरों के चौखट, तिबारी, दरवाजे आदि तैयार करते थे। बदलते दौर में बाजार के साथ प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाने के कारण यह कारीगरी दम तोड़ती गई। एक दिन में भट्टी पर हाड़ तोड़ मेहनत के बाद महज एक दरांती या कुदाल ही तैयार हो पाती थी। ऐसे में कारीगर अपने इस परंपरागत पेशे से विमुख होने लगे थे। अब गांव के युवा कारीगर भरतलाल, मूर्तिलाल शाह, लक्ष्मीस्वरूप आदि आगे आए और क्षेत्र में हैस्को व हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी ऐग्रो संस्थान ने दिल्ली स्थित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से उन्हें तकनीकी मदद दिलाने की कवायद को अंजाम दिया। इसके तहत गांव के समीप ही धौंतरी मोटर मार्ग पर ग्रामीणों ने जमीन उपलब्ध कराई। इस जमीन पर एक वर्कशॉप तैयार की गई। जिसमें वैल्डिंग मशीन, लकड़ी तराशने की मशीन व लोहे व लकड़ी के काम लिये जरूरी छोटे औजार उपलब्ध कराए गए। गांव के कारीगरों को दो बार देहरादून में मशीन चलाने व नई तकनीकी से लोहे को ढालने और लकड़ी तराशने का प्रशिक्षण दिया गया। बीते अगस्त माह में वर्कशॉप में ग्रामीणों ने खुद का काम शुरू भी कर दिया है। इसमें खेती के कामों के लिये कुदाल, फाल, फावड़ा, दरांती, गैंती जैसे उपकरण तैयार किए जा रहे हैं। वहीं आधुनिक जरूरतों को देखते हुए लोहे की सीढ़ी, रेलिंग और खिड़की का फ्रेम जैसा बड़ा सामान भी तैयार किया जा रहा है। इस बीच वर्कशॉप को सहकारिता के आधार पर संचालित करने के लिए एक समिति का गठन भी किया गया है। समिति वर्कशॉप का प्रबंधन, मेंटीनेंस व देरेख भी करेगी जिसके अध्यक्ष भरतलाल बताते हैं कि वर्कशॉप बनने के बाद मांग में भी काफी इजाफा हो गया है। अब हम पहले के मुकाबले दस गुना तेजी से कोई भी औजार या सामान तैयार कर रहे हैं।
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ग्रामीणों की खुद आगे आकर अनूठी पहल की है, इससे स्वावलंबन और सहकारिता की भावना को बल मिलेगा। जरूरी औपचारिकताएं पूरी होने पर उद्योग विभाग भी इस काम में ग्रामीणों की मदद कर सकता है।
-एमएस सजवाण, महाप्रबंधक, जिला उद्योग केंद्र।